निर्देशक अकर्ष खुराना ने खेलों में होने वाले लिंग सत्यापन परीक्षण (Gender Verification Test) को अपनी फ़िल्म ‘रश्मि रॉकेट’ का विषय बनाया है| इस परीक्षण के बारे में ज्यादातर लोगों को जानकारी नहीं हैं| इसलिए महिला खिलाड़ियों पर और उनके जीवन पर इस परीक्षण का क्या असर होता है, इससे भी लोग परिचित नहीं हैं| फ़िल्म ‘Rashmi Rocket’ महिला खिलाड़ियों से जुड़े इस कम चर्चित लेकिन बेहद ज़रूरी विषय पर बात करती है|
फ़िल्म पर आने पहले, आइए थोड़ा लिंग सत्यापन परीक्षण के विषय में जानते हैं|
लिंग सत्यापन परीक्षण (Gender Verification Test) क्या होता है ?
खेलों में महिला खिलाड़ियों के आश्चर्यजनक प्रदर्शन के बाद कई बार उन पर पुरुष होने के आरोप लगे हैं| इन विवादों से बचने के लिए अंतर्राष्ट्रीय खेल आयोजनों में लिंग परीक्षण कराया जाने लगा| इस परीक्षण में महिला के खून में टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन के स्तर को देखा जाता है| टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन मुख्यतः पुरुषों में पाया जाता है| महिलाओं में भी यह हार्मोन एक निश्चित मात्रा में पाया जाता है| लेकिन उस मात्रा से अधिक होने पर अंतर्राष्ट्रीय एथलेटिक संघ महिला को महिला वर्ग की प्रतियोगिता में भाग लेने से रोक देता है|
लिंग सत्यापन परीक्षण में असफल होने पर महिला खिलाड़ियों का कैरियर तो बर्बाद हो ही जाता है, साथ ही सामाजिक जीवन में भी उन्हें अनेक तरह के अपमान और लांछन झेलने पड़ते हैं| कई खिलाड़ी तो इस शर्मनाक परिस्थिति से घबरा कर आत्महत्या तक कर लेती हैं|
लिंग परीक्षण के बाद इन खिलाड़ियों का जीवन बर्बाद हो गया
नेशनल और एशियाई खेलों में 100, 200 मीटर में पदक जीतने वाली दुति चंद ओलंपिक से ठीक पहले लिंग परीक्षण में फेल हो गईं थी | IAAF की हाइपरएंड्रोजिनिज्म नीति के तहत ऐथलेटिक्स फेडेरेशन ऑफ़ इंडिया ने 2014 में दुति चंद को बैन कर दिया था | दुति ने 2015 में इसे कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन ऑफ़ स्पोर्ट्स (CAS) में चुनौती दी| CAS ने दो साल के लिए हाइपरएंड्रोजिनिज्म नीति को स्थगित कर दुति को अंतर्राष्ट्रीय खेलों में भाग लेने की छूट दी|
एशियाड 2006 में 800 मीटर की दौड़ में सिल्वर मैडल जीतने वाली शांति सुंदरराजन की किस्मत दुति चंद जितनी अच्छी नहीं थी| लिंग परीक्षण में फेल होने के बाद शांति के पास अपने ऊपर लगे प्रतिबंध के खिलाफ केस करने के पैसे भी नहीं थे| थक हार कर उन्होंने अपना पेट पालने के लिए मजदूरी करना शुरू कर दिया| एक बार उन्होंने खुदख़ुशी करने की कोशिश भी की| एशियाड गोल्ड मेडलिस्ट पिंकी प्रमाणिक पर भी पुरुष होने का आरोप लगा था|
फ़िल्म ‘Rashmi Rocket’ की कहानी में इन सब खिलाड़ियों की त्रासदी झलकती है |
फ़िल्म ‘Rashmi Rocket’ की कहानी
गुजरात के भुज क्षेत्र की रश्मि वीरा (तापसी पन्नू) दौड़ने में इतनी तेज़ थी कि सारा गाँव उसे रॉकेट बुलाता था| बचपन में घटी एक त्रासद घटना के बाद रश्मि ने दौड़ना छोड़ दिया था| दौड़ने को लेकर एक डर उसके मन में बैठ गया| बड़े होकर वह टूरिस्ट गॉइड का काम करने लगी| सेना के एथलीट कैप्टन गगन (प्रियांशु पेन्युली) जब रश्मि से मिलते हैं तो उसकी तेज गति से बहुत प्रभावित होते हैं| वह रश्मि के भीतर बैठे डर को दूर करते हैं और उसे प्रोफ़ेशनल रनर की ट्रेनिंग लेने के लिए मनाते हैं| रश्मि राज्यस्तरीय खेलों में भाग लेती है और अपनी प्रतिभा के बल पर सबका ध्यान खींचती है| इंडियन एथलीट एसोसिएशन के भीतर भी रश्मि की प्रतिभा की चमक पहुँचती है| कुछ लोगों का मत था कि रश्मि को राष्ट्रीय टीम में मौका देना चाहिए जबकि एसोसिएशन के सीनियर सेलेक्टर दिलीप चोपड़ा (वरुण बडोला) रश्मि को टीम में लिए जाने के पक्ष में नहीं थे| उनका कहना था कि रश्मि में प्रतिभा है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मुकाबलों में उतरने के लिए ज़रूरी ट्रेनिंग और माइंडसेट नहीं है| भीतर ही भीतर दिलीप चोपड़ा राष्ट्रीय टीम में अपनी बेटी निहारिका चोपड़ा के भविष्य को लेकर सशंकित हो उठे थे| दिलीप चोपड़ा की अनिच्छा के बावजूद चयन समिति में बहुमत के फैसले के आधार पर रश्मि वीरा नेशनल टीम का हिस्सा बन जाती हैं| वह नेशनल ट्रेनिंग सेंटर के माहौल में खुद को ढाल पाती, इससे पहले ही अंदरूनी राजनीति के शिकंजे उसके चारों ओर कसने लगते हैं| रश्मि से पहले टीम में सबसे तेज़ रनर दीपक चोपड़ा की बेटी थी| एशियाई खेलों में निहारिका चोपड़ा की जगह रश्मि अपने प्रदर्शन से सारी वाहवाही लूट ले जाती है| यहीं से उसकी मुश्किलें शुरू होती हैं क्योंकि रश्मि की सफलता टीम और एसोसिएशन में कुछ लोगों को हज़म नहीं हो पा रही थी|
एसोसिएशन की तरफ से रश्मि को बिना विश्वास में लिए उसका लिंग परिक्षण कराया जाता है| उसके साथ अपमानजनक व्यवहार किया जाता है| जाँच के नतीजे में यह बात सामने आती है कि रश्मि के शरीर में टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन का स्तर लड़कियों की तुलना में बहुत अधिक है| फिर क्या था सबने यह मान लिया कि उसने धोखाधड़ी की है और वास्तव में वह लड़का है| पुलिस रश्मि को यह कहते हुए थाने उठा ले जाती है कि लड़का लड़कियों के हॉस्टल में घुस आया है| उधर एसोसिएशन ने रश्मि के प्रतियोगिता में भाग लेने पर बैन लगा दिया| क्या रश्मि ने सचमुच धोखाधड़ी की थी या फिर किसी गहरी साजिश का शिकार हुई थी? लिंग परीक्षण के झटकों को झेलकर भी क्या वह एक बार फिर रॉकेट की तरह उड़ान भर पाएगी? फ़िल्म ‘रश्मि रॉकेट’ इन प्रश्नों का उत्तर देती है|
अंत में
इसमें कोई दो राय नहीं है कि अकर्ष खुराना फ़िल्म के माध्यम से एक बहुत ज़रूरी और नए विषय को सामने ले आए हैं| लेकिन अच्छे विषय पर अच्छी फ़िल्म तभी बन सकती है, जब पठकथा के स्तर पर भी विचार को बखूबी विस्तार मिले| ‘Rashmi Rocket’ में पटकथा लेखक अनिरुद्ध गुहा और कनिका ढिल्लन यहीं मात खा जाते हैं|
तापसी पन्नू सक्षम अभिनेत्री हैं, उन्होंने अपनी तरफ से बहुत मेहनत भी की है जो स्क्रीन पर नज़र आती है| लेकिन रश्मि वीरा का चरित्र जिन विकट समस्याओं से जूझ रहा है, उसकी गंभीरता दर्शकों तक अच्छे से पहुँच पाती अगर उसे थोड़ा और मनोवैज्ञानिक विस्तार दिया जाता| प्रियांशु पेन्युली हमेशा साथ खड़े रहने वाले पति की भूमिका में जमें हैं| वरुण बडोला, सुप्रिया पाठक के हिस्से में जितना आया, उन्होंने बखूबी किया|
‘Rashmi Rocket’ ज़ी5 पर देख सकते हैं|
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