Wednesday, May 1, 2024

Piper (पायपर) Hindi Review: डर के आगे जीत ही नही, जीवन भी है

सरल होना सबसे मुश्किल होता है | सरल सी अभिव्यक्ति में अगर जीवन का अक्स भी झलकता हो तो वह देखने-सुनने वालों के सीधे दिल में उतर जाती है | 6 मिनट की एनिमेशन फ़िल्म ‘पायपर’ (Piper) ऐसी ही एक सरल, सहज सी सिनेमाई अभिव्यक्ति है जो दिल को छूती है | 


‘पायपर’ (Piper) फ़िल्म में सेंडपायपर, जिसे हमारे यहाँ टिटिहरी कहा जाता है, के बच्चे की कहानी है | सेंडपायपर का एक झुण्ड समुद्रतट के करीब रहता है | बच्चा ‘पायपर’ और उसकी माँ भी इस झुण्ड का हिस्सा हैं | पायपर भूखा है और चाहता है कि माँ खाना लाकर मुँह में डाल दे | जबकि माँ को लगता है कि पायपर खुद से खाने का इंतजाम करना सीखे क्योंकि उसका अस्तित्व इस व्यावहारिक ज्ञान पर टिका हुआ है | वह पायपर को बाकी टिटिहरियों की तरह तट पर जाकर खाना खोजने के लिए कहती है | माँ के कहने पर पायपर पहली बार तट पर पहुँच तो जाता है लेकिन अनुभव न होने और बाल सुलभ उत्सुकता के कारण लहरें आने पर वह अपने झुण्ड के बाकि लोगों की तरह उड़ कर दूर नही जा पाता है और लहरों में भीग जाता है | पहले अनुभव से नन्हा पायपर सहम जाता है | उसके मन में पानी को लेकर डर बैठ जाता है | वह इतना ज्यादा डर जाता है कि दुबारा तट पर जाने की उसकी हिम्मत नही पड़ती | पायपर लहरों के डर से पत्थरों के पीछे छुपा बैठा होता है कि तभी उसकी नज़र एक नन्हे केकड़े पर पड़ती है जो चतुराई के साथ लहरों का सामना कर रहा था | जैसे ही लहर आती केकड़ा रेत के नीचे घुस जाता और लहर के लौटने के बाद अपना भोजन तलाशता | केकड़े की देखा-देखी पायपर भी लहर आने पर रेत के अन्दर घुस गया | पानी के अन्दर चंद सेकेण्ड रहने से उसके सामने एक नई दुनिया खुली | अब उसे झुण्ड के बाकी लोगों की अपेक्षा ज्यादा मालूम था कि सीप कहाँ-कहाँ है, क्योंकि उसने पानी का सामना किया था | लहर के वापस लौटने पर उसने ना केवल अपने लिए बल्कि अपने साथियों के लिए भी खूब सारा भोजन इकठ्ठा किया | पायपर की कहानी से गुज़रते हुए ज़हन में लगातार सोहन लाल द्विवेदी की यह पंक्तियाँ गूंजती रहती हैं –

“लहरों से डरकर नौका पार नही होती,

कोशिश करने वालों की हार नही होती”

बार-बार लहरों का सामना करने के बाद पायपर का पानी को लेकर भय जाता रहा और वह अपने समूह के लिए बेहद उपयोगी सदस्य भी बन गया | 

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एलन बारिलारो (Alan Barillaro) की यह सरल सी फ़िल्म अपने भीतर बेहद मूल्यवान जीवन सूत्र समेटे हुए है | पायपर की कहानी बताती है कि जब हम अपने सबसे बड़े डर का मुकाबला करते हैं तभी जीवन के असल रहस्य हमारे सामने खुलते हैं | 

‘पायपर’ (Piper) का निर्माण पिक्सर एनिमेशन स्टूडियो (Pixar Animation Studio) ने किया है | फ़िल्म ने वर्ष 2016 में सर्वश्रेष्ठ एनिमेटेड शॉर्ट फ़िल्म का ऑस्कर आवर्ड भी जीता था | फिल्म के निर्देशक एलन बारिलारो, (Alan Barillaro) 1997 से पिक्सर स्टूडियो के साथ बतौर एनिमेटर जुड़े रहे हैं, ‘पायपर’ की कहानी इन्होंने ही लिखी है और निर्देशक के तौर पर यह बारिलारो की पहली फ़िल्म है | इस फिल्म को बनाने का ख्याल बारिलारो को कैसे आया इससे जुड़ा एक रोचक किस्सा है | बारिलारो पिक्सर स्टूडियो से थोड़ी दूर स्थित समुद्री तट पर घूमने गए थे | उन्हें वहाँ हजारों की संख्या में पक्षी दिखे | वे अपने खाने की तलाश के लिए तट पर आते और जैसे ही लहर आती उड़ कर थोड़ी दूर चले जाते | लहर वापस लौट जाने पर सीप व रेतीले कीड़े खाने के लिए पक्षी फिर से तट पर आ जाते | ऐसा वे दिन भर करते रहते | अपने भोजन के लिए पक्षियों का समुद्र की लहरों के साथ यह संघर्ष देखकर ही बारिलारो के ज़ेहन में ‘पायपर’ बनाने का विचार आया | 

अपनी फ़िल्म के चरित्र पायपर की ही तरह निर्देशक एलन बारिलारो के सामने भी पहली बार निर्देशन करने के भय से उबरने की चुनौती रही होगी | इस चुनौती का सामना करने के लिए एलन बारिलारो ने फ़िल्म की हर छोटी-बड़ी बातें पर बारीकी से काम करते हुए फ़िल्म को बनाने में तीन साल का समय लिया | समुद्र तट के परिवेश, तटीय पक्षियों के व्यवहार का गहन निरीक्षण और अनुसंधान किया | लम्बी कठिन मेहनत के परिणाम के रूप में ‘पायपर’ सरीखी शानदार फ़िल्म हमारे सामने है | 

‘पायपर’ (Piper) में एक भी संवाद नही है | केवल पक्षियों और समन्दर की लहरों की ध्वनियाँ है | यह ध्वनियाँ एनिमेशन के शाहकार नमूने दिखाते तटीय दृश्यों के साथ मिलकर बेहद प्रभावी लगती हैं | निर्देशक और उनकी टीम ने कई जगहों पर इसका ज़िक्र किया है कि रेत, पानी और पँखों पर काम करना सबसे मुश्किल था | पायपर जब भीगा होता है ,जब भूखा होता है या जब डरा होता है तीनों ही स्थितियों में उसके पँखों को अलग तरह से नज़र आना था | यह अंतर दिखाने में वह सफल रहे | लहरों के साथ रेत का खिसकना, माँ और बच्चे के व्यक्तित्व को उभारने वाले छोटे-छोटे पहलुओं के देखकर हमें टीम की तकनीकी महारत का अंदाज़ा होता है | तकनीकी कुशलता के साथ ही फ़िल्म का भावनात्मक पहलू भी बेहद मज़बूत है | एलन बारिलारो ने कुछ मिनट की फ़िल्म में जीवन की विश्वसनीय छवि पेश की है | 


‘पायपर’ (Piper) शॉर्ट फ़िल्म डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर उपलब्ध है |

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Suman Lata
Suman Lata
Suman Lata completed her L.L.B. from Allahabad University. She developed an interest in art and literature and got involved in various artistic activities. Suman believes in the idea that art is meant for society. She is actively writing articles and literary pieces for different platforms. She has been working as a freelance translator for the last 6 years. She was previously associated with theatre arts.

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