हाल ही में नेटफ्लिक्स और जिओ सिनेमा पर कृति सेनन, पंकज त्रिपाठी अभिनीत फ़िल्म मिमी (MIMI) आई है | निर्देशक लक्ष्मण उतेकर की यह फ़िल्म अपने विषय को लेकर काफी चर्चा में रही | मिमी में सेरोगेसी (किराए की कोख) को कहानी का विषय बनाया गया है | इसमें कोई दो राय नही है कि एक समाज के तौर पर हम समलैंगिकता, सेरोगेसी जैसे मुद्दों पर खुलकर बात नही करते हैं | इसीलिए जब भी इन विषयों पर फ़िल्म बनती है तो उनकी ख़ूब चर्चा होती है और अक्सर ही उनसे कोई ना कोई विवाद भी जुड़ जाता है | फ़िल्म किस विषय पर बनी है, केवल इस आधार पर प्रशंसा या विरोध होना ठीक नहीं लगता | फ़िल्म बनाने वालों का उस विषय पर नज़रिया क्या है ? विषय को किस दृष्टिकोण से फ़िल्माया गया है ? अंततः फ़िल्म कहना क्या चाहती है जैसे अनेक बिंदु होते हैं जिसके आधार पर फ़िल्म को लेकर कोई राय बनाई जानी चाहिए |
2011 में समृद्धि पोरे की मराठी फिल्म ‘माला आई व्याहची !’ आई थी | उस वर्ष मराठी की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी इसी फ़िल्म को मिला था | ठीक दस साल बाद लक्ष्मण उतेकर इसी मराठी फ़िल्म पर आधारित फ़िल्म मिमी (MIMI) ले कर हाज़िर होते हैं |
दोनों ही फिल्मों में सेरोगेसी का मुद्दा केंद्र मे है | सेरोगेसी के बहाने फिल्म मातृत्व की व्याख्या भी करती है | ‘माला आई व्याहची !’ और मिमी (MIMI) दोनों फ़िल्में एक ऐसी ज़रूरतमंद औरत की कहानी कहती हैं जो पैसे के लिए अपनी कोख़ किराए पर देने को तैयार हो जाती हैं | इनकी कोख में विदेशी बच्चे पलते हैं लेकिन जन्म से पहले ही जैविक माँ-बाप बच्चे को लेने से इंकार कर देते हैं | कोख किराये पर देने वाली औरत मझधार में फंस जाती हैं कि क्या करे ? मातृत्व के आदर्श के सहारे किसी तरह इस संकट से उबरती है | लेकिन कुछ सालों बाद उन्हें ‘असली माँ कौन है’, के यक्ष प्रश्न का सामना करना पड़ता है |
फ़िल्म में विदेशी नागरिक भारत में अपने बच्चे पैदा करने के लिए क्यूँ आते हैं ? ऐसा इसलिए क्योंकि भारत में सेरोगेसी को 2002 में वैधानिक मान्यता दे दी गई थी | इससे जुड़े नियम-कानून भी कमज़ोर थे | दूसरे देशों की तुलना में भारत में सेरोगेसी सस्ती होने की वजह से बड़ी संख्या में विदेशी लोग सेरोगेट माँ के लिए भारत आने लगे | 2012 आते-आते देश में सेरोगेसी का व्यापार लगभग 2 अरब डॉलर का हो चुका था | इस समय तक भारत व्यावसायिक सेरोगेसी का गढ़ बन गया था | लेकिन यह सारा कारोबार जिनके बलबूते फल-फूल रहा था उन महिलाओं की समस्याओं की तरफ किसी का ध्यान नहीं था | ऐसी कई घटनाएँ आने लगी जिनमें बच्चे के शारीरिक या मानसिक रूप से असामान्य होने पर जैविक माँ-बाप ने बच्चे को अपनाने से इंकार कर दिया | यहाँ तक कि जुड़वाँ बच्चे होने पर स्वस्थ बच्चे को स्वीकार कर लिया जाता और बीमार बच्चे को छोड़ कर चले जाते | कई बार सेरोगेट माँ भी बच्चे से भावनात्मक लगाव हो जाने के कारण बच्चा देने से माना कर देती थी | सेरोगेसी से जुड़े ऐसे कई प्रश्न थे जिनके उत्तर खोजने की कवायद चल रही थी | उस उलझे हुए समय में समृद्धि पोरे मराठी फिल्म ‘माला आई व्याहची !’ के माध्यम से इन प्रश्नों से टकराने का साहस दिखाती हैं और अपने समय से संवाद करती हुई चलती हैं, लेकिन यही बात मिमी के लिए नही कही जा सकती है |
‘माला आई व्याहची !’ के बाद मिमी (MIMI) बनने के बीच दस साल का समय गुज़र चुका था | इन दस सालों में गंगा में बहुत सारा पानी बह गया | सन 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने व्यवसायिक सेरोगेसी पर पूरी तरह से रोक लगा दिया | सेरोगेसी की अनियमितताओं को दूर करने के लिए सख्त कानून बनाने की प्रक्रिया भी चल रही है | 2015 के बाद से कोई भी विदेशी नागरिक अथवा दंपत्ति भारत में सेरोगेसी नहीं करा सकते हैं | न ही कोई औरत पैसे के लिए अपनी कोख किराए पर दे सकती है | इसीलिए मिमी फिल्म में 2013 का समय रखा गया है | यूँ तो फिल्म तथ्यात्मक रूप से गलत नही है | लेकिन मिमी (MIMI) सेरोगेसी से जोड़कर जिस परिवेश की पड़ताल कर रही है, उसमें अब तक बहुत बदलाव आ चुके हैं | अब हमारे सामने सेरोगेसी को लेकर नए प्रश्न हैं जैसे नए कानून केवल विवाहित दंपत्ति को सेरोगेसी के माध्यम से बच्चे पाने का अधिकार देता है, जबकि अविवाहित व्यक्तियों, समलैंगिकों को इस दायरे से बाहर रखा गया है | सेरोगेट माँ बनने के लिए भी महिला का विवाहित और जैविक माँ-बाप का निकट संबंधी होना ज़रूरी है | सेरोगेसी से जुड़े सुप्रीमकोर्ट के निर्णय के आधार पर नए नियम को बनाने की क़वायद शुरू होने के बाद हमारे सामने अन्य नई तरह की आशंकाएं हैं और कुछ बिन्दुओं पर विरोधाभास भी मौजूद है | मिमी फिल्म के लेखक, निर्देशक रोहन शंकर और लक्ष्मण उतेकर इन नए प्रश्नों से टकराने का जोखिम नही उठाते | बेहतर होता अगर लेखक रोहन शंकर और लक्ष्मण उतेकर ‘माला आई व्याहची !’ की सीधी-साधी गाँव की औरत यशोदा को शहर की बिंदास मिमी में बदलने के साथ-साथ भारत में सेरोगेसी में आए बदलावों को शामिल करते हुए मौजूदा समय की फिल्म बनाते |
हालांकि मिमी (MIMI) फ़िल्म ठीक-ठाक बनी है | कृति सेनन ने कुछ भावनात्मक दृश्यों में अच्छा काम किया है और पंकज त्रिपाठी हमेशा की तरह अपना रंग जमाते हैं | थोड़ी कॉमेडी और थोड़े ड्रामे का तड़का भी है |
मिमी (MIMI) आप नेटफ्लिक्स और जिओ सिनेमा पर देख सकते हैं |
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