Saturday, April 20, 2024

Toofaan | तूफ़ान : कमज़ोर पठकथा, शानदार अभिनय

अभिनेता फ़रहान अख्तर और निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा की जोड़ी ने ‘भाग मिल्खा भाग’ के बाद एक बार फिर खेल पर आधारित फ़िल्म तूफ़ान (Toofaan) में साथ काम किया है | ‘भाग मिल्खा भाग’ वास्तविक कहानी थी | जबकि तूफ़ान काल्पनिक कहानी है | इस फिल्म का आईडिया फ़रहान अख्तर का है जिसे स्क्रीनप्ले में ढाला है, राजाबली ने |

तूफ़ान (Toofaan) अजीज़ (फ़रहान अख्तर) नाम के एक ऐसे यतीम की कहानी है जिसे मुंबई के डोंगरी इलाके के स्थानीय गैंगस्टर शौक़त (विजय राज) ने पाला है | जाहिर है अजीज़, गैंगस्टर शौक़त के लिए वसूली और मारपीट का काम करता है | डोंगरी में अजीज़ का खौफ़ है | गुंडा-बदमाश होने के बाद भी वह भले दिल का ईमानदार आदमी है | उसे लोगों की आँखों में अपने लिए दहशत नहीं, इज्ज़त देखने की तमन्ना है | लोकल जिम के मालिक से उसे पता चलता है कि नियम-क़ायदे वाली मारपीट मतलब बॉक्सिंग में इज्ज़त और शौहरत दोनों है | बॉक्सिंग सीखने के लिए वह महाराष्ट्र के द्रोणाचार्य कहे जाने वाले नाना प्रभु (परेश रावल) के पास जाता है | नाना प्रभु निजी ज़िन्दगी की त्रासद घटना के कारण मुसलमानों पर विश्वास नहीं करते हैं | वह अजीज़ को तल्ख़ लहजे में यह कहते हुए कोचिंग देने से माना कर देते हैं कि “डोंगरी से हो या दुबई से बात तो एक ही है |” लेकिन नाना प्रभु की तल्खी से बड़ा था, उनका बॉक्सिंग से जुड़ाव | अज़ीज़ की लगन और मेहनत को देखते हुए नाना प्रभु उसे बॉक्सिंग सिखाने को तैयार हो जाते हैं | बॉक्सिंग में लगी चोट के कारण अजीज़ की मुलाकात नाना प्रभु की बेटी डॉक्टर अनन्या (मृणाल ठाकुर) से होती है | अब बॉक्सिंग के रूप में अजीज़ के जीवन में एक दिशा, सार्थकता है और उसके इरादों को मज़बूत बनाने वाले प्रेम के रूप में अनन्या का साथ भी है | जल्द ही अजीज़ अली बॉक्सिंग की दुनिया का चमकता हुआ सितारा बन जाता है | लेकिन तभी उसकी ज़िन्दगी में भूचाल आता है | जिसके कारण गुरु नाना प्रभु उससे दूर चले जाते हैं | बाद में अजीज़ की बॉक्सिंग की दुनिया भी ना चाहते हुए उससे छूट जाती है | अजीज़ अली का इज्ज़त के साथ जीने का सपना पूरा हो पता है या नहीं ? कोच नाना प्रभु का साथ उसे वापस मिलता है कि नही ? अनन्या और अजीज़ का प्रेम किसी मुकाम पर पहुँचता है या नहीं ? यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा | हालाँकि एक सजग दर्शक के लिए इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है | 

फिल्म की कहानी में कोई नयापन नही है | सब कुछ देखा-जाना-सुना लगता है | आपके सारे अनुमान सही साबित होते है कि आगे क्या होने वाला है | इन सबके बाद भी 2 घंटे 41 मिनट की लम्बी फ़िल्म आप देख जाते हैं, जिसकी वजह अभिनेताओं का शानदार अभिनय है | हम जानते हैं कि अक्सर अच्छी कहानी ही किसी फिल्म मजबूत आधार होती है | लेकिन तूफ़ान (Toofaan) इसका अपवाद है | अपनी कमज़ोर कहानी और सुस्त स्क्रीन प्ले के बावजूद अच्छे अभिनेताओं की टीम फ़िल्म को सम्मानजनक परिणति तक पहुंचा देती है | 

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परेश रावल ने नाना प्रभु के किरदार को बेहतरीन तरीके से निभा कर यह दिखाया है कि उनके भीतर अभी कितना दम-ख़म बाकी है | इस किरदार में कई शेड्स हैं | बॉक्सिंग का सख्त कोच, पत्नी की स्मृतियों में जीता एक भावुक पति, बेटी के भविष्य को लेकर परेशान पिता, अपने विचारों को जीता हुआ, पूर्वाग्रहों से घिरा एक शख्स | परेश रावल ने सारे ही भाव बेहद सहजता से अभिनीत किये हैं | कई दृश्यों में तो वह अपने चेहरे के हाव-भाव से इतना कुछ बोल देते हैं कि संवाद की आवश्यकता ही महसूस नही होती है  |  

फ़रहान अख्तर अपने रोल के लिए बहुत मेहनत करते हैं | तूफ़ान (Toofaan) में भी उनकी मेहनत साफ़ नज़र आती है | खास तौर से शारीरिक स्तर पर | फ़रहान बेहद सक्षम अभिनेता हैं | लेकिन तूफ़ान (Toofaan) में जब तक गैंगस्टर शौकत के लिए काम करने वाले अजीज़ उर्फ़ ‘अज्जू भाई’ का दौर चलता है, तब तक वह चरित्र के साथ संघर्ष करते लगते हैं | लेकिन जैसे ही ‘अजीज़ अली बॉक्सर’ और परिवारिक जीवन वाले दौर में फिल्म पहुँचती है, फ़रहान का अभिनय चमकने लगता है | गहरे दुःख के साथ बोला गया उनका संवाद ‘ऐसे कोई माथे पर लिखता है ?’ दिल को छू लेता है | 

मृणाल ठाकुर फ़िल्म में अच्छी लगती हैं | उनके अभिनय में सहजता है | मुश्किल यह है कि उनके चरित्र को ना तो स्क्रीन पर ज्यादा समय दिया गया है, ना ही अच्छे से लिखा गया है | फिर भी वह याद रह जाती हैं, यह क्या कम है |

इनके अतिरिक्त मोहन अगाशे और सुप्रिया पाठक के हिस्से में जितने भी सीन आए हैं, उसे उन्होंने बखूबी निभाया है | अजीज़ के दोस्त मुन्ना के रूप में हुसैन दलाल ने अपने अभिनय से ध्यान खींचा है | दर्शन कुमार भी तूफ़ान (Toofaan) के प्रतिद्वंदी की भूमिका में अच्छा काम कर गए हैं | अजीज़ के गॉडफादर बने विजय राज ने सीन की ज़रूरत के मुताबिक काम किया है |

बॉक्सिंग की पृष्ठभूमि वाली फिल्म में जाहिर है कि बहुत सारी बॉक्सिंग होनी थी | ऐसे में अभिनेताओं का प्रोफेशनल बॉक्सर लगना ज़रूरी था | फ़रहान अख्तर की तारीफ़ करनी होगी कि वह बॉक्सिंग करते हुए बहुत विश्वसनीय लगते हैं | निश्चित ही इसके लिए उन्हें सघन प्रशिक्षण से गुज़ारना पड़ा होगा | 

जावेद अख्तर ने फिल्म के लिए कुछ अच्छे गीत लिखे हैं | लेकिन शंकर एहसान लॉय के बेअसर संगीत के कारण गीत अपनी छाप नही छोड़ पाते हैं | 

यूँ तो फिल्म लव जिहाद, हिन्दू-मुस्लिम समुदाय के बीच सामाजिक दूरियां, आपसी सौहार्द, ग़रीबी, मैच फिक्सिंग और खेल संस्थाओं के भ्रष्टाचार जैसे कई मुद्दों को ऊपर-ऊपर से छूती है लेकिन मूलतः तूफ़ान (Toofaan) की कहानी प्रेम की ज़मीन पर खड़े साहस और ज़ज्बे की कहानी है | निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा पहले ‘रंग दे बसंती’ और ‘भाग मिल्खा भाग’ जैसी सफल और सार्थक फ़िल्में दे चुके हैं | इस फ़िल्म में वह पूरे शबाब पर नही हैं | फिर भी सामान्य से स्क्रीनप्ले पर राकेश ओमप्रकाश मेहरा अनुभव के आधार पर बिना भटके हुए एक ऐसी फ़िल्म बना गए हैं, जिसे देखने के बाद यह नही लगता है कि समय बर्बाद हो गया |


तूफ़ान (Toofaan) अमेज़न प्राइम वीडियो पर उपलब्ध है।

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Suman Lata
Suman Lata
Suman Lata completed her L.L.B. from Allahabad University. She developed an interest in art and literature and got involved in various artistic activities. Suman believes in the idea that art is meant for society. She is actively writing articles and literary pieces for different platforms. She has been working as a freelance translator for the last 6 years. She was previously associated with theatre arts.

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