जीवन की सार्थकता उसकी लंबाई में नहीं बल्कि कर्म में है। अमेरिकन गीतकार, संगीतकार और नाटककार जॉनाथन डेविड लार्सन का जीवन केवल 35 साल (4 फरवरी 1960 – 25 जनवरी 1996) का था लेकिन इस बेहद ही कम लंबाई वाले जीवन में अपनी प्रतिभा, जुनून, जोश आदि से उन्होंने जो अर्जित किया वो किसी सपने जैसा है। वो कहते हैं न कि कला के क्षेत्र में प्रसिद्धि कमाना आसान हो सकता है लेकिन सिद्धि कमाना न आसान है और न सबके बस की बात नहीं होती। उसे अर्जित करने में बहुत कुछ का त्याग करना होता है, जीवन के विभिन्न मोर्चे पर चुनौतियों का सामना, सबकुछ सहते हुए एक लंबे समय तक सही रास्ते पर शिद्दत के साथ लगे रहना पड़ता है, हवा, भूख, प्यास, उपहास आदि का सामना करना होता है और उसके पश्चात भी अगर कोई डिगे नहीं तब जाकर वो हासिल हो पाता है जिसका सपना इंसान ने देखा होता है। आसानी से हासिल हुई प्रसिद्धि उतनी ही आसानी से विलीन भी हो जाता है लेकिन ख़ून-पसीने से अर्जित सिद्धि अनुपस्थिति में भी अपनी महक बिखेरती रहती है। टिकता वही है जिसमें जुनून, जोश, प्रतिभा, तकनीक और पागलपन का पसीना मिला होता है। लार्सन का ब्रॉडवे संगीतमय नाटक ‘Tick, Tick Boom’ की कथा भी एक ऐसे ही कलाकार के बारे में है। यह अलग से बताने की ज़रूरत नहीं है कि इस फ़िल्म की कथा उनके नाटक ‘Tick, Tick Boom’ को ही अपना आधार बनाती है और सिनेमा के पटल पर एक यादगार सिनेमाई कृति को बड़ी ही शालीनता और तकनीकी दक्षता के साथ प्रस्तुत करती है।
फ़िल्म आत्मकथात्मक और वर्णनात्मक (narrative) शैली में परिकल्पित की गई है और यह अलग से बताने की आवश्यकता नहीं है कि नाटक की शैली भी मूल रूप से यही थी। ‘Tick, Tick Boom’ नाटक और फ़िल्म दोनो एक संगीतमय ओपेरा लेखक/परिकल्पक कलाकार और उसके निजी और व्यावसायिक संघर्ष के बारे में है, इसलिए फ़िल्म की गति भी संगीत की गति की तरह ही है; जो कभी स्थाई में चलता है, कभी दुगुन तो कभी चौगुन का रास्ता पकड़कर उड़ान थामता है और फिर वापस स्थाई पर लौट आता है। यह प्रक्रिया पूरे फ़िल्म में बड़ी ही कुशलतापूर्वक संचालित होता रहता है और फ़िल्म एक क्षण के लिए कहीं भी अपनी पकड़ और असर हल्का नहीं पड़ने देती; इस बात के लिए चुस्त पटकथा के लिए स्टीवेन लेबेसन, संपादन के लिए एलिस ब्रुक्स और निर्देशन के लिए लीन मैनुएल मिरांडा की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है।
‘Tick, Tick Boom’ के गीत और संगीतकार के रूप में जॉनाथन डेविड लार्सन हैं और यह अलग से कहने की आवश्यकता नहीं है कि फ़िल्म के गीत, संगीत का पक्ष अलौकिक हैं, जिसके जादू में आप लंबे समय तक बंधे रह जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। वैसे भी यह धुनें पहले से ही लोगों में प्रसिद्ध हैं। ज्ञातव्य हो कि विदेशों में संगीत लिपिबद्ध करने की परम्परा है इसलिए वहां के संगीत को पुनर्जीवित करने का कार्य आसानी से किया जा सकता है। लार्सन के संगीत को इस फ़िल्म में ग्रेग वेल्स (mixing) और स्टीफेंस गिज़िककी (music supervised) ने बाख़ूबी पुनसृजित किया है तो श्रेय इनको भी जाना ही चाहिए। जहां तक सवाल अभिनय का है तो एंड्रयू गारफील्ड, एलेक्ज़ेंडर शिप्प, रोबिन डे ज्यूस, जोशुआ हेनरी, जूडिथ लाइट और वनेशा हुडगेन्स आदि अभिनेताओं का काम कथ्यानुकूल व उपयुक्त है और लगभग हर अभिनेता अपने चरित्रानुकूल ही संगीतमय भाग को भी बाख़ूबी न केवल अभिनीत और प्रदर्शित करता है बल्कि अपने चरित्र के दायरे को समझकर उसे बाख़ूबी जीता भी है।
ऐसी फ़िल्में हमें यह सिखलातीं हैं कि कैसे फ़िल्म का संगीत ठूंसा हुआ नहीं बल्कि फ़िल्म का ही एक बेहद आवश्यक हिस्सा होतीं हैं। इस फ़िल्म के लिए अभिनेता एंड्रयू गारफील्ड इस साल ऑस्कर के लिए भी नामित हैं। ज्ञातव्य हो कि एंड्रयू स्पाइडरमैन सीरीज़ के फ़िलहाल स्पाइडरमैन भी हैं।
‘Tick, Tick Boom’ आप Netflix पर देख सकते हैं|