विश्वप्रसिद्ध प्रशिक्षण केंद्र राडा (Royal Academy of Dramatic Art, London) से प्रशिक्षित सर फिलिप एंथोनी हॉब्किन्स का नाम आज दुनिया के सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं में शुमार है और हो भी क्यों न, जिस अभिनेता के हिस्से में द साइलेन्स ऑफ लैम्ब, रेड ड्रैगन, द रिमेन्स ऑफ डेज, निक्सन, अमिस्टेड, द टू पोप्स आदि फिल्मों में एक से एक शानदार चरित्र को बड़ी ही कुशलतापूर्वक अभिनीत करने की श्रेष्ठ उपलब्धि हो, और विश्व सिनेमा जगत में ऑस्कर समेत कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित होने का स्वभाग्य प्राप्त हो, उसे आज अभिनय का पितामह नहीं तो और क्या कहा जाएगा? किसी ने यह सच ही कहा है कि जैसे-जैसे एक कलाकार की उम्र बढ़ती जाती है उसकी कला वैसे-वैसे जवान होती जाती है। अपनी उम्र के 83वें पड़ाव पर हॉब्किन्स फिल्म द फादर (The Father) में अभिनय के जो आयाम रचते हैं वो अभिनय के किसी अद्भुत अध्याय से कमतर तो नहीं ही माना जा सकता है और यह कोई आश्चर्य का विषय नहीं रह जाता है जब हॉब्किन्स का नाम ऑस्कर जितने वाले सबसे उम्रदराज अभिनेताओं (83 साल और 115 दिन) में अंकित हो जाता है। उम्र के इस पड़ाव पर जहां अमूमन अधिकतम ज़िंदगियां जीवन से थेथरई करने को अभिशप्त हो जाती हैं, वहीं एक अभिनेता अभिनय के नए प्रतिमान गढ़ता है, यह इस बात का एक जीता जागता उदाहरण भी है कि उम्र का रोना रोना एक भगोड़ेपन के सिवा शायद ही कुछ और हो।
अभिनय क्या है? इसे शब्दों में अभिव्यक्त कर पाना शायद संभव नहीं है। यह संभव है कि यह एक जादू हो लेकिन यदि अभिनय एक जादू है तो भी वो जादू से नहीं होता! अब सवाल यह है कि जब अभिनय का जादू किसी जादू से पैदा नहीं होता तो फिर वो होता कैसे है? इसमें अलग-अलग अभिनेताओं की तैयारी अलग-अलग है, लेकिन इस बात से शायद की कोई इंकार करे कि यह एक तकनीकी, मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक तैयारी का नाम भी है। अब कौन सा अभिनेता अपने अभिनय तकनीक को कैसे साधता है, यह उसका अपना व्यक्तिगत चयन है। हॉब्किन्स ने अपने तकनीक को कुछ इस प्रकार साधा है कि चरित्र की निर्मति में उनका क्रॉफ्ट अलग से कभी नहीं दिखता बल्कि कठिन से कठिन पल भी वो इतनी सहजता और सरलता से उपस्थित करते हैं और करते रहे हैं कि देखने वाला बस फिदा होकर रह जाता है। द फादर (The Father) में भी वो जिस प्रकार पिता के मुश्किल चरित्र को कुशलता और सहजतापूर्ण प्रस्तुत करते हैं, वो अपनेआप में अनुकरणीय उदाहरण है। हालांकि यह भी सत्य ही है कि बेहतरीन कला में अनुकरणीय जैसा कुछ होता ही नहीं है।
सिनेमा एक सामूहिकता वाली कला है जहां बेहतरीन अभिनय की धुरी लेखक, निर्देशक और भिन्न-भिन्न प्रकार के तकनीकी विभागों के साथ ही साथ उसे देखने और पसंद या प्रोत्साहित करनेवालों पर टिका होता है। एक बेहद चुस्त और गहराइयों तक उतरनेवाली पटकथा, कुशल निर्देशन, फिल्मांकन, संपादन आदि और कला की बारीक समझ के बिना पैसाकमाऊ काम तो किया जा सकता है लेकिन अपने रसिकों की स्मृतियों में लम्बे समय के लिए अंकित हो जानेवाला काम असंभव है। द फादर (The Father) कई स्तरों पर स्मृतियों में अंकित हो जानेवाली फिल्म है।
क़रीब तेरह नाटक और आधा दर्जन उपन्यास के लेखक फ्लोरिन ज़ेलेर द्वारा परिकल्पित और निर्देशित यह फिल्म उनके ही लिखित नाटक फ्रेंच नाटक ले पेरा का सिनेमाई रूपांतरण है। इस फ्रेंच नाटक का पहला प्रदर्शन 20 सितम्बर 2012 में पेरिस के थियेटर हेबेर्टोट में होता है और सन 2014 में यह बेहतरीन नाटक के लिए मौलियर सम्मान से सम्मानित होता है। इस नाटक को दशक का बेहतरीन नया नाटक भी कहा जाता है। नाटक में रॉबर्ट हिर्सच और इसाबेला जेलिनास मुख्य भूमिकाओं को अभिनीत करते हैं। सन 2015 में फ्रेंच निर्देशक फिलिप ले गुए इस नाटक को आधार बनाके फ्लोरिदा नामक फिल्म बनाते हैं। इस फिल्म में भी 85 वर्षीय जीन रोचेफोर्ट का अभिनय बृहद सराहना होती है। ततपश्चात क्रिस्टोफर हैम्पटन के साथ ख़ुद ज़ेलेर इसी नाटक पर अंग्रेज़ी में एक पटकथा लिखते हैं और उसे एंथनी हॉब्किन्स, ओलिविया कोलमन, मार्क गंटिस, इमोजेन पूट्स, रफूज़ सेवेल्ल और ऑलिवर विलियम्स आदि अभिनेताओं के साथ छायाकार बेन स्मिथर्ड के चरित्र के अंतर्मन में समाहित हो जानेवाले और कथ्य के गहराई को और प्रखर बनानेवाले छायांकन के साथ अर्थवान तरीक़े से फिल्माया जाता है। कई बार कैमरा चरित्र की मनःस्थिति को रेखांकित करते हुए किसी एक स्थिर, ख़ाली और गतिविहीन दृश्य को स्टिल फ़ोटोग्राफ़ी के अंदाज़ में फिल्माता है तो कई दफ़ा खिड़की से बाहर भी किसी ताज़े हवा के झोंके की तरह झांकता है। लगभग पूरी फिल्म इंडोर और कुल मिलाकर आधे दर्जन चरित्रों के बीच ही फिल्माई जाती है, जहां कथ्य के नाम पर वाह्य से ज़्यादा चरित्र (फादर) का आंतरिक जगत है। जहां कल्पना, भ्रम और यथार्थ (?) जगत का भीषण घालमेल है। यहां सत्य और भ्रम का फासला लगभग मिट चुका है और घटनाक्रम नाटकीय से ज़्यादा द्वंद और काल्पनिक व स्मृति प्रधान है। ऐसी फिल्में लिखने, फिल्माने, अभिनय करनेवाले और बाकी पार्श्व में काम करनेवाले के साथ ही साथ देखनेवाले का भी एक तगड़ा इम्तेहान लेती है और अब यहां यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि यह फिल्म हर तरह से हर किसी के लिए एक यादगार अनुभव बन जाती है बशर्ते कि आप सिनेमा के नाम पर कूड़े-कचरे के आदी न हों।
द फादर (The Father) 2020 की ऑस्कर नॉमिनेटेड फिल्म है।
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