Monday, October 7, 2024

The Endless Trench : अनमोल जीवन की महागाथा

सन में लोकतंत्रवादियों और फासीवादियों के बीच 1936 से 1939 में स्पेन में गृहयुद्ध छिड़ता है और इस गृहयुद्ध में फासीवादी ताकतें उसमें सफलता प्राप्त करते हैं और अगले 36 साल यानि 1975 तक फासीवादी फ्रैकों स्पेन का शासक होता है। इस दौरान बहुत से लोकतंत्र के समर्थक और वामपंथी अपने घरों में ही किसी प्रकार छुपे रहे। ऐसे छुपे हुए लोगों को मोल (छुन्छुन्दर) कहा जाता है। यह वही काल है जब हिटलर और मुसोलिनी जैसे फ़ासीवादी ताकतें दुनिया को नर्क में झोंक रहे थे। The Endless Trench फिल्म ऐसे ही एक शख्स ब्लैंको की कहानी है जो लगभग तीन दशक तक घर के भीतर बने खंदक (Trench) में रहता है और एक दिन बाहर निकलता है और फिर पता चलता है कि इसे बहुत से लोग थे जो सच में इस प्रकार का जीवन जीने को अभिशप्त कर दिए गए थे क्योंकि वो जैसे ही बाहर निकलते, मार दिए जाते। यह सुनकर संभव हो कि आपको थोड़ा आश्चर्य हो लेकिन जो लोग भी विश्व इतिहास को जानते हैं उन्हें यह बात अच्छी तरह से मालूम है कि इंसानों ने इंसान के ऊपर बहुतेरे क्रूरता की है और वो क्रूरता किसी न किसी रूप में कमोवेश आज भी बड़े शान से जारी है। जिसे जब मौक़ा मिलता है अपने से असहमत होने वाले के ऊपर विभिन्न प्रकार के बहाने बनाकर क्रूरता के साथ पेश आता ही आता है। इस स्पैनिश फिल्म को लुइसो ब्रेदेजो और जोसे मारी गोनाजे ने लिखा और कुल तीन लोगों जॉन गेरानो, एतोर एरेगी और जोसे मारी गोनाजे इसे बिलकुल सरल और यथासंभव यथार्थवादी तरीक़े से कमाल की दृश्य-संरचना के साथ निर्देशित किया है।

The Endless Trench फिल्म के केंद्र में इतिहास और एतिहासिक घटनाक्रम है, इसे जानने और समझने के लिए तो यह फिल्म देखी ही जानी चाहिए लेकिन अगर आप सिनेमा के विद्यार्थी हैं तो आपको यह फिल्म पार्श्व ध्वनि (Background Sound) और फिल्मांकन के लिए अवश्य ही देखना चाहिए। फिल्म में कई ऐसे दृश्य हैं जो आपको दिखाई नहीं देते बल्कि दृश्य के स्थान पर कंदक में छुपा चरित्र दिखता है लेकिन ध्वनि से पुरे का पूरा दृश्य आपके सामने घटित होता है। यह ध्वनि प्रभाव (Sound Effect) के रूप में भी है और संवाद के रूप में भी और आपको पर्दे पर दिखता है केवल उस ध्वनि प्रभाव से उत्पन्न प्रभाव। मतलब कि एक ध्वनि का प्रभाव है, दूसरा उससे चरित्र पर पड़ता हुआ प्रभाव और इन दोनों को मिलाकर The Endless Trench आपके ऊपर एक तीसरा ही प्रभाव पैदा करती है। यह एक बहुत ही मुश्किल काम है और बहुत ही कम फिल्मों में ऐसा कुछ देखने, सुनने और समझने को मिलता है। दूसरा है इसका फिल्मांकन, बहुत ऐसे दृश्य हैं जहां चुकि चरित्र किसी छेद से या पर्दे के पीछे से झांक रहा होता है इसलिए वो दृश्य भी ऐसे ही झांकता हुआ या पर्दे के उस पार अस्पष्ट या कुछ कुछ स्पष्ट सा दिखता है और यह एक ऐसा प्रभाव पैदा करता है जैसे खंदक में केवल वह चरित्र नहीं है बल्कि इस फिल्म को देखनेवाला दर्शक भी जैसे उसका ही हिस्सा है बल्कि वो भी घटनाक्रम को झांक ही रहा है, चुपचाप और सतर्क। क्योंकि अगर किसी को पता चला कि यहां कोई छुपा हुआ है तो गए काम से। सारा खेल एक मिनट में ख़त्म क्योंकि सत्तासीन लोग आज भी अपने दुश्मनों को सबक सिखाने के लिए खोजबीन कर रहे हैं। यह सबकुछ देखते हुए ऐन फ्रैंक की विश्वप्रसिद्ध पुस्तक एक किशोरी की डायरी, जुलियस फुचिक की फांसी के तख़्ते से सहित विश्वयुद्ध के दौरान रचित अनगिनत पुस्तकों की याद आएगी, अगर आपने पढ़ी है तो। 

ऐसी फिल्मों में सवांद कम और दृश्यों की महत्ता ज़्यादा होती है, इसलिए ऐसी फिल्मों अभिनेता के मौन को मुखर होना बेहद आवश्यक शर्त है। यहां चरित्र दिखाया या प्रस्तुत नहीं बल्कि चरित्र जिया जाता है और जीना ही अभिनय का सत्व है, बाक़ी सब हवा है। यह फिल्म मूलतः दो चरित्र (पति-पत्नी) के ऊपर केन्द्रित है और कैमरा बामुश्किल ही कभी घर से बाहर जाता है। इन दोनों चरित्रों में अभिनेता अंतोनियो देला तोर और बेलेन केस्ता ने अद्भुत और बहुत ही बारीक रूप से जिया है। कुछ ऐसे कि इसकी छाप लम्बे समय तक स्मृतियों में बनी रह जाती है और शायद ताउम्र बनी रहे। वैसे बेहतरीन और सामान्य के बीच का मूल अन्तर ही यही है कि बेहतरीन चीज़ों का स्वाद दिमाग में सदा के लिए अंकित हो जाता है जबकि बाक़ी उसी समय समाप्त हो जाती है। वैसे बेहतरीन के स्वाद के लिए इंसान को कलात्मक रूप से अपने आपको शिक्षित करना होता है। पूरी तरह से अस्तित्वादी दर्शन से प्रेरित यह फिल्म जीवन की अनमोलता को पूरी जीवटता के साथ न केवल प्रस्तुत करती है बल्कि यह संकेत भी करती है किसी भी स्थिति में मनुष्य का सजीव बने रहने से ज़्यादा महान काम न पहले कुछ था और अब है और भविष्य में कुछ होगा। जीवन अनमोल है बाक़ी सबकुछ उसके बाद की बातें हैं – कुछ ज़रूरी और कुछ ग़ैर-ज़रूरी। 

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The Endless Trench फिल्म Netflix पर उपलब्ध है।

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पुंज प्रकाश
पुंज प्रकाश
Punj Prakash is active in the field of Theater since 1994, as Actor, Director, Writer, and Acting Trainer. He is the founder member of Patna based theatre group Dastak. He did a specialization in the subject of Acting from NSD, NewDelhi, and worked in the Repertory of NSD as an Actor from 2007 to 2012.

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