पितृसत्तात्मक समाज में, राजनीति को पुरुषों का काम माना जाता रहा है | स्त्रियाँ अधिकतर सत्ता व शाक्ति केन्द्रों से दूर रहीं हैं या यूँ कहें कि उन्हें दूर रखा गया है | भारत में ऐसी महिला राजनीतिज्ञों की संख्या ऊँगली पर गिनी जा सकती है जो पुरूषों के वर्चस्व को चुनौती देते हुए सत्ता के शीर्ष पर पहुँची हो | उन महिलाओं की संख्या तो और भी कम है जिनकी राजनीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि न रही हो | भारत में जिन चंद महिलाओं ने अपने बलबूते पर राजनीति में मज़बूत उपस्थिति दर्ज कराई है, उनमें एक नाम जे. जयललिता का है | करिश्माई व्यक्तित्व की धनी जयललिता के संघर्ष, चुनौतियों और सफलताओं-असफलताओं से भरे जीवन पर लेखक अजयान बाला ने ‘थलाइवी’ नाम की किताब लिखी थी | निर्देशक ए.ल.विजय ने इस किताब के आधार पर ‘Thalaivi’ फ़िल्म बनाई है |
आइए जानते हैं कि ‘Thalaivi’ जयललिता के जीवन को कितने विश्वसनीय रूप में दिखा पाई है |
‘Thalaivi’ Story
तमिल राजनीति में घटे एक शर्मनाक अध्याय के साथ फ़िल्म की शुरुआत होती है | दिन था, 25 मार्च 1989 | तमिलनाडु विधानसभा में बजट सत्र शुरू होने वाला था | विपक्ष की नेता जयललिता (कंगना रानौत) ने मुख्यमंत्री करुणानिधि के भाषण को रोकते हुए अपने विधायकों के साथ होने वाली ज्यादती को लेकर उनसे कुछ तीखे प्रश्न पूछें | सत्तासीन DMK पार्टी के तिलमिलाये विधायकों ने मुख्यमंत्री की उपस्थिति में जयललिता पर हमला बोल दिया | उन के साथ बदसलूकी की, मारा-पीटा और साड़ी फाड़ दी । उस दिन जयललिता सदन से फटी साड़ी में बाहर निकली और कसम खाई कि अब मुख्यमंत्री के तौर पर ही यहाँ कदम रखूँगी|
जयललिता का फ़िल्मी सफ़र और एमजी रामचंद्रन से मुलाकात
फ़िल्म फ्लैशबैक में जाती है | साल 1965 का था | 16 साल की जया का फ़िल्मी सफर शुरू ही हुआ था | जल्द ही उन्हें मशहूर अभिनेता एमजी रामचंद्रन (अरविंद स्वामी) की फ़िल्म में हीरोइन बनने का मौका मिला, जिन्हें MGR के नाम से भी जाना जाता था | साथ में काम करते हुए MGR के लिए उनके मन में एक खास जगह बनती गई | MGR को भी जया पसंद थी बावजूद इसके, इनके रिश्ते की उम्र लम्बी नहीं हो सकती थी | उसकी दो वजह थी, पहली MGR शादीशुदा थे, दूसरी जनता के मन में बसी उनकी भगवान की छवि | वह छवि खंडित न हो इसका पूरा ध्यान MGR के करीबी आर.एम.वीरपन (राज अर्जुन) रखते थे और खुद MGR भी अपनी छवि के लेकर सचेत रहते थे |
MGR का राजनीतिक सफ़र
कांग्रेस के 17 साल के शासन को ध्वस्त करते हुए DMK को पूर्ण बहुमत में लाने वाले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री अन्नादुराई MGR को राजनीति में ले आते हैं | उनके निधन के बाद करुणानिधि (नासिर एम) DMK पार्टी के अध्यक्ष और प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते हैं | करुणानिधि और MGR के बीच विवाद होने के कारण MGR फ़िल्में छोड़कर पूरी तरह से राजनीति में उतरने का निर्णय कर लेते हैं और अपनी नई पार्टी AIADMK बनाने का ऐलान कर देते हैं | सार्वजनिक जीवन में जाने से पहले वह जयललिता के साथ अपने सम्बन्ध को विराम दे देते हैं | यह जया की ज़िन्दगी का एक बेहद कठिन दौर साबित हुआ | उनकी ज़िन्दगी के सबसे करीबी दो लोग, उनकी माँ संध्या (भाग्यश्री) और MGR उनसे दूर चले गए | वह बिलकुल अकेली पड़ गईं थीं |
फ़िल्म सन 1980 में आती है | MGR दूसरी बार मुख्यमंत्री बन चुके थे और जयललिता का फ़िल्मी कैरियर ढलान पर था | एक दिन जया को सरकार की तरफ से सांस्कृतिक कार्यक्रम में नृत्य करने के लिए आमंत्रित किया गया | उस कार्यक्रम में MGR भी मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित थे | कई सालों के बाद दो पुराने दोस्तों का मिलना हुआ । MGR जया को राजनीति में सक्रिय होने के लिए कहते हैं । जया की राजनीति में जाने की कोई इच्छा नहीं थी, लेकिन वह MGR के प्रस्ताव को ज्यादा दिन टाल नहीं पाई |
जयललिता का राजनीति में प्रवेश
1982 में जयललिता AIADMK से जुड़ गई । उन्हें पार्टी का प्रोपेगेंडा सचिव बनाया गया और राज्यसभा भेजा गया । राजनीति में जयललिता सधे क़दमों से आगे बढ़ रही थी लेकिन पार्टी के भीतर लगातार विरोध के कारण उन्हें पद से हटा दिया गया । MGR की मृत्यु के बाद तो उनके परिवार और पार्टी में जयललिता का खुला विरोध शुरू हो गया | जया, MGR के पार्थिव शरीर के करीब न पहुँच सके इसके लिए उन्हें घर में घुसने नहीं दिया गया । यहाँ तक कि शव ले जाने वाले वाहन से भी जबरन नीचे उतार दिया गया ।
नेतृत्व की लड़ाई
आर.एम.वीरपन के सहयोग से MGR की पत्नी जानकी (मधु) ने पार्टी में अपने उत्तराधिकार का दावा ठोंक दिया । उधर जयललिता प्रेस कांफ्रेन्स कर एलान कर रही थी कि MGR उन्हें अपना उत्तराधिकारी मानते थे । जया धैर्य के साथ तमाम चुनौतियों का सामना करती गई | पहले उन्होंने पार्टी के भीतर अपना नेतृत्व कायम किया | उसके बाद 1991 में कांग्रेस के साथ गठबंधन करके विधानसभा चुनाव जीता और अपनी कसम पूरी करते हुए मुख्यमंत्री बन कर विधानसभा पहुँची ।
विवादित मुद्दों से बचते हुए केवल शुरूआती जीवन पर केन्द्रित
निर्देशक ए.ल.विजय की ‘Thalaivi’ जयललिता के जीवन पर ज़रूर बनी है, लेकिन पूरे जीवन को नहीं समेटती है | फ़िल्म में उनके स्कूल जाने वाली लड़की से तमिल सिनेमा की सफल अभिनेत्री बनने और फिर राजनीति में बुलंदी की इबारत लिखते हुए पहली बार मुख्यमंत्री बनने तक का सफ़र ही दिखाया गया है | वह 6 बार मुख्यमंत्री बनी और राष्ट्रीय राजनीति में प्रभावी हस्तक्षेप किया, यह सब फ़िल्म में नहीं रखा गया है |
MGR की मृत्यु के बाद AIADMK के भीतर उनकी विरासत को संभालने के लिए पत्नी जानकी और जयललिता के बीच खींचातानी चली थी | जयललिता को पार्टी के भीतर नेतृत्व स्थापित करने में बहुत मशक्कत करनी पड़ी थी | फ़िल्म में उत्तराधिकार के इस संघर्ष को चंद दृश्यों में समेट दिया गया है, नतीजन उस प्रसंग की जटिलता सामने नहीं आ पाती है |
अरविन्द स्वामी के अभिनय में MGR फिर से जिन्दा हुए
फ़िल्म में अरविन्द स्वामी अभिनय के मामले में याद रह जाते हैं | MGR सरीखे महानायक के आभामंडल को उन्होंने बखूबी स्क्रीन पर साकार किया है | कंगना रानौत एक बेहतरीन अदाकारा हैं, लेकिन ‘थलाइवी’ में वह अभिनय के अपने पहले स्थापित मापदंडों से आगे जाते हुए नजर नहीं आती | फ़िल्म में कंगना की माँ के लिए भाग्यश्री की कास्टिंग सही नहीं लगती | स्क्रीन पर वह कहीं से भी कंगना की माँ नहीं लग रही थी | दोनों एक ही उम्र की लगती हैं | मधु को एक भी अच्छा सीन नहीं मिला, जिससे वह फ़िल्म में अपने होने को साबित कर पाती | राज अर्जुन प्रभावित करते हैं |
अंत में
लेखक-निर्देशक ने सचेत रूप से जयललिता और MGR के जीवन के विवादस्पद हिस्सों को फ़िल्म से दूर रखा है | जीवन के परवर्ती दौर में जयललिता पर राजनीतिक ताकत के दुरूपयोग, भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे | इन सबसे बचते हुए ए.एल.विजय ने एक ऐसी फ़िल्म तो ज़रूर बना ली जिससे अम्मा और MGR का नायकत्व बचा रहा, उनका उजला रूप ही केवल सामने आया और फ़िल्म किसी विवाद में नहीं पड़ी | लेकिन यह सब करने के क्रम में ‘Thalaivi’ केन्द्रीय पात्रों, जयललिता और एम.जी.रामचंद्रन, के बहुस्तरीय, बहुआयामी जीवन के साथ न्याय नहीं कर पाई |
जयललिता के जीवन पर आधारित फ़िल्म ‘Thalaivi’ आप ओटीटी प्लेटफार्म Netflix और Amazon Prime Video पर देख सकते हैं |
फिल्मची के और आर्टिकल्स यहाँ पढ़ें।