2007 में फ़राह खान द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘ॐ शांति ॐ’ आई थी | फ़िल्म में शाहरुख़ खान ने ॐ कपूर नाम का चरित्र निभाया था, जिसका एक संवाद बेहद लोकप्रिय हुआ था, “इतनी शिद्दत से मैंने तुम्हे पाने की कोशिश की है कि हर ज़र्रे ने मुझे तुमसे मिलाने की साज़िश की है | कहते हैं कि अगर किसी चीज़ को दिल से चाहो तो पूरी कायनात उसे तुमसे मिलाने की कोशिश में लग जाती है |” ठीक 14 साल बाद निर्देशक कुणाल देशमुख की फ़िल्म ‘Shiddat’ आई है | जिसे देखते हुए लगता है कि फ़िल्म के लेखक श्रीधर राघवन और धीरज रतन, शाहरुख़ खान के संवाद से इस कदर प्रभावित हुए थे कि उस पर पूरी कहानी ही लिख डाली |
पीछे पड़ जाना ही प्रेम है !
हिन्दी सिनेमा में शिद्दत से प्रेम करने का एक खास तरीका होता है | वह यह कि किसी के पीछे इस हद तक पड़ जाओ कि अगला आदमी भ्रम में पड़ कर अपनी दया या सहानभूति को प्रेम समझ बैठे और अंततः आप अपने प्रेम की विजय की घोषणा कर दें | फिल्मों ने अक्सर प्रेम की इस उथली समझ को खूब महिमामंडित किया है | निर्माता भूषण कुमार और दिनेश विज़न की नवीनतम फ़िल्म ‘Shiddat’ भी प्रेम के इसी फ़लसफ़े का बखान करती है |
शिद्दत (Shiddat) का नायक जोगिंदर ढिल्लन उर्फ़ जग्गी (सनी कौशल) भी ‘सच्चे प्रेम’ के नाम पर “तेरा पीछा न छोडूंगा सोणिए….” सरीखे शाश्वत फ़िल्मी ज्ञान से संस्कारित है | कहने को तो जग्गी पंजाब की तरफ से हॉकी खेलता है लेकिन एक बार प्रेम में पड़ने के बाद हॉकी कहाँ छूमंतर हो जाती है, पता ही नहीं चलता | खैर जग्गी को फ़िल्म में हॉकी खिलाड़ी इसलिए बनाया गया है जिससे कि एक राष्ट्रीय खेल आयोजन में, वह लन्दनवासी भारतीय तैराक कार्तिका (राधिका मदान) से मिल सके | जग्गी और उसके दोस्त अपनी प्रैक्टिस छोड़कर, तैराक लड़कियों को छोटे-छोटे कपड़ों में देखने के इरादे से स्विमिंग पूल पहुँचते हैं | वहाँ जग्गी की नज़र एक जलपरी कार्तिका पर ठहरती है | जग्गी सड़कछाप लड़कों की तरह उससे पूछे बिना, न केवल उसकी फ़ोटो खींचता है बल्कि डिलीट करने के लिए कहने पर सोशल मिडिया पर पोस्ट भी कर देता है | ऊपरी तौर पर तेज़तर्रार लगने वाली कार्तिका, जैसे को तैसा वाले अंदाज़ में जग्गी से बदला लेने की सोचती तो है लेकिन उसकी ढिठाई के सामने पानी-पानी हो जाती है | तैराकी में नेशनल चैम्पियनशिप जीतने वाली कार्तिका जग्गी की बचकानी हरकतों को चुपचाप देखती रहती है | दो-एक किस और नाईट स्टे के बाद जब जग्गी को कार्तिका अपनी बंदी लगने लगती है, तब जाकर यह राज़ खुलता है कि तीन महीने के बाद उसकी शादी होने वाली है | कार्तिका व्यावहारिक होने की कोशिश करते हुए जग्गी को समझाती है कि जिसे तुम प्यार समझ रहे हो वह दरअसल प्यार नहीं है | साथ ही मज़ाक में यह भी कह देती है कि अगर तुम्हारा वाला ‘सच्चा प्रेम’ तीन महीने तक बना रहे तो लन्दन आ जाना, मैं अपनी शादी कैंसिल कर दूँगी | बस फिर क्या था, हीरो ने हीरोइन के मज़ाक को प्रेम का इशारा समझ लिया और उसके पीछे-पीछे दीवानगी की हदें पार करता हुआ अवैध रूप से सात समंदर पार फ़्रांस तक पहुँच गया | फ़्रांस में पकड़े जाने पर जग्गी की मुलाकात भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी गौतम रैना (मोहित रैना) से होती है | जिससे वह एक बार पहले भी भारत में मिल चुका था |
जग्गी-कार्तिका के सामानांतर फ़िल्म में गौतम और इरा (डायना पैंटी) की कहानी चलती है | दोनों की मुलाकात एक फ्रेंच क्लास में होती है | बात-बात में प्रेम हो जाता है, फिर शादी | शादी के कुछ समय बाद इरा को समझ में आता है कि गौतम दुनिया को केवल एक रंग में देखता है जबकि उसकी दुनिया बहुरंगी है, मतलब कि ज़िन्दगी को लेकर दोनों का नज़रिया बहुत अलग है | बात तलाक तक पहुँच जाती है | लेकिन जग्गी के प्रेम की उलझन को सुलझाते-सुलझाते गौतम को महसूस होता है कि अगर जग्गी अपने प्रेम के लिए हजारों किलोमीटर दूर आ सकता है तो वह अपनी प्रेम कहानी में पड़ी गांठ को सुलझाने के लिए क्या इरा की तरफ चार कदम भी नहीं बढ़ा सकता है |
जिस व्यक्ति को तैराकी न आती हो वह बिना किसी प्रशिक्षण के केवल अपने प्रेम की ताकत के बल पर इंग्लिश चैनल पार कर अपनी प्रेमिका से मिलने जाने की सोच सकता है | इस तरह की हरकतों को फ़िल्म में दीवानगी की इंतहा के रूप में भले ही दिखाया गया हो, पर वास्तव में यह बचकाना और बेवकूफ़ी भरा कदम है | फ़िल्म का नायक जग्गी, प्रेम के नाम पर ऐसी ही ऊलजुलूल हरकतें करता रहता है और फ़िल्म खत्म हो जाती है | कार्तिका जग्गी के ‘सच्चे प्रेम’ को पहचान पाती है या नहीं, नायक-नायिका का मिलन होता है या नहीं अगर यह जानने में अभी भी आपकी रूचि बनी हुई है तो आप फ़िल्म ‘Shiddat’ देख सकते हैं |
अभिनेताओं की कोशिशें रंग नहीं लाई
सनी कौशल, इस फ़िल्म से पहले कई शॉर्ट फिल्मों में अभिनय और दो-एक फिल्मों में सहायक निर्देशक के तौर पर काम कर चुके हैं | बावजूद इसके अभी तक वह मशहूर अभिनेता विक्की कौशल के भाई के रूप में ही ज्यादा जाने जाते हैं | ‘Shiddat’ से उन्हें कुछ खास फायदा मिलता हुआ नज़र नहीं आ रहा है क्योंकि जग्गी का किरदार याद रखें जाने लायक कोई असर नहीं छोड़ता है | राधिका मदान अपनी पिछली फिल्मों से यह दिखा चुकी हैं कि वह एक सक्षम अभिनेत्री हैं | लेकिन उनकी अभिनय क्षमता के साथ यह फ़िल्म न्याय नहीं करती है | फ़िल्म में कार्तिका एक संवाद बोलती है कि उसे 90 के दशक की हीरोइन की तरह महसूस हो रहा है | दर्शकों को भी वह 90 के दशक की हीरोइन ही लगती हैं जिसके पास गाना गाने और हीरो का साथ देने के अलावा, करने के लिए कुछ नहीं होता था | हालिया रिलीज़ हुई वेब सिरीज़ ‘मुंबई डायरीज़’ में दमदार अभिनय के लिए मोहित रैना की खूब तारीफ हो रही है | वैसी तारीफ़ इस फिल्म के लिए उनको नहीं मिलेगी, लेकिन इसमें उनका दोष नहीं है | गौतम के चरित्र पर लेखन के समय ज्यादा ध्यान दिया ही नहीं गया | मोहित रैना जैसा काबिल अभिनेता अपना पूरा दम-ख़म लगा देने के बाद भी बेजान चरित्र में जान नहीं फूँक सकता | डायना पैंटी को तो स्क्रीन पर समय ही बहुत कम मिला है |
लेखक, निर्देशक ने डुबाई लुटिया
Shiddat फ़िल्म का सबसे कमज़ोर पहलू है, कहानी | श्रीधर राघवन और धीरज रतन की लिखी कहानी में कोई पात्र प्रेम में क्यों पड़ जा रहा है, और क्यों अलग हो जा रहा है, इसकी कोई मज़बूत वजह नहीं होती | पात्रों की पृष्ठभूमि का पता नहीं चलता | दूसरा कमज़ोर पहलू है, निर्देशन | कुणाल देशमुख अब तक जन्नत,तुम मिले, जन्नत 2 और राजा नटवर लाल जैसी बड़ी फ़िल्में निर्देशित कर चुके हैं | इतने अनुभवी निर्देशक की फ़िल्म में खिलाड़ी, खिलाड़ी जैसे नहीं लगते और विदेश मंत्रालय का एक बड़ा अधिकारी ज्यादातर समय एक जिद्दी प्रेमी के पीछे-पीछे भागता रहता है, अवैध घुसपैठियों की बस्ती में कुछ लोग बेवजह हरदम लड़ते रहते हैं आदि-आदि | यह सब निर्देशन की कमजोरी दिखाते हैं |
Shiddat फ़िल्म का शीर्षक गीत मनन भरद्वाज ने, ‘जुगजग जीवे…’ सचेत ने और ‘हमदम’ गीत अंकित तिवारी ने संगीतबद्ध किया है | यह तीनों ही गाने सुनने में अच्छे लगते हैं |
‘Shiddat’ फ़िल्म आप डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर देख सकते हैं |
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