युद्ध और प्रकृतिक आपदाएँ ऐसी घटनाएँ हैं जो एक साथ लाखों-करोड़ों जीवन को प्रभावित करती हैं | इसलिए यह हमारी सामूहिक स्मृतियों का एक बड़ा हिस्सा बनती है | जब किसी घटना का असर इतना व्यापक हो तो बड़े जन समूहों की भावनात्मक स्मृति को जगाने के लिए लेखक, कलाकार अक्सर युद्ध एवं प्राकृतिक आपदाओं को अपनी रचना का विषय बनाते रहे हैं | फ़िल्में भी इनका अपवाद नहीं है | युद्ध पर आधारित फिल्मों का अपना एक बड़ा दर्शक वर्ग है | जिन्हें ध्यान में रखकर बॉलीवुड में लगभग हर साल 15 अगस्त और 26 जनवरी के आस-पास देशभक्ति की भावना वाली युद्ध फ़िल्में रिलीज होती रही हैं | इस बार भी स्वाधीनता दिवस से ठीक पहले धर्मा प्रोडक्शन, काश एंटरटेनमेंट कम्पनी परमवीर चक्र से सम्मानित कैप्टन विक्रम बत्रा के जीवन पर अधारित फिल्म ‘शेरशाह’ (Shershaah) ले कर आई हैं |
‘शेरशाह’ (Shershaah) का क़िरदार अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा ने निभाया है | फिल्म की कहानी विक्रम बत्रा के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसमें बचपन से ही अपनी चीज़ या अपने अधिकार के लिए लड़ने का ज़ज्बा था | ऐसा करने के लिए वह किसी भी तरह का खतरा उठाने को तैयार रहता है | पड़ोसी के घर टीवी पर परमवीर चक्र विजेताओं पर आने वाले कार्यक्रम को देखकर, विक्रम के साहस और बेख़ौफ़ जज़्बों को एक दिशा मिलती है | वह भारतीय सेना में जाने का सपना देखने लगता है | एक दिन उसका यह सपना पूरा होता है | सपने के हकीकत में बदलने के सफ़र के बीच में कॉलेज की पढ़ाई और इश्क़ के पड़ाव भी आते हैं | लेकिन विक्रम बत्रा के जीवन का सबसे बड़ा पड़ाव कारगिल युद्ध के दौरान आता है | जब उन्हें सैन्य नजरिए से बेहद महत्वपूर्ण श्रीनगर-लेह मार्ग के ऊपर की .5140 चोटी को पाकिस्तानी सेना से स्वतंत्र करने की जिम्मेदारी मिलती है | कैप्टन बत्रा की अगुवाई में उनकी टुकड़ी अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन करते हुए इस चोटी को मुक्त कराती है | इस सफलता से प्रभावित होकर कैप्टन बत्रा को एक दूसरी .4875 चोटी को दुश्मनों के चंगुल से छुड़ाने का दायित्व दिया जाता है | इस अभियान में ही कैप्टन बत्रा शहीद हो जाते हैं |
हालाँकि ‘शेरशाह’ (Shershaah) की कहानी तो सब जानते ही हैं | ज़रूरी बात है कि इस कहानी को परदे पर कैसे उतारा गया है ? कारगिल के इस ओजस्वी नायक के जीवन को परदे पर उतारने का काम किया है, निर्देशक विष्णुवर्धन ने | यह निर्देशक की पहली हिन्दी फिल्म है, इससे पहले इन्होंने तमिल में अरिन्थुम अरियामलम, पत्तियाल, बिल्ला, अर्र्मम जैसी फ़िल्में बनाई है | फ़िल्म के बड़े फलक को देखते हुए कहा जा सकता है कि निर्देशक ने नए होने के बावजूद फ़िल्म को एक सम्मानजनक स्थिति तक पहुँचा दिया है | सवा दो घंटे की यह फिल्म थोड़ी लम्बी लगती है, इसको और कसा जा सकता था | फिल्म का पहला हिस्सा कमज़ोर लगता है लेकिन दूसरे हिस्से में निर्देशक और अभिनेता दोनों ने ही टॉप गियर पकड़ते हुए फिल्म को बिखरने से बचा लिया |
शेरशाह’ (Shershaah) में कैप्टन बत्रा की भूमिका निभाने के लिए निर्माताओं और निर्देशक ने सिद्धार्थ मल्होत्रा पर विश्वास जताया | ख़बरों में यह भी चल रहा है कि कैप्टन बत्रा का परिवार भी सिद्धार्थ मल्होत्रा को इस भूमिका के लिए चाहता था |
सिद्धार्थ मल्होत्रा का कैरियर कई सालों से मझधार में अटका हुआ है | यह फ़िल्म अकेले उनके कन्धों पर टिकी थी | फिल्म के निर्माण के दौरान सिद्धार्थ मल्होत्रा के ऊपर का दबाव समझा जा सकता है | शेरशाह फिल्म में शुरुआत में ढीले-ढाले लगने के बावजूद सेकंड हाफ में सिद्धार्थ और उनका चरित्र दोनों ही मजबूती से खड़े हो जाते हैं | कुल मिलकर कहा जा सकता है कि सिद्धार्थ विक्रम बत्रा जैसे युद्ध नायक का चरित्र बिना कमज़ोर पड़े निभा गए हैं | शायद अब इस फिल्म से उनके कैरियर को गति मिलेगी |
सिद्धार्थ मल्होत्रा के साथ हैं कियारा अडवाणी | इन दोनों की ऑफ स्क्रीन गहरी दोस्ती स्क्रीन पर भी काफी सहज लगती है | कियारा फिल्म में काफी सुन्दर लगती है | जहाँ तक बात अभिनय की है तो उनके हिस्से में दो गाने और कुछ दृश्य ही आये हैं | जिनमें करने के लिए कुछ खास नहीं था |
संगीत की बात करें तो फिल्म में दो गाने थे “रातें लम्बिया…” और “रांझा” | दोनों ही गाने सुनने में अच्छे लगते हैं, हालाँकि फिल्म की कहानी में गानों की कोई स्वाभाविक ज़रूरत नहीं थी | लोकेशन शानदार थे | ट्रेलर देख कर लग रहा था कि फिल्म के संवाद जबरदस्त होंगे, लेकिन यकीन जानिए पूरी फिल्म में जितने भी अच्छे संवाद थे वह आपने ट्रेलर मे देख लिए होंगे| बावजूद इसके कैप्टन विक्रम बत्रा की वीरता, शौर्य और पराक्रम के सिनेमाई साक्षी बनने के लिए एक बार यह फ़िल्म देखी जानी चाहिए |
अंत में, यह बात मन में ज़रूर एक टीस पैदा करती है कि युद्ध की पृष्ठभूमि पर एक संवेदनशील और विभिन्न आयामों को समेटती हुई फ़िल्म देखने के लिए भारतीय दर्शकों को अभी कितना इंतजार करना पड़ेगा ? हिन्दी सिनेमा ने अभी तक युद्ध को केवल व्यक्तिगत पराक्रम, शौर्य के नजरिए से देखा है | जबकि युद्ध स्वयं में और उसका प्रभाव दोनों बहुआयामी होते हैं | सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक नजरिए से इनका गहन विश्लेषण भारतीय सिनेमा को अभी करना शेष है |
‘शेरशाह’ (Shershaah) फिल्म आपको अमेज़न प्राइम विडियो पर मिल जाएगी |
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