व्यक्ति जब किसी विचारधारा को सही मायने में जीने लगता है, तो उसके हर छोटे-बड़े काम में वह खुद-ब-खुद नज़र आने लगती है | उसे चिल्ला-चिल्लाकर दिखाने की ज़रूरत नहीं पड़ती | तमिल फिल्म निर्देशक पा.रंजीत ऐसे ही व्यक्ति हैं | उनकी फ़िल्में बिना उपदेशात्मक हुए यह संप्रेषित कर देती है कि वह आंबेडकर के विचारों को मानने वाले और दलित हितों के पैरोकार हैं | फिल्मकारों के लिए ऐसी मनोरंजक फ़िल्म बनाना जो वैचारिक रूप से भी सशक्त हो हमेशा से एक कठिन चुनौती रही है | मनोरंजन साधने में या तो विचार पीछे छूट जाता है या फिर विचार की प्रधानता इतनी ज्यादा हो जाती है कि फ़िल्म अपनी सरसता खो देती है | लेकिन लगता है की पा.रंजीत ने इस चुनौती से पार पा लिया है | वह लगातार ऐसी फिल्मों का निर्माण कर रहे हैं जो व्यावसायिक मापदंडों के अनुसार मनोरंजक भी होती हैं और साथ ही अपनी कहानी में गंभीर वैचारिकी पकड़ भी बनाए रखती है | उनकी नवीनतम फ़िल्म ‘Sarpatta Parambarai’ में एक बार फिर उन्हें इस संतुलन को सफलतापूर्वक साधते हुए देखा जा सकता है |
Sarpatta Parambarai एक स्पोर्ट्स-पीरियड ड्रामा है जिसकी कहानी में केवल खेल ही नहीं है बल्कि खेल के माध्यम से समाज, राजनीति, पारिवारिक संबंधों, मानवीय गरिमा और अपराध-हिंसा जैसे अनेक आयामों को शामिल किया गया है |
‘Sarpatta Parambarai’ Plot Summary : 70 के दशक के उत्तरी मद्रास की बॉक्सिंग संस्कृति
‘सारपट्टा परमबराई’ फ़िल्म एक ऐसे समय की कहानी दिखाती है, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने देश भर में इमरजेंसी लगा दिया था | आपातकाल में तमिलनाडु की डी.एम.के. सरकार और उसके समर्थक इंदिरा गाँधी के फैसले को खुले आम चुनौती दे रहे थे | डी.एम.के. पार्टी की छत्रछाया में उस समय भी मद्रास में बॉक्सिंग के बड़े-बड़े आयोजन हो रहे थे | फ़िल्म में दिखाए गए उत्तरी मद्रास के गाँव में लोगों की बॉक्सिंग को लेकर दीवानगी बिल्कुल वैसी ही थी, जैसी आजकल IPL या क्रिकेट के लिए नज़र आती है | गाँव में बॉक्सिंग के दो ग्रुप बने हुए थे | एक सारपट्टा और दूसरा इदियप्पा | बॉक्सिंग को लेकर दोनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई कई सालों से चल रही थी | इनकी आपसी प्रतिद्वंदिता को ही कहानी का मुख्य द्वंद्व (conflict) बनाया गया है |
मद्रास के बॉक्सिंग जगत में सारपट्टा ग्रुप का लम्बे समय तक दबदबा रहा था | सारपट्टा के वर्तमान कोच रंगन (पसुपथी) अपने समय के सुपरस्टार बॉक्सर थे | सारा गाँव कोच रंगन की बहुत इज्ज़त करता है | रंगन बॉक्सिंग के साथ-साथ डी.एम.के. की राजनीति में भी सक्रिय हैं |
फ़िल्म की शुरुआत एक बॉक्सिंग आयोजन के साथ होती है | जहाँ सारपट्टा ग्रुप के बॉक्सर, कोच रंगन के मार्गदर्शन में इदियप्पा ग्रुप से मैच खेल रहे हैं | इदियप्पा का स्टार बॉक्सर वेम्बुली (जॉन कोकेन) पिछले कई सालों से सारपट्टा के मुक्केबाजों को हरा रहा था | कोच रंगन बड़ी उम्मीद से अपने सबसे अच्छे बॉक्सर मीरन को वेम्बुली के सामने उतराते हैं | लेकिन वेम्बुली, मीरन को मार-मार कर उसकी हालत बिगाड़ देता है | मीरन को बचाने के लिए कोच रंगन रिंग में अपना गमछा फेंक कर मैच रुकवाते हैं | कोच रंगन के समर्पण का इदियाप्पा ग्रुप के लोग खूब मजाक उड़ाते हैं | आहत कोच रंगन, इदियाप्पा के कोच दुरईकन्नू से एक अंतिम मुकाबले के लिए कहते हैं | दुरईकन्नू एक शर्त के साथ इस मुकाबले के लिए तैयार होता है कि अगर वह मैच वेम्बुली जीतता है तो सारपट्टा ग्रुप भविष्य में फिर कभी भी बॉक्सिंग रिंग में नहीं उतरेगा | रंगन शर्त स्वीकार कर लेते हैं |
लेकिन मुश्किल यह थी कि सारपट्टा में ऐसा कोई भी बॉक्सर नहीं था जो वेम्बुली का सामना कर सके | सारपट्टा का मान-सम्मान तो पहले ही धूल-धूसरित हो चूका था, अब अस्तित्व भी खतरे में था | एक दिन संयोग से कोच रंगन को कबिलन की बॉक्सिंग देखने का मौका मिलता है | कबिलन (आर्या) की प्रतिभा से प्रभावित हो, कोच रंगन घोषणा कर देते हैं कि कबिलन वेम्बुली के खिलाफ़ रिंग में उतरेगा |
फ़िल्म का नायक कबिलन (आर्या) एक साधारण मजदूर है | उसे बॉक्सिंग का बहुत शौक है | सारपट्टा का कोई भी मैच देखना वह छोड़ता नहीं है और कोच रंगन को वह भगवान की तरह मानता है | कबिलन बॉक्सिंग सीखना चाहता है लेकिन माँ के डर की वजह से सीख नहीं पता | माँ उसे बॉक्सिंग नहीं खेलने देना चाहती हैं क्योंकि कुछ लोगों ने उसके पिता को बॉक्सिंग के कारण मार दिया था | माँ अब अपने बेटे को इस खेल के लिए खोना नहीं चाहती |
कोच रंगन अपना खोया हुआ सम्मान वापस पाते हैं या नहीं, कबिलन बॉक्सिंग रिंग में उतर पाता है या नहीं, सारपट्टा ग्रुप का अस्तित्व बचा रह पाता है या नहीं इन सारे प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए ‘Sarpatta Parambarai’ देखिए |
जाति व्यवस्था और राजनीति पर गंभीर टिप्पणी
फ़िल्म की अवधि 2 घंटे और 53 मिनट है | इसकी लम्बाई ज्यादा लग सकती है लेकिन यकीन करिए एक बार जब आप इसे देखना शुरू करेंगे तो खत्म करके ही दम लेंगे | वजह है फिल्म की कहानी, जिसे पा.रंजीत और तमिज़ह प्रभा ने लिखा है | कहानी कई स्तरों पर बुनी गई है | फ़िल्म में बॉक्सिंग रिंग खेलने की जगह मात्र नहीं है बल्कि सामजिक-राजनीतिक वर्चस्व का अखाड़ा बन जाती है | पा.रंजीत की बनाई इस दुनिया में बॉक्सर मैडल जीतने के लिए बॉक्सिंग नहीं करते बल्कि अपने-अपने समुदायों के मान-गौरव-प्रतिष्ठा के लिए रिंग में उतरते हैं | वेम्बुली या कबिलन का खेल अपने जुनून से ज्यादा इदियाप्पा ग्रुप या सारपट्टा ग्रुप की प्रतिष्ठा के लिए खेला जाता है |
निर्देशक फिल्म में फ्रेम दर फ्रेम भारतीय समाज में गहरे जड़ें जमा चुकी जाति व्यवस्था की सच्चाई सामने लाता है | फ़िल्म का नायक कबिलन दलित समुदाय से है | एक दृश्य में थांगिया नाम का चरित्र कबिलन को नीचा दिखाने के लिए कहता है “…इससे बोलो कि मेरे घर की सफाई करे और मेरी मरी हुई गायों के शव उठाए” |
चूँकि बॉक्सिंग रिंग में कबीलन को हराना मुश्किल था इसलिए उसकी मानवीय गरिमा तार-तार करने और मनोबल तोड़ने के लिए मारने-पीटने के बाद उसे रिंग में नंगा करके छोड़ दिया जाता है |
एक अच्छी कहानी का उतना ही अच्छा फिल्मांकन
‘Sarpatta Parambarai’ के विषय में कहा जा सकता है कि जितनी अच्छी तरह से फिल्म को लिखा गया है, उतनी ही अच्छी तरह से फ़िल्माया भी गया है | निर्देशक अपनी सोच को नारे में बदलने की जगह दृश्यों में बारीकी से घुलामिला देता है | जिसका उदाहरण फ़िल्म के कई ऐसे फ्रेम हैं, जिनमें कबिलन का अपनी परिस्थितयों से निकलने की जद्दोजहद या सफलता दिखाई जा रही है | आप ध्यान देंगे तो ऐसे फ्रेम में आपको आंबेडकर, पेरियार या बुद्ध की छवि या प्रतिमा नज़र आ जाएगी | निर्देशक ने बॉक्सिंग में सारपट्टा के अस्तित्व की लड़ाई को दलित समुदाय के अस्तित्व की लड़ाई से जोड़ दिया है |
आर्या, पसुपति, दुशारा विजयन, जॉन कोकेन समेत सभी अभिनेताओं ने अपने-अपने किरदार बखूबी निभाए हैं | फ़िल्म की कहानी सत्तर के दशक की थी, जिसे स्क्रीन पर विश्वसनीय ढंग से उतारने में एगन एकाम्बरम की कॉस्टयूम डिज़ाइनिंग और टी रामालिंगम के आर्ट डायरेक्शन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है |
पा.रंजीत की ‘Sarpatta Parambarai’ एक बेहतरीन फ़िल्म है, जो हर तरह के दर्शकों को पसंद आएगी |
‘सारपट्टा परमबराई’ (Sarpatta Parambarai) फिल्म अमेज़न प्राइम वीडियो पर उपलब्ध है |
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