अंग्रेज़ों की गुलामी से भारत को आज़ाद कराने के लिए हजारों-लाखों लोगों ने अपनी कुर्बानी दी थी | सरदार उधम सिंह भी उन अनगिनत लोगों में से एक थे जिनकी शहादत इतिहास में अमर हो गई | निर्देशक सुजीत सरकार की फ़िल्म ‘Sardar Udham’ इन्हीं शहीद उधम सिंह के जीवन पर आधारित है |
आइए, जानते हैं कि कैसे भारतीयों के साथ हुए अमानवीय अत्याचार के विरूद्ध उधम सिंह ने अंग्रेजों के सामने अपना प्रतिरोध दर्ज कराया ?
लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’डायर की हत्या
वह 13 मार्च 1940 का दिन था | लंदन के केक्सटन हॉल में ईस्ट इंडियन एसोसिएशन की एक सभा हो रही थी | जिसे पंजाब के पूर्व लेफ्टिनेंट गवर्नर सर माइकल ओ’डायर (शॉन स्कॉट) संबोधित कर रहे थे | यह वही गवर्नर ओ’डायर थे जिनके आदेश पर जनरल डायर ने 1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में नृशंस हत्याकांड को अंजाम दिया था | अपनी बात करके जैसे ही वह मंच से उतरे और वहाँ मौजूद लोगों से मिलने लगे, तभी एक भारतीय सरदार ने पीछे से पुकारा, “मिस्टर डायर !” माइकल ओ’डायर पुकारने वाले की तरफ पलटे | उस भारतीय ने पलक झपकते ही अपनी पिस्तौल की गोली से उनका सीना छलनी कर दिया | उसने एक के बाद एक 6 गोलियां चलाई जिससे कि माइकल ओ’डायर की मौत हो गई और तीन लोग बुरी तरह ज़ख़्मी हुए | वह भारतीय सरदार देखते ही देखते दुनिया भर के अख़बारों की मुख्य खबर बन गया |
माइकल ओ’डायर को मारने वाला, वह भारतीय कौन था ?
उस भारतीय को पुलिस ने तुरंत हिरासत में ले लिया | यह हत्याकांड जिस बेख़ौफ़ अंदाज़ में किया गया था, उसे ब्रिटिश हुकूमत ने अपने लिए चुनौती मानते हुए सख्त कार्यवाही शुरू की | लन्दन में रहने वाले भारतीयों की धरपकड़ हुई, लेकिन कुछ खास हाथ नहीं लगा | पुलिस को शक था कि यह व्यक्ति इतनी बड़ी घटना को अकेले अंजाम नहीं दे सकता इसलिए उसके साथियों और संगठन की जानकारी हासिल करने के लिए उसे थर्ड डिग्री टॉर्चर किया गया | फिर भी अंग्रेज़ पुलिस उसके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकलवा पाई |
काफी मशक्कत के बाद स्कॉटलैंड यार्ड को माइकल ओ’डायर की हत्या करने वाले के बारे में कुछ जानकारियां हाथ लगीं | जैसे, उसके माँ-बाप दोनों ही कम उम्र में गुज़र गए थे, वह और उसका भाई एक अनाथालय में पले-बढ़े थे और वह 1919 में पंजाब की किसी कॉटन मिल में काम करता था | सन 1933 से वह छह बार अलग-अलग नामों से लन्दन आ चुका था | कभी उसके पासपोर्ट पर शेर सिंह नाम लिखा होता था तो कभी उदय सिंह, उधम सिंह, आज़ाद सिंह और फ्रैंक ब्राज़ील नाम होते थे | पुलिस को शक था कि वह लन्दन में विद्रोहियों की ग़दर पार्टी के लिए अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क बनाने के अभियान में लगा हुआ था | पुलिस को कम्युनिस्ट कार्यकर्ता एली पाल्मर से उसके सम्बन्ध के बारे में भी पता चलता है |
शेर सिंह उर्फ़ ‘Sardar Udham’ भारत से लन्दन कैसे पहुँचे ?
सन 1931 में शेर सिंह (विक्की कौशल) रावलपिंडी की एक जेल से छूटने के बाद अपने परिचित नन्द सिंह की मदद से भारत से बाहर चले गए | वह अफगानिस्तान के रास्ते होते हुए 1934 में रूस पहुँचते हैं और फिर वहाँ से ‘कार्लोनिया’ जहाज पर सवार होकर 1934 में लन्दन पहुँच जाते हैं |
लन्दन में उनकी मुलाकात नन्द सिंह के परिचितों सूरत अली और कोपिक्कर आदि से होती है | यह लोग वहाँ रहते हुए गुप्त रूप से भारत की आज़ादी के लिए काम कर रहे थे | उधम सिंह इन लोगों से भगत सिंह की चिट्ठी का ज़िक्र करते हैं, जिसमें “कहीं बाहर जा कर सपोर्ट खड़ा करने के लिए” लिखा गया था |
उधम सिंह और भगत सिंह
उधम सिंह हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन (HSRA) के सदस्य थे | भगत सिंह (अमोल पराशर) उधम सिंह के लिए दोस्त, रहनुमा, मार्गदर्शक और प्रेरणा थे | भगत सिंह के विचारों से वह बहुत प्रभावित थे | असेम्बली बम कांड के बाद भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु की शहादत से उन्हें प्रेरणा मिली थी | एक बार भगत सिंह से उन्होंने कहा भी था, “मेरा भी वही होना है जो तेरा होना है |”
माइकल ओ’डायर की हत्या की तैयारी कैसे की ?
एक खबरी से ओ’डायर की दिनचर्या मालूम करके उधम सिंह उसका पीछा करने लगे | कई दिनों तक चर्च, सिनेमा हॉल, पार्टी, घर हर जगह उस पर नज़र रखते रहे | साथ ही एक पिस्तौल खरीद कर निशानेबजी का अभ्यास भी करते रहे | एक दिन उधम सिंह (विक्की कौशल) ओ’डायर से पेन के सेल्समैन बनकर मिले और अपनी बातों से उसका विश्वास जीत लिया | कुछ दिनों बाद वह डायर के पास नौकरी माँगने जाते हैं | डायर उन्हें काम पर अपने पास रख लेता है | अब उधम सिंह लगातार उसके करीब बने रहते हैं | उन्होंने देखा कि डायर को जलियांवाला बाग़ नरसंहार को लेकर कोई भी अफ़सोस नहीं है |
उधम सिंह को डायर के घर पर रहते हुए कई ऐसे मौके मिले जब वह बहुत आसानी से उसे मार सकते थे | लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया क्योंकि उनका मकसद व्यक्तिगत प्रतिशोध लेना नहीं था | इसलिए सही मौके की तलाश कर सार्वजनिक रूप से हत्या की, जिससे कि एक्शन का मकसद लोगों तक पहुँच सके |
जर्मनी के साथ इंग्लैंड का युद्ध शुरू होने वाला था | उधम सिंह इस समय को, ब्रिटिश के खिलाफ किसी बड़े एक्शन के लिए सही मान रहे थे लेकिन उनके बाकि साथी इससे सहमत नहीं थे | उधम सिंह 21 साल से इंतजार कर रहे थे, वह अब और नहीं रुक सकते थे | उन्होंने एक पिस्तौल का इंतजाम किया और उसे किताब में छुपा कर 13 मार्च वाली सभा में पहुँच गए |
जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उधम सिंह का जीवन हमेशा के लिए बदल दिया
सन 1919 के अप्रैल महीने में, पूरे हिन्दुस्तान में रौलेक्ट एक्ट के विरुद्ध में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हो रहे थे | पंजाब में इस विरोध की अगुवाई डॉक्टर सैफुद्दीन किचलू और डॉक्टर सत्यपाल कर रहे थे | अंग्रेजों ने डॉक्टर किचलू और डॉक्टर सत्यपाल को गिरफ्तार कर लिया | अमृतसर में मार्शल लॉ और धारा 144 लागू होने के बावजूद डॉक्टर किचलू और डॉक्टर सत्यपाल की गिरफ्तारी के विरोध में 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग़ में एक बड़ी जनसभा बुलाई गई थी | उस सभा में उधम सिंह की दोस्त रेशमा (बनिता संधू) भी मौजूद थी | पंजाब के तत्कालीन गवर्नर माइकल ओ’डायर ने जनता के विद्रोह को कुचलने के लिए जनरल डायर को हजारों निहत्थे लोगों पर फायरिंग करने की छूट दे दी | फिर उसके बाद तो जो हुआ वह इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज है |
उधम सिंह को जब इस बर्बर घटना की खबर मिली तो वह रेशमा को खोजते हुए वहाँ पहुँचे | हजारों लाशों और उतने ही घायल लोगों के बीच खड़े वह सन्न रह गए | उस दिन उन्होंने मौत का आतंक देखा | जितने लोगों को बचा सके बचाया, लेकिन मन ही मन इस जघन्य अपराध के दोषियों को उनके कर्मों की सज़ा देने की कसम खा ली |
‘Sardar Udham’ Ending, Explained
उधम सिंह के खिलाफ चल रहे हत्या के अभियोग में जज एटकिन्सन ने फाँसी की सजा सुनाई | सजा सुनने के बाद उधम सिंह, भगत सिंह की तरह “साम्राज्यवाद का नाश हो !”, “इंकलाब जिंदाबाद !” के नारे लगते हुए अदालत से बाहर गए |
उधम सिंह का मकसद क्या था ?
अदालत में अपना पक्ष रखते हुए उधम सिंह ने कहा कि भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रतिनिधि के तौर पर ओ’डायर ने जो कृत्य किया उसके विरुध्द प्रतिरोध दर्ज कराना, मेरा मकसद था | ब्रिटिश साम्राज्य हमारे देश में अवैध रूप से ताकत के दम पर राज कर रहा है | मेरी लड़ाई आज़ादी के लिए है और यह कोई अपराध नहीं है | अब समय आ गया है कि अंग्रेज़ हमारे देश को छोड़ दें |
फ़िल्म ‘Sardar Udham’ के आखिर में निर्देशक ने एक दृश्य दिखाया है जिसमें भगत सिंह और उधम सिंह एक साथ दौड़ लगा रहे हैं और एक दूसरे से आगे निकलने की कोशिश कर रहे हैं | दरअसल यह दौड़ देश की आज़ादी की लड़ाई में कुर्बान हो जाने की दौड़ है, जिसमें भगत सिंह पहले आगे निकल गए गए थे बाद में उनके ही रास्ते पर चलते हुए उधम सिंह भी 31 जुलाई 1940 को फाँसी के तख्ते पर झूल जाते हैं | इसमें क्या आश्चर्य की बात है कि जब फाँसी पर से उनकी निर्जीव देह उतारी गई तो उनकी भिंची हुई मुट्ठी में भगत सिंह की फ़ोटो थी |
जलियांवाला बाग में अनगिनत लाशों को बर्ड व्यू एंगल से दिखाने के बाद, अंतिम दृश्य में उधम सिंह को गुरूद्वारे के सरोवर में डुबकी लगाते हुए दिखाया जाता है | फ़िल्म ‘Sardar Udham’ में उससे पहले हम जनरल ओ’डायर की हत्या और उधम सिंह की फाँसी देख चुके होते हैं | पानी से डुबकी लगाकर निकलने वाला दृश्य आभास देता है, जैसे जलियांवाला बाग के पीड़ितों का तर्पण कर दिया गया हो |
सुजीत सरकार द्वारा निर्देशित फ़िल्म ‘Sardar Udham‘ को आप अमेज़न प्राइम वीडियो पर देख सकते हैं |