हिन्दी फिल्मों के बाद तेलगु सिनेमा ने सिनेमाई मनोरंजन के उस फार्मूले को बखूबी साधा है, जिसे उत्तर भारत के दर्शक पसंद करते हैं| यही वजह है कि ‘बाहुबली’ की अपार सफलता के बाद तेलगु सुपरस्टार अल्लू अर्जुन की फ़िल्म ‘Pushpa, The Rise’ को हिन्दी दर्शकों का भरपूर प्यार मिल रहा है| बॉक्स ऑफिस पर धुआंधार कमाई करने के बाद लेखक एवं निर्देशक एस. सुकुमार की यह फ़िल्म हाल ही में अमेज़न प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम हुई है| ओटीटी प्लेटफार्म पर भी अल्लू अर्जुन के पुष्पा अवतार को खूब पसंद किया जा रहा है|
‘Pushpa, The Rise’ फ़िल्म पुष्पाराज नाम के एक मजदूर का अपराध की दुनिया में फ़र्श से अर्श तक पहुँचने का सफ़र दिखाती है| कहानी पूरी तरह से केंद्रीय पात्र पुष्पा के इर्द-गिर्द घूमती है| अल्लू अर्जुन अपने अभिनय और स्टाइल की वजह से फ़िल्म में पूरी तरह से छाए रहते हैं इसलिए फिल्म देखने के बाद लम्बे समय तक पुष्पा का चरित्र दर्शकों को याद रहता है| आइए, समझने की कोशिश करते हैं कि वह क्या बातें हैं जिन्होंने पुष्पा के किरदार को इतना लोकप्रिय बनाया है|
Pushpa: The Character
‘Pushpa: The Rise’ में पुष्पा का एक संवाद है, “इस दुनिया से ज्यादा क्रूर क्या हो सकता है? जिसने आपके हाथ में बन्दूक थमाई (पुलिस) और मेरे हाथ में कुल्हाड़ी| हर आदमी के हिस्से में अपनी लड़ाई होती है|” यह संवाद इस चरित्र की तहों के भीतर जाने की उत्सुकता जगाता है| आखिर पुष्पा की ज़िन्दगी में ऐसी क्या चीज़ें हुईं जिनकी वजह से वह हिंसा और अपराध के रास्ते पर चल पड़ा? उसके हिस्से की लड़ाई क्या है और उसे वह कैसे लड़ता है?
जन्म से जुड़ी त्रासदी
‘Pushpa: The Rise’ में फ़्लैशबैक के जरिए हम पुष्पा के बचपन में घटी घटनाओं को देखते हैं| माँ पर्वताम्मा स्कूल में पुष्पा का दाखिल कराने जाती है| प्रिंसिपल के पूछने पर वह अपना पूरा नाम मुल्लेटी पुष्पाराज और पिता का नाम मुल्लेटी वेंकटरमण बताता है| ठीक उसी समय वहाँ मुल्लेटी वेंकटरमण के दो बड़े बेटे पहुँच जाते हैं| वे प्रिंसिपल से कहते हैं कि केवल इसलिए कि हमारे पिता कभी-कभी इनके घर जाते थे, यह बच्चा हमारा उपनाम (सरनेम) लगाने का अधिकारी नहीं हो जाता| वह दोनों भाई पर्वताम्मा का अपमान करते हुए पुष्पा को रखैल की अवैध औलाद बतलाते हैं| साथ ही पुष्पा को भविष्य में कभी भी मुल्लेटी उपनाम न लगाने की चेतावनी देते हैं| इस घटना का पुष्पा के मन पर गहरा असर पड़ता है| एक तरह का खिंचाव उसके पूरे अस्तित्व पर छा जाता है| न केवल मन का संतुलन बिगड़ता है बल्कि शारीरिक स्तर पर इस असंतुलन की छाप कंधे एक तरफ झुके होने के रूप में दिखाई देती है| इस घटना के बाद से जब कभी कोई पुष्पा से उसका उपनाम पूछता तो वह भीतर तक हिल जाता था| उसे लगता जैसे उसके पूरे अस्त्तिव पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया हो| इसीलिए घंटों पुलिस की मार खाने के बाद भी दर्द का अहसास न करने वाला पुष्पा एक पुलिस वाले द्वारा उससे उसका पूरा नाम पूछने पर भीतर ही भीतर दर्द से कराह उठता है|
अपने दमखम पर इज्ज़त हासिल करने की धुन
मुल्लेटी वेंकटरमण का परिवार माँ-बेटे के साथ तिरस्कारपूर्ण व्यवहार किया करता था| यहाँ तक कि उनके मरने पर इन दोनों को मृत शरीर के पास तक जाने नहीं दिया| पिता का साया और नाम दोनों छिन जाने के बाद पुष्पा और उसकी माँ को बहुत अपमान सहना पड़ा| जिसकी प्रतिक्रिया पुष्पा के व्यक्तित्व में आत्मसम्मान के अतिरेक के रूप में दिखाई देती है| पुष्पा सुनिश्चित करना चाहता है कि लोग उसका और उसकी माँ का सम्मान करें| उदहारण के तौर पर हम उस घटना को ले सकते हैं जहाँ उधार के पैसे वापस न कर पाने की वजह से एक व्यक्ति पुष्पा की माँ को गाँव वाले के सामने खूब खरी-खोटी सुना रहा था| घर की भैंस बेच कर पुष्पा उधार चुकाने का इंतजाम करता है| लेकिन पैसा देते समय पुष्पा उस व्यक्ति को गाँव हर घर में ले जाकर यह बताने के लिए मजबूर करता है कि उधार के पैसे चुका दिए गए हैं|
कभी न झुकने वाला तेवर और स्वैग
“मैं पुष्पा, पुष्पाराज| मैं झुकेगा नहीं साला|” पुष्पा का यह संवाद बहुत लोकप्रिय हो चुका है| अल्लू अर्जुन जब अपनी दाढ़ी पर उल्टी हथेली फिराते हुए यह संवाद बोलते हैं तो पुष्पा की न झुकने वाली मजबूती दर्शक अपने भीतर महसूस करने लगता है|
पुष्पा बेहद गरीब है| उसके पास कोई पारिवारिक विरासत नहीं है| वह मजदूरी करता है| उसके जैसे लोगों को समाज में हर कोई दुत्कार कर चला जाता है| लेकिन किसी की मजाल नहीं कि पुष्पा को कुछ कह कर निकल जाये|
वह किसी के आगे झुकता नहीं है| एक दृश्य में काम करने के बाद पुष्पा पैर पर पैर चढ़ा कर बैठा हुआ चाय पी रहा था| ठीक उसी समय उसके मालिक वहाँ से गुजरते हैं| हर कोई मालिक के आने पर खड़ा हो जा रहा था लेकिन पुष्पा मगन होकर चाय पीता रहा| मालिक को उसकी यह हरकत अपनी शान में गुस्ताखी लगी| पुष्पा को अपनी गलती स्वीकार करने और अपना रवैया बदलने की हिदायत दी गई| व्यवहार बदलने की बजाय पुष्पा ने मालिक बदलना ज्यादा पसंद किया|
अकेले पचास लोगों को मारने वाला नायक
सिनेमा के अतियथार्थवादी दौर में पुष्पा तीस-चालीस साल पहले के उन नायकों की याद दिलाता है जो अकेले पचासों लोगों से लड़ते थे| जिनके चलने की धमक से ज़मीन थर्रा जाती थी और जिनके एक मुक्के में इतनी ताकत होती थी कि जिसको पड़ जाये तो वह आधा किलोमीटर दूर जाकर गिरे| सुपर हीरो के करीब पहुँचा हुआ यह नायक दोनों हाथ और आँखें बंधी होने के बाद भी दर्जन भर लोगों से लड़ता रह सकता है|
ज़मीन से आसमान तक का जादुई सफ़र
पुष्पा राज लाल चन्दन के तस्कर कोंडा रेड्डी के लिए काम करना शुरू करता है| तेज़ दिमाग और दुस्साहसी होने के कारण,अपराध की दुनिया में वह तेज़ी से आगे बढ़ने लगता है| “हारने वाला हमेशा सिद्धांतो की बात करता है”, पुष्पा का यह संवाद साफ़ ज़ाहिर करता है कि वह जीतने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है| इसीलिए वह कोंडा रेड्डी और स्मगलिंग सिंडिकेट के बादशाह मंगलम श्रीनु को पछाड़ते हुए उस जंगल का शेर बन जाता है|
पुष्पाराज नाम के इस रोचक चरित्र को आप अमेज़न प्राइम वीडियो पर स्ट्रीम होने वाली फ़िल्म ‘Pushpa, The Rise’ (Part one) में देख सकते हैं|