पेले को दुनिया का महानतम फुटबाल खिलाड़ी माना जाता है| उन्होंने अपना आखिरी मैच पचास साल पहले 1971 में खेला था| नई पीढ़ी केवल पेले नाम से परिचित है, मैदान पर उनके दिखाए गए करिश्मों से वह अनजान है| तीन बार वर्ल्ड कप जीतने वाले दुनिया के एकमात्र खिलाड़ी ‘पेले’ के विराट खेल व्यक्तित्व से आज की पीढ़ी को रूबरू कराती एक डाक्यूमेंट्री ‘Pele’ नाम से नेटफिल्क्स पर है| जिसका निर्देशन डेविड ट्रायहॉर्न (David Tryhorn) और बेन निकोलस (Ben Nicholas) ने किया है|
1घंटे 48 मिनट की यह डाक्यूमेंट्री फुटबाल के बादशाह कहे जाने वाले पेले को जानने-समझने में मददगार है| साथ ही महानायक पेले की विकास यात्रा के संग एक देश के रूप में ब्राज़ील के विकास और उतार-चढ़ाव की कहानी भी दिखाती है|
Plot of ‘Pele’
बेहद गरीब परिवार में जन्मे पेले को फुटबाल का खेल अपने पिता डॉनडिन्हो (Dondinho) से विरासत में मिला था, जो खुद एक अच्छे फुटबॉलर थे| फुटबॉल के प्रति पेले का लगाव देख कर ही पिता उन्हें 1956 में संटोस फुटबॉल क्लब लेकर गए| जहाँ पेले पहले प्रशिक्षण सत्र में ही अद्भुत प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए, 16 साल की उम्र में पेशेवर फुटबॉलर बन गए|
ब्राज़ील को Mongrel Complex से बाहर लाने वाले खिलाड़ी
बीसवीं सदी के चौथे दशक का ब्राज़ील एक ऐसा देश था, जिसकी कोई पुख्ता पहचान नहीं थी| वह अतीत के पिछड़ेपन को छोड़कर आधुनिक दुनिया में फुटबाल के जरिए अपनी पहचान कायम करने की कोशिश कर रहा था| 1950 में ब्राज़ील में होने वाला फुटबॉल विश्व कप, इस प्रयास में उसकी सबसे बड़ी उम्मीद था| लेकिन ब्राज़ील की उम्मीद को उस समय जबरदस्त झटका लगा, जब फाइनल मैच में उरुग्वे ने उसे 2-1 से हरा दिया| यह हार ब्राज़ील के लिए किसी सदमे से कम नहीं था|
इस हार के बाद नाटककार नेल्सन रोड्रिग्स ने ब्राज़ील के लिए Mongrel Complex शब्द गढ़ा| जिसका लब्बोलुआब यह था कि ब्राजीलियाई लोग इस मनोग्रंथि के शिकार हैं कि बाकी लोग बहुत अच्छे हैं और हम किसी काम के नहीं हैं|
सन 1958 के विश्व कप में पेले को ब्राज़ील के राष्ट्रीय दल में शामिल किया गया| पेले के चमत्कारिक खेल की वजह से ब्राज़ील विश्वविजेता बना| इस जीत के साथ पेले mongrel complex को सुलझाने वाले नायक बने| पेले के माध्यम से ब्राजीलियाई लोगों ने खुद को प्यार करना सीखा| ब्राज़ील अब एक ऐसा देश था जिसे अपने ऊपर विश्वास था कि वह सफल हो सकता है|
फुटबाल ब्राज़ील की नई पहचान
1950-1960 का समय ब्राजीलियाई इतिहास में बेहद महत्वपूर्ण है| यह वही समय है जब एक फुटबॉलर के तौर पर पेले का और एक आधुनिक देश के रूप में ब्राज़ील जन्म हो रहा था| ब्राज़ील दुनिया के आधुनिक देशों के बीच मजबूती से खड़ा होने की कोशिश कर रहा था और पेले इस पूरे अभियान के प्रतिनिधि व्यक्तिव बन चुके थे| ब्राज़ील के लोग यह सोच कर गर्व महसूस करते थे कि फुटबॉल में वह यूरोप, अमेरिका से भी आगे हैं| फुटबाल ब्राज़ील की नई पहचान बन चुका था|
पेले और ब्राज़ील दोनों का कठिन दौर
1966 का फुटबाल वर्ल्ड कप इंग्लैंड में होने वाला था| पेले ब्राज़ील को लगातार तीसरी बार चैम्पियन बना कर रिटायर होने की सोच रहे थे | पेले न केवल ब्राज़ील की टीम के सबसे अच्छे खिलाड़ी थे बल्कि दुनिया के महानतम खिलाड़ी थे | इसलिए सारी विपक्षी टीमों ने जैसे पेले को टूर्नामेंट से बाहर करने की ठान ली थी| ग्रुप मैच में उन्हें बार-बार घेरा जाने लगा अंततः वह चोटिल हो कर टूर्नामेंट खेलने में असमर्थ हो गए| पेले की अनुपस्थिति में ब्राज़ील शुरूआती मुकाबलों में ही हार कर वर्ल्ड कप से बाहर हो गया|
आहत पेले ने यह कहते हुए भविष्य में वर्ल्ड कप नहीं खेलने का फैसला किया कि, “मैं वर्ल्ड कप में खुशकिस्मत नहीं रहा हूँ| यह दूसरा वर्ल्ड कप हैं, जहाँ दो मैच खेलने के बाद मैं चोटिल हो गया|”
उधर ब्राज़ील में भी स्थितियाँ तेज़ी से बिगड़ रही थीं| लोकतंत्र को कुचल कर 1964 में वहाँ सैन्य तानाशाही कायम हो चुकी थी| 1968 में लागू किए गए ‘इंस्टिट्यूटशनल एक्ट नम्बर 5’ के साथ स्थिति और बदतर हो गई| इसके फलस्वरूप किसी को भी बिना कारण गिरफ्तार किया जा सकता था | इस एक्ट ने स्वतंत्रता की सारी संभावनाओं को ख़त्म कर दिया |
पेले मुहम्मद अली नहीं हो सकते थे |
19 नवम्बर 1969 को पेले ने 1000वाँ गोल करके, फुटबाल की बादशाहत अपने नाम कर ली| फुटबॉल ब्राज़ीलवासियों के लिए क्रूर यथार्थ से भागने का एक जरिया भी बन चुका था| अंधकारमय ब्राजीलियाई जीवन में पेले का खेल लोगों के लिए एकमात्र राहत और सुकून का विषय था| फुटबाल में पेले का सामर्थ्य लोगों को खुद सामर्थ्यवान होने का अहसास जगाता था|
मैदान के बाहर पेले को राजनीतिक तटस्थता के लिए जाना जाता है | उनके कई आलोचक उन्हें एक ऐसे अश्वेत व्यक्ति के रूप में देखते हैं, जो सत्ता के सामने सर झुककर हर बात पर हामी भर देते थे| पेले अपने समकालीन महान मुक्केबाज़ मोहम्मद अली की तरह सत्ता से टकराने की कोशिश नहीं करते थे| लेकिन यहाँ यह तथ्य भी नहीं भूलना चाहिए कि पेले तानाशाही में जी रहे थे और मोहम्मद अली लोकतंत्र में|
‘Pele’ Ending Explained – ब्राज़ील और पेले के लिए 1970 का वर्ल्ड कप इतना महत्वपूर्ण क्यों था?
ब्राज़ील में तानाशाही का शिंकजा लगातार कस रहा था| सेंसरशिप और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर लगाम लगाया जा रहा था| सरकार को एक ऐसे मौके की तलाश थी जिसका फायदा उठाते हुए वह सरकारी हिंसा और उत्पीड़न से जनता का ध्यान हटा कर किसी भावुक विषय पर केन्द्रित किया जा सके| उसे यह अवसर 1970 में मैक्सिको में होने वाले फुटबाल विश्व कप के रूप में मिला| मौके का फायदा उठाते हुए सैन्य सत्ता ने वर्ल्ड कप जीतने को राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का विषय बन दिया और जनता के भीतर फुटबाल को लेकर एक किस्म का उन्माद पैदा कर दिया|
दूसरी तरफ पेले इंग्लैंड के बुरे अनुभवों को फिर से दोहराना नहीं चाहते थे, इसलिए वह 70 के विश्व कप में खेलने के इच्छुक नहीं थे| परन्तु सरकार के लिए पेले का मैदान में होना ज़रूरी था| पेले को वर्ल्ड कप में खेलने के लिए हर संभव माध्यम से कहलवाया गया| अंततः वह तैयार हो गए| यह पेले का चौथा और आखिरी वर्ल्ड कप था| उनके ऊपर बहुत दबाव था| उन्हें अपना खोया हुआ आत्मविश्वास भी पाना था|
1970 के वर्ल्ड कप में ब्राज़ील ने शानदार प्रदर्शन किया| पेले अपने पूरे शबाब पर खेल रहे थे| बावजूद इसके सेमीफाइनल को लेकर पूरे ब्राज़ील में बेचैनी फैली हुई थी क्योंकि उसमें सामना उरुग्वे से होना था, जिसने 1950 में ब्राज़ील का सपना तोड़ा था| उस असफलता की प्रेतछाया अब भी ब्राज़ील वालों को परेशान कर रही थी| टीम मनोवैज्ञानिक दबाव में थी| लेकिन पेले अब रुकने वाले नहीं थे| ब्राज़ील की टीम ने न केवल उरुग्वे को हराया बल्कि फाइनल में इटली को 4-1 से हराकर एक बार फिर विश्व विजेता बन गई|
1970 के वर्ल्ड कप ने तानाशाही में पिसते ब्राजीलियाई लोगों को सुकून और ख़ुशी का एक अवसर दिया| इतनी बड़ी जीत का श्रेय लेने में सैन्य सत्ता भला पीछे क्यों रहती, लेकिन ब्राज़ील की जनता और इतिहास को इस बात को तय करने में कोई दुविधा नही हुई कि 1970 के फुटबाल वर्ल्डकप की जीत का सेहरा किसके सिर पर बांधना है, वह थे पेले|
Pitch Productions की डाक्यूमेंट्री ‘Pele‘ आप Netflix पर देख सकते हैं|