कुत्ते हमारे सबसे पुराने, वफादार साथी रहे हैं| भावनाओं को समझने और जताने में वे इतने महारथी होते हैं कि इन्सान के बच्चे होने का आभास देने लगते हैं| उनकी इन ख़ासियतों की वजह से अक्सर आदमी और कुत्तों का संबंध बेहद आत्मीय रूप अख्तियार कर लेता है| इस आत्मीयता को समय-समय पर फिल्म का विषय भी बनाया गया है| ‘तेरी मेहरबानियाँ’, ‘चिल्लर पार्टी’, ‘एंटरटेनमेंट’ और ‘हालो’ जैसी फ़िल्में उदाहरण हैं| निर्देशक सरोव षणमुगम की हालिया स्ट्रीम हुई फ़िल्म “Oh My Dog” इसी श्रृंखला की एक नई कड़ी है|
“Oh My Dog” खासतौर पर बच्चों के लिए बनाई गई है| जिसमें 10-12 साल का एक बच्चा, कुत्ते के अंधे बच्चे को पालने, उसे सामान्य जीवन देने की जद्दोजहद में लगा हुआ नज़र आता है| प्रेम और दोस्ती के सहारे, उस अंधे कुत्ते की कमियों से पार पाने की एक जीवट यात्रा भी फ़िल्म दिखाती है|
‘Oh My Dog’ Plot Summary In Hindi
फ़िल्म का खलनायक फर्नान्डो (विनय राय), चटक रंग वाले फ़र से सजे कपड़े पहनने वाला एक रईस और सनकी आदमी है| उसके पास अच्छी नस्ल के कुत्तों की पूरी एक खेप है| जिनकी बदौलत वह लगातार छह बार डॉग चैंपियनशिप जीत चुका है| अब उसकी महत्वकांक्षा सातवीं बार डॉग चैंपियनशिप जीत कर, 1970 में लन्दन में बने विश्व रिकॉर्ड को अपने नाम करने की है|
खलनायक में हिटलर की गूंज
तानाशाही प्रवृत्ति वाला फर्नान्डो कुत्तों की नस्लीय गुणवत्ता के लिए रक्त की शुद्धता बनाये रखने का हिमायती है| उसके हिसाब से अशक्तों को जीने का हक़ नहीं है क्योंकि ऐसे प्राणी भविष्य में अक्षम बच्चे पैदा कर अपनी नस्ल को कमज़ोर बनाते हैं|
यहाँ हमें फर्नान्डो की बातों और विचारों में नाज़ीवाद की गूंज साफ़ सुनाई देती है| यह महज संयोग नहीं है कि फर्नान्डो के एक कुत्ते का नाम ‘हिटलर’ है| जर्मनी का तानाशाह हिटलर आर्यन रक्त की श्रेष्ठता को स्थापित करने की सनक से भरा हुआ था| उसकी तरह ही फर्नान्डो के लिए भी ‘योग्यतम की उत्तरजीविता (Survival of the fittest)’ का विचार बहुत मायने रखता है| इसीलिए जब एक कुत्ते का बच्चा अंधा निकल जाता है तो वह अपने आदमियों को उसे मार देने का फरमान देता है|
कुत्ते के उस अंधे नवजात बच्चे को जब फर्नान्डो के आदमी मारने की कोशिश कर रहे होते हैं, तभी संयोग से वह भाग निकलता है| भागते हुए पानी के एक गड्ढे में फंस जाता है, जहाँ से अर्जुन उसे निकालता है| इस घटना के बाद वह अंधा बच्चा, अर्जुन की गंध के सहारे उसके घर पहुँच जाता है|
अर्जुन और सिम्बा की दोस्ती
अर्जुन (अर्नव विजय) के घर में उसके अलावा माँ प्रिया (महिमा नाम्बियार), पिता शंकर (अरुण विजय) और दादा जी (विजय कुमार) हैं| घरवाले कुत्ता पालने को तैयार नहीं थे| इस वजह से अर्जुन, उनकी नज़रों से छुपा कर कुत्ते को पालने लगता है| किसी को मालूम न हो इसलिए स्कूल जाते समय वह कुत्ते को बैग में भर कर अपने साथ ले जाता| साइबेरियन हस्की प्रजाति के अपने इस अंधे कुत्ते का नाम अर्जुन ने ‘सिम्बा’ रखा|
एक दिन स्कूल के पीटी टीचर अर्जुन और उसके दोस्तों को सिम्बा के साथ खेलते पकड़ लेते हैं| प्रिंसिपल तक बात पहुँचती है| अर्जुन के पिता शंकर को स्कूल बुलाया जाता है| प्रिंसिपल शंकर से कहती हैं कि बच्चा घर में हफ्ते भर से एक कुत्ता रखे हुआ है, स्कूल भी लेकर आ रहा है और आपको कोई खबर ही नहीं| बच्चे की परवरिश में लापरवाही करने के आरोप से शंकर बहुत आहत होता है| वह गुस्से में अर्जुन को बताए बिना सिम्बा को जंगल में छोड़ आता है| शंकर और प्रिया को लगता है कि बाकी बच्चों की तरह अर्जुन भी कुछ दिनों रो-धोकर सिम्बा को भूल जायेगा| लेकिन घर में सिम्बा को न पाकर अर्जुन की तबीयत बिगड़ने लगती है| बीमारी की हालत में वह बार-बार सिम्बा को पुकारता है| शंकर और प्रिया से अर्जुन की यह स्थिति देखी नहीं जाती और वे सिम्बा को वापस घर ले आते हैं|
क्या सिम्बा प्रतियोगिता में भाग ले पायेगा?
देखते-देखते छह महीने गुज़र गए| सिम्बा अब बड़ा हो चुका है| 25वें इंटरनेशनल डॉग चैंपियनशिप का आयोजन होने वाला था| अर्जुन चाहता था कि सिम्बा उसमें भाग ले कर साबित कर दे कि बाकी कुत्तों की तरह वह कुछ भी कर सकने में सक्षम है| अर्जुन के मंसूबों पर उस समय पानी फिरता नज़र आया जब आयोजकों ने अंधेपन की वजह से सिम्बा को प्रतियोगिता में भाग लेने की इज़ाज़त नहीं दी|
अर्जुन पहले भी सिम्बा की आँखों का ऑपरेशन कराने की कोशिश कर चुका था| लेकिन ऑपरेशन के लिए 2 लाख रुपए की व्यवस्था नहीं हो पाई थी| शंकर अर्जुन को अच्छे स्कूल में पढ़ाने के लिए घर तक गिरवी रख चुका था, वह इतने पैसे कुत्ते के इलाज़ में देने के लिए समर्थ नहीं था| अंततः अर्जुन रूस से आये जानवरों के एक प्रसिद्ध डॉक्टर से मिलकर सिम्बा का ऑपरेशन करने की गुहार लगाता है| अर्जुन के दिल में सिम्बा के लिए गहरा प्यार देख कर डॉक्टर साहब बिना पैसे के सिम्बा का इलाज करने के लिए तैयार हो जाते हैं| ऑपरेशन के बाद सिम्बा की आँखें ठीक हो जाती हैं| अब वह चैंपियनशिप में भाग लेने के लिए पूरी तरह से तैयार था|
फर्नान्डो के लिए इस साल की डॉग चैंपियनशिप जीतना प्रतिष्ठा की बात थी| प्रतियोगिता के पहले चरण में ही सिम्बा के प्रदर्शन ने फर्नान्डो के कान खड़े कर दिए| वह अर्जुन के घर वालों को डराने-धमकाने की कोशिश करता है जिससे कि सिम्बा प्रतियोगिता में जा ही न पाए| जब यह युक्ति काम नहीं करती तो फर्नान्डो तेज़ रोशनी के बल्बों का पॉवर लगातार बढ़ा कर उनमें धमाका करा देता है| इस दुर्घटना में एक बार फिर सिम्बा की आँख की रोशनी चली जाती है|
क्या सिम्बा डॉग चैंपियनशिप जीतेगा?
प्रतियोगिता की चुनौती पूरा करने में सिम्बा के बचपन का प्रशिक्षण बहुत काम आया| अर्जुन ने शुरू से ही सिम्बा को घंटी की आवाज़ और अपने निर्देश के अनुसार क्रिया-कलाप करने के लिए प्रशिक्षित कर रखा था| देखने में असमर्थ सिम्बा, प्रतियोगिता में अपनी पारी शुरू करता इससे पहले अर्जुन सारे स्टेप खुद पूरा करता है| बाद में सिम्बा अर्जुन की गंध का पीछा करते हुए रिकॉर्ड समय में सारे टास्क पूरे कर चैंपियनशिप जीत लेता है|
‘Oh My Dog’ Review
फ़िल्म का सन्देश साफ़ है| कमज़ोर समझ कर जिन्हें मुख्यधारा के हाशिए पर डाल दिया जाता है, शारीरिक विकलांगता या कमजोरी की वजह से जिनकी सामाजिक उपेक्षा की जाती है, ज़रा से प्यार और देखभाल के सहारे वे सारे पूर्वाग्रहों को धता बताते हुए, खुद को साबित कर सकते हैं|
“Oh My Dog” बच्चों को ध्यान में रख कर बनाई गई है| अपने नन्हे दर्शकों के लिए निर्देशक के पास स्पष्ट सन्देश और साफ़-सुथरी मनोरंजक फ़िल्म बनाने का इरादा था| कहानी को जटिलताओं से बचाया गया है| सारी समस्याओं का सरल समाधान कहानी में मौजूद है| फ़िल्म अतिनाटकीय ढंग के अभिनय से भरी हुई है| फर्नान्डो, उसके चमचे और अर्जुन के दोस्त के इंस्पेक्टर पिता सीधे-सीधे किसी कॉमिक्स से निकल कर आते हुए लगते हैं| कहानी की मांग के अनुसार सिम्बा-अर्जुन के रिश्ते में जितनी भावनात्मक गहराई दिखनी चाहिए थी, वह नज़र नहीं आती|
निर्देशक सरोव षणमुगम की फ़िल्म “Oh My Dog” आप प्राइम वीडियो पर देख सकते हैं|