‘Malena’ इटेलियन फ़िल्म को अमूमन उत्तेजक हास्य सिनेमा के रूप में देखा और प्रचारित किया गया है किंतु ‘Malena’ अपने आप में भीड़ का एक कड़वा सत्य है। भीड़ मतलब वो झुंड जिसमें न बुद्धि है, न विवेक, न ज्ञान और ना ही इंसानियत। वो न सोचता है और ना ही समझता है। वो आज़ाद से ज्यादा अराजक है, ज़िम्मेदार से ज़्यादा हवाबाज़ है। उसकी नैतिकता अनैतिक है। वो बस पेड़ से झड़ा एक सूखा पत्ता है जो हवा के रुख के साथ इधर से उधर डोलते हुए अपने जीवित होने का प्रमाण देता रहता है। अब दुःखद सत्य यह है कि ऐसे ही भीड़ की संख्या हर देश, काल में सबसे ज़्यादा रहती आई है। उदय प्रकाश की एक रचना याद पड़ रही है –
“आदमी मरने के बाद कुछ नहीं सोचता
आदमी मरने के बाद कुछ नहीं बोलता
कुछ नहीं सोचने और कुछ नहीं बोलने पर
आदमी मर जाता है”
सन 2000 में बनी ‘Malena’ अपने आप में अनूठी फ़िल्म ऐसे ही सांस लेते मुर्दों के बीच जीने के लिए संघर्ष करती एक स्त्री की कथा है।
तो क्या ‘Malena’ उत्तेजना और सेक्स और रोमांस नहीं है? हां है लेकिन वह इस फ़िल्म का विषय है, आरोपित नहीं। यह साढ़े बारह साल का एक किशोर रेनाटो अमरोसो (Giuseppe Sulfaro) के मोहल्ले की सबसे ख़ूबसूरत वैवाहिक स्त्री मिलेना (मोनिका बल्लुची) के प्रति आकर्षण की कथा है लेकिन उससे भी ज़्यादा कथा है युद्ध की विभीषिका, युद्ध का उन्माद, आम आदमी और ख़ास आदमी की प्रचंड मूढ़ता और जिसकी सत्ता उसका भोंपू बनने आदि आदि की। वैसे अभिनय में पूरे शरीर का इस्तेमाल होता है और उसके साथ तकनीक और समझ का भी होना आवश्यक होता है। मोनिका बेल्लूची का एक प्रसिद्ध कथन है – “मेरा शरीर मेरे लिए बेहद महत्वपूर्ण है … मेरा चेहरा, मेरी बाहें, मेरे पैर, मेरे हाथ, मेरी आंखें, सबकुछ। मेरे पास जो कुछ भी है मैं उन सबका इस्तेमाल करती हूं।” यह अलग से बताने की आवश्यकता नहीं पड़नी चाहिए कि ‘Malena’ में मोनिका के संवाद बिलकुल भी नहीं हैं एकाध स्थान पर है भी तो केवल अभिवादन और एकाध पंक्ति लेकिन यहां बड़ी कुशलता के साथ मोनिका यहां न केवल अपने पूरे देह का इस्तेमाल करती हैं बल्कि अभिनय के प्रति अपनी समझ और निष्ठा को भी बड़ी ही कुशलता के साथ प्रस्तुत करती है। मोनिका ख़ूबसूरत हैं और उन्हें यह बात पता भी है लेकिन ख़ूबसूरती के बारे इनके कथन कुछ ऐसे हैं – “सौंदर्य एक उपहार की तरह है, जैसे अच्छी सेहत या समझ। आप केवल ख़ूबसूरत हैं यह कोई गौरव की बात नहीं है क्योंकि यह आपको उपहार में मिला है, इसके लिए आपने अलग से कोई प्रयत्न नहीं किया है।” यह कहना ग़लत न होगा कि मोनिका बुद्धि और सौंदर्य का अनूठा मेल हैं। बहरहाल, फ़िल्म की बात करते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध का समय है। इटली का शासक मुसोलनी इटली के युद्ध में शामिल होने की घोषणा करता है। जनता वाह-वाह करती है। दुनियाभर के ग्रंथ बार बार यह समझाएं कि युद्ध में हार जीत से ज़्यादा केवल और केवल विनाश अवतरित होता है लेकिन मूढ़ इंसान न कभी समझा है और न समझेगा क्योंकि पशुता कभी भी पूंछ होने की मजबूरी न कभी थी और न कभी रहेगी। ‘Malena’ के शुरुआत में ही एक दृश्य है। रेडियो पर मुसोलनी की आवाज़ सुनाई दे रही है। कुछ किशोर एक शीशे से सूर्य की रौशनी को इकट्ठा करके एक छींटा पर डाल रहे हैं। थोड़ी देर बाद वो छींटा सूर्य की रौशनी का शीशे द्वारा एक अदृश्य आग में बदलने से जल जाता है और बच्चे खुशी में झूम पड़ते हैं और युद्ध की भयावहता का खेल-खेल में ही उद्घाटन हो जाता है। अब एक तानशाह का जोशीला भाषण, सूर्य की जीवनदाई रौशनी का विध्वंशक बन जाना और छींटे का जल जाना, यह इमेज अगर समझ में आई तो इस फ़िल्म का अर्थ आपके लिए बदल जाएगा नहीं तो यह एक ठरकी सिनेमा बनकर रह जाएगा। ऐसे इमेज ‘Malena’ में जगह – जगह उपस्थित होते हैं, जिसके सहारे एक संवेदनशील निर्देशक व्यापक अर्थ प्रस्तुति करता जाता है; समझ गए तो वाह वाह वरना तो सब हवा है ही।
मिलेना एक ख़ूबसूरत शादी सुदा महिला है, स्त्रियां उससे जलती हैं और मर्द उसे देखकर अपना ठरक फैलाते हैं। मिलेना इन सबको नज़रंदाज़ करके अपना काम करती रहती है चुपचाप। उसका पति युद्ध के मोर्चे पर चला जाता है और उसकी कोई ख़बर नहीं मिलती। मिलेना के लिए अपना पेट तक पालना मुश्किल हो जाता है। इधर मिलेना को लेकर अफ़वाहों का बाज़ार गर्म हो जाता है कि वो अब एक वैश्या हो गई है। उसकी मदद के लिए कोई तैयार नहीं होता लेकिन उसको चूसने और तंग करने के लिए बूढ़े, जवान, किशोर सब तैयार बैठे हैं। आख़िरकार अपने आपको जीवित रखने के लिए मिलेना को वेश्यावृति का सहारा लेना पड़ता है और फिर वो जिस भयावहता का सामना करती है, वो फ़िल्म में आगे दिखता रहता है।
वर्ष 2000 में आई इस विश्वप्रसिद्ध इटालियन फ़िल्म को Giuseppe Tornatore ने लिखा और निदेशित किया है और मोनिका बल्लुची की प्रतिनिधि फिल्मों में यह शुमार है और इसे एक किशोर की भूमिका में Giuseppe Sulfaro के शानदार काम के लिए भी याद किया जाता है। अब जहां तक सवाल संपादन, कैमरा और संगीत का है तो वो भी यहां बेहतरीन है। वैसे भी जब भी कोई फ़िल्म शानदार की श्रेणी में दर्ज़ होती है तो उसमें हर विभाग का काम श्रेष्ठ होता है और शानदार फ़िल्में बोलती कम और महसूस ज़्यादा कराती हैं बर्शते हमारे पास महसूस करने की क्षमता हो।