Saturday, April 20, 2024

‘Looop Lapeta’ Review In Hindi: ‘लूप लपेटा’ अर्थात ‘रन लोला रन’

जर्मन लेखक और निर्देशक टॉम त्याक्वेर ने सन 1998 में एक फ़िल्म निर्देशित की थी ‘Lola rennt.’ इस फ़िल्म को दुनियाभर के प्रायोगिक सिनेमा को पसंद करनेवालों ने बड़े ही सम्मान से देखा और सराहा था। अंग्रेज़ी में यह फ़िल्म ‘Run Lola Run’ के नाम से आई थी। ‘Looop Lapeta’ इसी फ़िल्म का आधिरिक हिंदी पुनसृजिजन है। रन लोला रन टाइम लूप की काल्पनिक सिद्धांत पर आधारित एक सुरुचिपूर्ण (stylish) फ़िल्म थी, इसलिए सबसे पहले इस टाइम लूप के सिद्धांत को ज़रा समझ लिया जाए तो उस पर आधारित सिनेमा समझने में ज़रा आसानी होगी वरना फ़िल्म देखते हुए बार-बार यही प्रतीत होगा कि क्या बक़वास चल रहा है!

अगर हम अंग्रेज़ी के शब्द ‘Loop’ का हिंदी अर्थ निकलते हैं तो चक्र होता है अर्थात गोल-गोल। यहां इसे बार-बार के संदर्भ में समझ सकते हैं। एक ही घटना बारम्बार दोहराई जाए और उसका अंत बदल जाए, यह है मोटामोटी time loop का काल्पनिक सिद्धांत। कुछ ख़ास समझ में नहीं आ रहा तो बस इतना समझ कीजिए कि एक इंसान बार बार अंग्रेज़ी के आठ में दौड़ता चला जाए, कभी आगे तो कभी पीछे। यह सिद्धांत नया नहीं है बल्कि ऐसे कई लोककथा मिल जाएगें जहां यह सिद्धांत साफ-साफ दिखाई देते हैं। विश्वभर के आधुनिक साहित्य भी इस विषय पर भरे पड़े हैं और जहां तक सवाल सिनेमा का है तो विश्व सिनेमा में भी एक से एक उदाहरण हैं, कुछ अच्छे और कुछ वाहियात।

‘Looop Lapeta’ कहानी है सावी (तापसी पन्नू) की जिसका बॉयफ्रेंड सत्या (ताहिर राज भसीन) शॉर्टकट के चक्कर में एक लपड़े में फंस जाता है और अब सावी के ऊपर ज़िम्मेदारी है कि वो उसे इस लफड़े से बाहर निकाले। अब सावी लूप लपेटे के चक्कर में आती है और सत्या को बचाने की चेष्टा करती है। अब यहां सवाल यह पैदा होता है कि अगर आप पहले से बनी बनाई किसी फ़िल्म को पुनर्निर्मित करने का निर्णय लेते हैं तो उसके पीछे का तर्क क्या है? क्या आप उसे जस का तस बनाने की चेष्टा करते हैं याकि उसे पुनर्परिभाषित करने का जोख़िम उठाते हैं। यदि आप उसे केवल पुनर्निर्मित करते हैं तो वहां एक बेहद ख़राब कार्बन कॉपी के अलावा शायद ही कुछ हासिल हो, हां पुनर्परिभाषित करने में जोख़िम ज़्यादा है लेकिन पुनर्निर्माण की शर्त ही यही है वरना तो लोग पहले की निर्मित फ़िल्म ही क्यों न देखें। अब जहां तक सवाल ‘Looop Lapeta’ का है वो केवल पुनर्निर्माण की परिणति को प्राप्त होती है, पुनर्व्याख्या का प्रयास यहां दूर-दूर तक महसूस नहीं होता। इसलिए आप अगर इसे देखते हुए ठगा हुआ सा एहसास करें तो शायद वो ग़लत एहसास न होगा। जहां तक सवाल अभिनेताओं के काम का है तो यहां सारे के सारे अभिनेता केवल शैली और निर्देशन के तत्व बनकर रह जाते हैं इसलिए अभिनय के उत्पादन का कोई ख़ास स्थान बनता नहीं है फिर भी अनुभवी अभिनेता कहीं न कहीं अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा ही लेता है और यह काम यहां विक्टर के रूप में देबेन्दू भट्टाचार्य बख़ूबी कर जाते हैं। बाक़ी जहां तक सवाल पूरी फ़िल्म का है तो ‘Looop Lapeta’ में ऐसा कुछ ख़ास है नहीं कि वो सिनेमाप्रेमियों की स्मृतियों में लंबे समय तक अंकित रह पाए।

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‘Looop Lapeta’ आप Netflix पर देख सकते हैं|

पुंज प्रकाश
पुंज प्रकाश
Punj Prakash is active in the field of Theater since 1994, as Actor, Director, Writer, and Acting Trainer. He is the founder member of Patna based theatre group Dastak. He did a specialization in the subject of Acting from NSD, NewDelhi, and worked in the Repertory of NSD as an Actor from 2007 to 2012.

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