Friday, April 19, 2024

‘Look Who’s Back’ Review : तानाशाहों को जनता ही चुनती है।

वर्ष सन 2014, हिटलर एक असफल एंकर के साथ यहां वहां घूम रहा है। वो एक बेकरी की दुकान पर पहुंचता है और वर्तमान का हाल जानने की चेष्टा करता है। बेकरीवाली महिला कहती है – “मैं अभी भी यह सोचती हूं कि चुनाव छल कपट से संचालित होते हैं, इसलिए कुछ ख़ास बदलाव नहीं होता।” आगे थोड़ी और बातचीत होती है और तत्पश्चात हिटलर यह निष्कर्ष निकलता है कि “हां, और लोग इस बारे में बात करने से डरते हैं। मेरी अनुपस्थिति में, लोकतंत्र ने कोई ख़ास प्रभाव नहीं छोड़ा है।” ऐसे ही दिमाग हिला देनेवाले और कटु सत्य संवादों से परिपूर्ण है यह व्यंगात्मक फ़िल्म – “Look Who’s Back.”

इसका अर्थ यह हुआ कि यह पूरी तरह से एक काल्पनिक फ़िल्म है क्योंकि हिटलर तो सत्तर साल पहले ही दुनिया से विदा ले चुका है, लेकिन इस फिल्म का आज के यथार्थ से कोई सम्बन्ध नहीं है, यह बात कोई प्रचंड मूर्ख और अज्ञानियों के पितामह ही कह सकते हैं। वैसे भी हिटलर अब एक व्यक्ति नहीं बल्कि विचार है और विचार कभी मरते नहीं हैं।

जर्मन भाषा की फ़िल्म “Look Who’s Back” कल्पना करता है कि 70 साल बाद हिटलर जाग उठा है और वो अपने को जिस दुनिया में पाता है, यह उसके सपनों की दुनिया नहीं थी। उसे अपना सारा संघर्ष और त्याग(!) बेकार प्रतीत होने लगता है। वो बर्लिन में भटकने लगता है। हिटलर और जगहों पर घूमता और लोगों से बात करता है और यह पाता है कि लोगों के भीतर उसी प्रकार की नाराज़गी और छिपा हुआ गुस्सा है जो उसके उदय से पहले था। उसे अपनी ज़मीन एक बार फिर तैयार दिखती है। उसे यह बात बहुत अच्छे से पता है कि असंतुष्टि क्रांति और अराजकता दोनों ही के लिए खाद पानी का काम करती है।

- Advertisement -

इसके पहले का एक दृश्य कुछ ऐसा है कि हिटलर होटल के एक कमरे में पहली बार टेलीविजन देखता है और तकनीक के इस महानतम आविष्कार पर मंत्रमुग्ध हो जाता है और उसके मुंह से फौरन ही निकला पड़ता – तकनीक का चमत्कार, प्रचार (propgenda) में कमाल का सहायक होगा। ऊपर लिखे वर्ष के साथ हिटलर का नाम देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा होगा कि सन 2014 कहीं गलती से तो अंकित नहीं हो गया है। जी नहीं यह गलती नही है क्योंकि हम बात कर रहे हैं सन 2015 में आई जर्मन फ़िल्म “Look Who’s Back” की। David Wnendt निर्देशित यह फ़िल्म सन 2012 में इसी नाम से प्रकाशित व्यंगात्मक उपन्यास का फिल्मांकन है, जिसके लेखक Timur Vermes हैं। यह उपन्यास भी अपने आप में एक अद्भुत पुस्तक है।

हिटलर जगह-जगह घूमकर लोगों का मिजाज़ पढ़ रहा है। इस सबके दौरान वो अपनी शेखी का भी बखान करता रहता है। रास्ते में गैस चेंबर की बात करता है। वो एक स्त्री से जर्मन शेफर्ड कुत्तों की प्रजाति के बारे में बताता है। वो एक व्यक्ति से मिलता जिसे कुत्तों से बहुत प्यार है। हिटलर एक छोटा सा पामेरियन कुत्ते के साथ खेलता है और अपने आपको उस कुत्ते का अंकल बुलाता है लेकिन उस कुत्ते को किसी वजह से हिटलर पसंद नहीं आता है और वो हिटलर के दाहिने हाथ की उंगली में काट लेता है और हाथ में तब तक लटका रहता है जब तक हिटलर उसे झटककर दूर नहीं फेंक देता। कुत्ता वहीं रुकने का नाम नहीं लेता और अब वो हिटलर की कोट में लटकने लगता है। हिटलर अपनी जेब से पिस्तौल निकालता है और कुत्ते को गोली मार देता है। हिटलर और पत्रकार वहां से भागते हैं और रास्ते में पत्रकार हिटलर से वो पिस्तौल यह कहते हुए छीन लेता है कि “तुम हिटलर की मेथार्ड एक्टिंग कर रहे हो और तुमने इसी को सही मान लिया है। तुम इस तरह भरा हुआ पिस्तौल नहीं रख सकते और शूट नहीं कर सकते।” तभी कहीं से गाने बजाने की आवाज़ आती है। हिटलर पूछता है – यह शोर कैसा है?

“ये निग्रो हैं और गए बजा रहे हैं।” – नौकरी से निकाल दिया गया पत्रकार का यह जवाब सुनकर हिटलर गंदा सा मुंह बनाता है और जानने की कोशिश करता है कि निग्रो का अस्तित्व क्या है। पत्रकार जब निग्रो मतलब दोस्त बोलता है तो हिटलर मुंह बिचकाता है जैसे कह रहा हो कि दोस्ती बराबर वालों से होती है और एक जर्मन महान (आर्यन) रेस का दोस्त निग्रो कैसे हो सकते हैं! गाड़ी में बैठा हिटलर एकाएक कुत्ते की लाश निकाल लेता है और गाड़ी चला रहे पत्रकार की तरफ कुत्ते का मुंह करते हुए – हे निग्रो बोलता है। पत्रकार घबराकर गाड़ी रोक देता है।

वो रास्ते में हैं और पैसा ख़त्म हो चुका है। पत्रकार कहीं से पैसा जुगाड़ने की नाकाम कोशिश करता है, फिर उसे एक विचार आता है कि क्यों न हिटलर से लोगों का स्केच बनाकर पैसा कमाया जाए। जानकार जानते हैं कि हिटलर को बचपन में पेंटिंग करने का शौक था और कुछ अतिविद्वानों का मत है कि अगर हिटलर एक तानाशाह नहीं होता तो वो एक कलाकार होता। बहरहाल, वो शहर के एक चौराहे पर बैठ जाते हैं। लोग इस ज़माने में हिटलर के वेशभूषा में बैठे किसी आदमी को उत्सुकता से देखते हैं और कुछ अपना स्केच बनवाने भी आते हैं। हिटलर उनका बहुत ही वाहियात सा स्केच बनाता है, लोग ठहाके लगाते हैं और बदले में कुछ पैसे भी देते हैं।

आगे हिटलर एक बुज़ुर्ग महिला और एक आदमी में मिलता है और पूछता है कि मुझे पहचानते हो? महिला जवाब देती है – हां, हिटलर। बात आगे बढ़ती है और महिला के साथ खड़ा पुरुष कहता है – “तुम इतिहास से सीख सकते हो, इतिहास दोहरा नहीं सकते।”

हिटलर को यह बात पसंद नहीं आती है और वो लिखने के लिए यह कहते हुए कलम ढूंढता है कि मेरा राज आने पर सबसे पहले तुम्हें गिरफ्तार किया जाएगा। इस बात पर आदमी का हंसते हुए जवाब होता है – “मुझे यह सुनकर भय नहीं लगा।”

लोग हिटलर के साथ सेल्फी लेते हैं, उसे सोशल मीडिया पर पर आई लव हिटलर कहते हुए और हिटलरी सलाम करते हुए वायरल करते हैं। सबके लिए यह हिटलर एक चुटकुले से ज़्यादा कुछ नहीं है। वायरल वीडियो का सबूत लेकर पत्रकार न्यूज़ चैनल के दफ़्तर जाता है, साथ में हिटलर भी है। वो सीधे प्रमुख के केबिन में घुस जाता है और कहता है – “हमारी स्थिति ख़राब है, चलो मिलकर जर्मनी को बचाएं।”

यह हर तानाशाह का बेहद सफ़ल तिकड़म होता है कि आप खतरे में हैं और इस खतरे से बचाने के लिए वो आए हैं। हिटलर को पहले लोग एक मनोरंजन के रूप में लेते हैं। टीवी पर उसके शो आने लगते हैं, लोग देखने लगते हैं। धीरे- धीरे टीवी हिटलर का प्रोगेंडा बन जाता है और मज़ाक -मज़ाक में ही मामला गंभीर हो जाता है। बहुत सारी बातें और हैं लेकिन आख़िर में एक बूढ़ी महिला उसे पहचान लेती है कि यह असली हिटलर है, कोई मज़ाक नहीं।

हिटलर नई किताब लिखता है। उसके साथ नए लोग जुड़ते हैं और इस प्रकार फिर से नियो फासीवाद का उदय होता है और मज़ाक में शुरू हुआ काम अब उनके ही गले का फंदा बन जाता है। आखिरकार पत्रकार एक ऊंची इमारत पर हिटलर को ले जाता है और गोली मार देता है। हिटलर नीचे गिरता है लेकिन दूसरे ही पल हिटलर पत्रकार के पीछे खड़ा यह कहते हुए हंस रहा है – “मैं अपने आप में कुछ नहीं हूं। तुमने मुझे चुना है इसलिए मैं तुम हूं।” उसके बाद हिंसा का दौर शुरू होता है। लोग अब फासीवादी के साथी बन वर्तमान सरकार को कठपुतली सरकार का तमगा देकर उसके खिलाफ़ विद्रोह की शुरुआत होती है। अब सबकुछ आमने सामने हो चुका है और फासीवाद फिर से अपना चंगुल फैलाने लगता है और यह साबित होता है कि जो लोग इतिहास से नहीं सिखाते उनका कोई खून और मवाद के सिवा और कुछ नहीं है।

एक आंकड़े के अनुसार दुनियाभर और विभिन्न भाषाओं में अब तक लगभग डेढ़ सौ अभिनेताओं ने हिटलर की भूमिका सिनेमा में अभिनीत की है, जिनमें चार्ली चैपलिन और एंथनी हॉकिंस जैसे अभिनेता भी शामिल है। “Look Who’s Back” में हिटलर की भूमिका निभाते हुए जर्मन अभिनेता Oliver Masucci निश्चित रूप से भुलाए नहीं भूलते हैं।


फ़िल्म “Look Who’s Back” YouTube पर देखी जा सकती है|

पुंज प्रकाश
पुंज प्रकाश
Punj Prakash is active in the field of Theater since 1994, as Actor, Director, Writer, and Acting Trainer. He is the founder member of Patna based theatre group Dastak. He did a specialization in the subject of Acting from NSD, NewDelhi, and worked in the Repertory of NSD as an Actor from 2007 to 2012.

नए लेख