मलयालम सिनेमा इस समय उठान पर है | आजकल मलयाली फ़िल्मकार कलात्मक जोखिम उठाने का जो माद्दा दिखा रहे हैं, उसकी मिसाल पूरे भारतीय सिनेमा जगत में कहीं और देखने को नहीं मिलेगी | इसके लिए मलयाली सिनेमा की जितनी तारीफ की जाए कम है | श्रेष्ठ सिनेमा के लिए रचनात्मक जोखिम उठाने का ऐसा ही एक उदाहरण है, निर्देशक मनु वरियर की एक्शन थ्रिलर फ़िल्म ‘कुरुथी’ (Kuruthi) | ‘Kuruthi’ मलयाली भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है “पवित्र कार्यों के लिए दी जाने वाली बलि” |
‘Kuruthi’ में प्रमुख भूमिका निभाने वाले अभिनेता तथा फिल्म के निर्माता पृथ्वीराज सुकुमार के शब्दों में कहें तो यह फ़िल्म मूलरूप से हिंसा की अबाध शक्ति और आस्था की अचल प्रवृत्ति के आपस में मिलने से पैदा हुई स्थितियों का विश्लेषण करती है |
‘Kuruthi’ Plot Summary in Hindi
‘Kuruthi’ की शुरुआत बर्ड व्यू शॉट के साथ होती है जिसमें रात के सन्नाटे में पुलिस की जीप की नीली रोशनी चारों तरफ नाच रही है | एक आदमी कैमरे की तरफ पीठ किये शांत भाव से बैठा हुआ है, सामने लुंगी पहना हुआ आदमी एक पुलिस वाले को घसीट रहा है | पहले दृश्य में हम घने जंगल के बीच रात के अँधियारे में हो रही हिंसा को देखते हैं | इसके ठीक विपरीत दूसरा दृश्य उजाले और मानवीयता से सराबोर है, जिसमें एक छोटी बच्ची अपने पिता से बकरी की बलि न देने के लिए कहती दिखती है | ‘Kuruthi’ फ़िल्म इन्हीं दो दृश्यों की तरह हिंसा और मानवीयता के दो विरोधी ध्रुवों के बीच उलझी परिस्थितियों और इंसानों की कहानी कहती है | इसके एक सिरे पर इब्राहिम और मूसा खड़े हैं तो दूसरे सिरे पर रसूल और लईक |
दो परिवारों का एक जैसा दुःख
इब्राहिम उर्फ़ इब्रू (रोशन मैथ्यू) केरल के एराट्टूपेट्टा गाँव में में अपने पिता मूसा खदेर (ममुक्कोया) और भाई रसूल (नासलेन) के साथ रहता है | वह रबर के पेड़ से रबर निकालने का काम करता है | प्रेमन (मनिकंद्रजन) और उसकी बहन सुमति (सृंदा) खदेर परिवार के पड़ोसी हैं | एक साल पहले पास वाले गाँव में हुए भूस्खलन में इब्राहिम की पत्नी जीनत, बेटी ज़ुहरू और प्रेमन की पत्नी की मौत हो चुकी है | प्रकृतिक आपदाएँ हिन्दू-मुलसमान नहीं देखती | इनकी कहर की पीड़ा सभी मनुष्य सामान रूप से झेलते हैं | इब्रू अपनी बीवी-बच्ची की मौत के हादसे से बाहर नहीं निकल पा रहा है तो दूसरी तरफ प्रेमन पत्नी के गम में खुद को शराब में डूबा लेता है |
एक दुर्भाग्यपूर्ण रात
उस दुर्भाग्यपूर्ण रात में जब इब्राहिम का परिवार सुमा के खाना लेकर आने का इंतजार कर रहा था, तभी कोई दरवाज़ा खटखटाता है | खोलने पर सब-इंस्पेक्टर सथ्यन (मुरली गोपी) और बंदी विष्णु (सागर सूर्या) सामने थे जो इब्राहिम के घर छुपने आए थे |
इंस्पेक्टर सथ्यन इब्राहिम के परिवार वालों को बताता है कि वह एक कांस्टेबल के साथ इस हत्या आरोपी को पकड़ कर जब वापस जा रहा था, उस समय कुछ लोगों ने उन पर हमला कर दिया | वह इस लड़के की और अपनी जान बचाते हुए किसी तरह यहाँ तक आया है | उसे अपने साथ वाले कांस्टेबल के बारे में कुछ भी नहीं मालूम क्योंकि वह दूसरे रास्ते पर भाग गया था | यहाँ इंस्पेक्टर सथ्यन अपने जिस कांस्टेबल की बात कर रहा है, उसे ही फ़िल्म के पहले दृश्य में कुछ लोगों द्वारा मारे जाते दिखाया गया था | शहर को जाने वाला पुल टूटा हुआ है इसलिए पुलिस की मदद उन्हें सुबह तक ही मिल पायेगी | इसी वजह से वह दोनों रात भर के लिए उनके घर में ही रुकेंगे |
कुछ लोग बंदी लड़के की जान के पीछे क्यों पड़े हुए हैं ?
विष्णु 12वीं पास करके, इंजीनयरिंग की कोचिंग कर रहा था | उसके पास अपने समुदाय के उत्पीड़न को लेकर वह सारे तथ्य और तर्क मौजूद हैं, जो व्हाट्सअप फॉरवर्ड्स से मिलते हैं |
कुछ दिन पहले इलाक़े के एक मन्दिर में तोड़फोड़ की वारदात हुई थी जिससे आक्रोशित होकर हिन्दुओं ने बंद का आह्वान किया था | उस बंद में विष्णु की एक मुस्लिम दुकानदार से दुकान बंद करने को लेकर कहासुनी हो गई थी और विष्णु ने उसे छुरा भोंक कर मार दिया था | तब से कुछ मुस्लिम कट्टरपंथी उसकी जान के दुश्मन बने हुए हैं |
पुलिस विष्णु को ढूँढ़ते हुए इलाके में आई थी और जब उसे पकड़ कर वापस ले जा रही थी, तभी उन मुस्लिम चरमपंथियों ने पुलिस पर हमला कर दिया था |
मारने वाला बनाम बचाने वाला
रसूल, इब्राहिम का छोटा भाई और विष्णु का समवयस्क है | कुछ तो अपने समुदाय के कमज़ोर लोगों पर होते अत्याचार को देखकर और कुछ सोशल मीडिया के प्रोपेगंडा के असर में आकर रसूल चरमपंथियों की तरफ झुक गया है | करीम, रसूल का परिचित है और लगातर उसके भीतर के गुस्से को भड़काने का काम करता रहता है |
उस त्रासद रात में करीम, लाईक (पृथ्वीराज सुकुमारन) के साथ विष्णु को खोजते हुए इब्राहिम के घर पहुँचता है |
लाईक, इंस्पेक्टर सथ्यन से विष्णु को उसके हवाले करने को कहता है | जाहिर है कि इंस्पेक्टर इसके लिए तैयार नहीं होता है | इंस्पेक्टर सथ्यन और लाईक के बीच वाद-विवाद होता है | लाईक इंस्पेक्टर को चाकू के वार से घायल कर विष्णु की तरफ लपकता है कि बीच में आ इब्राहिम जाता है | वह इंस्पेक्टर की पिस्तौल उठा कर लाईक पर तान देता है | पिस्तौल की बदलौत इब्राहिम लाईक और करीम को अपने घर से बाहर निकाल कर दरवाज़ा बंद कर लेता है |
इधर इंस्पेक्टर सथ्यन मरते-मरते इब्राहिम को कुरान की शपथ दिलवाता है कि वह विष्णु को केवल पुलिस के हवाले करेगा और किसी के नहीं |
इस तरह ‘Kuruthi’ में एक तरफ लईक है जो अपनी आस्था और मान्यता को लेकर बहुत कट्टर है | वह अपने विश्वास की कोई भी कीमत चुकाने के लिए तैयार है | वहीँ दूसरी तरफ इब्राहिम है जो धर्मिक तो है लेकिन कट्टर नहीं है | उसके भीतर मानवीय संवेदनशीलता है | वह हमेशा संदेह और दुविधा से घिरा रहता है कि क्या सही है, क्या गलत ? लईक और इब्राहिम के रूप में एक ही समुदाय के दो अलग-अलग पक्षों को दिखाया गया है |
तनाव बढ़ते ही ‘अपने लोग’ और ‘उनके लोग’ की घेरेबंदी
‘Kuruthi’ की कहानी ज्यादातर, रात के अंधियारे में इब्राहिम के घर के भीतर चलती है | जहाँ कुछ पात्र एक परिस्थिति में फँसे हुए हैं | जैसे-जैसे परिस्थितियों में तनाव बढ़ता है, वैसे-वैसे वहाँ मौजूद चरित्रों की भीतरी परतें खुलती जाती हैं | चरित्रों में आने वाले इन बदलावों को, उनके मनोजगत में होने वाली हलचलों को लेखक अनीश पल्ल्यल और निर्देशक मनु वरियर ने दृश्यों के माध्यम से बारीकी से पकड़ा है |
सारे पात्रों की अपनी धार्मिक, वैचारिक आस्थाएँ हैं | सामान्य परिस्थितियों से इतर तनाव या दबाव पड़ने पर यह लोग गहरी असुरक्षा की भावना से घिर कर अपनी-अपनी घेरेबंदी करने लगते हैं | इसका सबसे अच्छा उदहारण सुमति का चरित्र है जो सामान्य जीवनक्रम में इब्राहिम के घर वालों का ध्यान रखती है, उसके घर के छोटे-मोटे काम भी कर देती है क्योंकि वह इब्राहिम से प्यार करती है और उससे शादी करना चाहती है | लेकिन जब वह लईक और उसके लोगों को जानवरों की तरह विष्णु के शिकार के लिए घात लगाए देखती है तो उसके भीतर गहरे जड़ें जमाए असुरक्षा का भाव उभर आता है | यहाँ तक कि अब वह विष्णु की जान बचाने कोशिश करने वाले इब्राहिम पर भी विश्वास नहीं कर पा रही होती है और उसे भी बन्दूक के निशाने पर ले लेती है |
एक दृश्य में लाइट कटने से अचानक अँधेरा हो जाता है और जब सुमति मोमबत्ती की रोशनी करती है तो रसूल और विष्णु एक दूसरे पर प्रहार की मुद्रा में दिखते हैं | यहाँ दोनों के भीतर की असुरक्षा और अविश्वास की भावना साफ दिखती है | यह दोनों रोशनी में केवल संवादों के स्तर पर ही आक्रामक थे लेकिन, अन्धकार पसरते ही मरने-मारने पर उतर आते हैं |
‘हम’ और ‘वह’ के बीच फँसी आम लोगों की आवाज़
दो समुदायों के उन्माद के बीच पिसते लोगों की आवाज़ को अभिव्यक्त करता हुआ फ़िल्म का एक पात्र कहता है, “एक पक्ष को सत्ता का अहम् है और दूसरे पक्ष के पास खोने लायक कुछ भी न होने से उपजा दुस्साहस है | इन दोनों के बीच हमारे जैसे गरीब लोग हैं जिनकी किसी को परवाह नहीं है |”
ठीक ऐसा ही दर्द मूसा के एक संवाद के जरिए सामने आता है, “हमें तो केवल एक सूखे से दूसरी बाढ़ तक, किसी तरह बचे रहने की कोशिश करते रहना है |”
‘Kuruthi’ Ending, Explained in Hindi
‘Kuruthi’ के अंतिम हिस्से में लाइक सुमति की गर्दन पर छुरी रख कर, विष्णु को मारने के लिए इब्राहिम पर दबाव बनाता दिखता है | लेकिन ऐन मौके पर प्रेमन के आने से कुछ देर के लिए यह दबाव इब्राहिम के ऊपर से हटता है | इब्राहिम हाथ आए मौके को चुके बिना अंततः लाइक को मार देता है और साथ ही विष्णु को भी मुक्त कर देता है |
नफरत का करोबार ख़त्म नहीं होता
आदमी मर जाता है लेकिन उसके भीतर की नफरत जिंदा रह जाती है | लईक तो मर जाता है लेकिन अपना चाकू रसूल को देकर जाता है | चाकू के रूप में नफ़रत और हिंसा आने वाली पीढ़ी तक पहुँच गई |
‘Kuruthi’ का अंतिम शॉट एक पुल पर लिया गया है | पुल को दो पाटों को जोड़ने वाला उपकरण माना जाता है | लेकिन विडंबना देखिए कि उसी पुल पर दिल में कभी न ख़त्म होने वाली नफ़रत की खाई बनाए दो समुदायों का भविष्य रसूल और विष्णु के रूप में एक दूसरे के सामने खड़े दिखते हैं |
नफरत और घृणा का नशा
मूसा के संवाद के माध्यम से नफरत की ताकत का अंदाज़ा लगता है | जब वह कहता है, “चाहे वह (नफरत की आग में सुलगता इंसान) भूखा हो, चाहे उसका घर लीक हो रहा हो, चाहे उसे जेल ही क्यों न जाना पड़े तब भी वह सिर्फ अपने दुश्मनों का अंत देखना चाहता है | यह नफरत की शक्ति है…वह चाहे अपने बच्चे को पढ़ा न पाए लेकिन यह ज़रूर सीखा देता है कि किससे नफरत करनी है |”
‘कुरुथी’ (Kuruthi) फ़िल्म आपको अमेज़न प्राइम वीडियो पर देखने को मिलेगी |
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