बलात्कार और स्त्री के प्रति होनेवाले हिंसा के प्रति भारतीय समाज और व्यस्था सही में कितने संवेदनशील हैं उसको इस एक उदाहरण से समझ सकते हैं। उम्मीद है सबको याद होगा कि सन 2012 में दिल्ली में निर्भय का भीषण कांड हुआ था। उस घटना की पड़ताल करके बीबीसी ने लिस्ले उसले के निर्देशन में एक डाक्यूमेंट्री बनाई थी और नाम रखा India’s Daughter मतलब भारत की बेटी। उस डाक्यूमेंट्री को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर 8 मार्च 2015 को रिलीज़ किया गया था, जिसे भारत में तत्काल ही प्रतिबंधित कर दिया, क्योंकि उस वक्त हम नया भारत (New India) के सपने में मदहोश थे। आज उस बात को पांच साल से ज़्यादा हो गया है और कौन सा नया भारत बना है उसकी झलक तो रोज़ दिख ही जा रही है फ़िलहाल उसकी झलक हाथरस (उत्तरप्रदेश) में देखने को मिल गई है कि गैंगरेप हुआ, रीढ़ की हड्डी तोड़ी गई, जीभ काट लिया और और जब कुछ दिन बाद उस लड़की की मौत हो गई तो पुलिस ने आननफानन ने रात को ही जैसे तैसे लाश जला दिया, परिजन रोते बिलखते रहे लेकिन किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ा।
India’s Daughter नामक उस डाक्यूमेंट्री में ऐसा क्या था कि उसे भारत में प्रतिबंधित किया गया? जवाब एकदम साफ़ है कि वो भारतीय समाज के पुरुषवादी मानसिकता को पर्दाफ़ाश करती है। अनपढ़ और आपराधिक मानसिकता वाले लोगों की बात तो छोड़ ही दीजिए उस डाक्यूमेंट्री में अच्छे खासे तथाकथित पढ़े लिखे और शरीफ लोग भी स्त्री विरोधी सोच की दलदल में किस हद तक डूबे हैं, उसका जीता जागता उदाहरण है, वो डाक्यूमेंट्री। समाज जैसा है उस पर उसे और उसके हुक्मरानों को कोई ग्लानि नहीं होती लेकिन अगर कोई यह सच बताए या दिखाए कि दरअसल भीतर से कैसे हैं, तो भावना (दुर्भावना) आहत होने लगती है, वहां बदनाम करने की साजिश की बू आने लगती है और फिर अपने सारे हथियार निकालकर उसके ख़िलाफ़ एकजुटता का ऐसा राक्षसी प्रदर्शन करते हैं कि मानवता शर्मसार हो जाए। इस डाक्यूमेंट्री में वकील साहब फरमाते हैं – “We have Best Culture, but in our culture there aren’t space for women” और बलात्कार का मुख्य आरोपी कहता है – “ताली एक हाथ से नहीं बजती।”
मतलब कि ताली बजाना और किसी का बलात्कार करना एक जैसी घटना है! ऐसे ही तथ्यों, महान विचारों और सोच से भरी है यह डाक्यूमेंट्री और हम सब यह भलीभांति जानते हैं कि हमारे समाज में ऐसी सोच रखनेवाले केवल पुरुष ही नहीं बल्कि स्त्रियों की कोई कमी नहीं है।
अगर हम सच में चाहते हैं कि रोग का इलाज हो तो सबसे पहले तो हमें रोग को सच्चे अर्थ में स्वीकार करना होगा, उसकी जड़ तक पहुंचना होगा और फिर उसका सही इलाज करना होगा। यह कानूनी से ज़्यादा सामाजिक और सामाजिक बनावट का मामला है। मानसिकता का मामला है और सामाज में स्त्री के स्थान, अधिकार और उसे कमज़ोर बनाए रखने की साजिश के साथ ही साथ बहुत सारा वैचारिकता का मामला है। जब जड़ में घुन लगा हो तो एकाध पत्ते नोचने से समस्या हल नहीं हो सकती। क्रूरतम से क्रूरतम सज़ा से कोई अपराध आजतक न रुका है और न रुकेगा। समस्या मूलतः सोच की है, मानसिकता की है। अगर वो न बदला तो ऐसी पशुवत कृत्य रोज़ होंगें और हो ही रहे हैं। हम यह सब जानबूझकर सोचना और समझना नहीं चाहते, क्योंकि यह समझ में आया तो पूरी सामाजिक व्यवस्था जिसमें जाति, धर्म और परिवार की बनावट शामिल है; भरभराकर ज़मींदोह हो जाएगी।
भारतीय समाज में बलात्कार एक आम अपराध बन चुका है। केवल सन 2018 की ही बात करें तो राष्ट्रीय अपराध शाखा (National Crime Records Bureau) की रिपोर्ट के अनुसार कुल 33,356 बलात्कार की घटनाओं को अंजाम दिया गया यानि कि रोज़ाना कुल 91 बलात्कार। यह तो उसकी बात हुई जो रिपोर्ट की गई बाक़ी बिना रिपोर्ट और रोज़ाना जो छेड़छाड़, कमेंटबाजी, घरेलू हिंसा आदि की घटना जोड़ दिया जाए तो दिमाग़ खिसक जाएगा और शायद सच में तब समझ आएगा कि दरअसल महिलाओं के प्रति हिंसा के मामले में हम कितने आगे हैं। बाक़ी अधिकतर मामलों में कुछ नहीं होता और आजकल तो बलात्कारियों के समर्थन में जुलूस निकालने लगे हैं और जेल से निकलते ही माला पहनाकर स्वागत करने की परम्परा का सूत्रपात भी हो ही चुका है।
वैसे India’s Daughter मतलब भारत की बेटी नामक यह डाक्यूमेंट्री भारत में अभी भी प्रतिबंधित है!
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