‘Burari Case’ पर एक रोचक डॉक्युमेंटरी ‘House of Secrets: The Burari Deaths’ नाम से नेटफ़िल्क्स पर रिलीज़ हुई है | तीन एपिसोड वाली यह डॉक्युमेंटरी इस बात की तह में जाने की कोशिश करती है कि एक ही परिवार के 11 लोगों की सामूहिक मौत कैसे और क्यों हुई ?
‘House of Secrets: The Burari Deaths’ Story in Hindi
तारीख – 1 जुलाई 2018 | समय – सुबह 7:30 बजे | हेड कांस्टेबल राजीव तोमर के पास बुराड़ी पुलिस स्टेशन, नई दिल्ली से फ़ोन आता है | उन्हें एक हैरतअंगेज वारदात की सूचना देते हुए तुरंत घटनास्थल पर पहुँचने का निर्देश दिया जाता है | राजीव तोमर वहाँ पहुँचते हैं | चौथी गली के उस मकान में सीढियाँ चढ़ कर जैसे ही वह पहली मंजिल पर जाते हैं, तो वहाँ उन्हें जो दृश्य दिखता है वह कल्पना से भी परे था | छत में बने लोहे के जाल में रंग-बिरंगे दुपट्टों, साड़ियों से दस लोग फांसी पर कुछ ऐसे लटके हुए थे जैसे बरगद के पेड़ की शाखाएं नीचे की ओर लटकी हों | सबकी आँखों पर काली पट्टी बंधी हुई थी, मुँह में टेप और कान में रुई डली हुई थी | कुछ लोगों के हाथ-पैर रस्सी और तार से बंधे हुए थे | एक वृद्ध महिला की लाश पलंग के बगल में नीचे पड़ी हुई थी और एक कुत्ता छत के ऊपर बंधा हुआ लगातार भौंक रहा था |
चंद घंटों में यह खबर देश भर में आग की तरह फ़ैल गई | यह हत्याकांड आज ‘Burari Case’ के रूप में जाना जाता है |
वह ग्यारह लोग कौन थे, जिनकी लाशें लटकी मिली थी ?
भाटिया परिवार – दिल्ली के बुराड़ी इलाके में रहने वाला यह मध्यम वर्गीय परिवार, मोहल्ले भर में भाटिया परिवार के नाम से जाना जाता था | परिवार की तीन पीढियां एक ही छत के नीचे रहती थी, जिनमें 80 साल से लेकर 15 साल तक के 11 सदस्य थे | सबसे उम्रदराज़ नारायणी देवी (80 वर्ष) थी | उनके तीन बेटों और तीन बेटियों में से दो बेटे भुनेश उर्फ़ भूपी (53), ललित और एक बेटी प्रतिभा (59) दिल्ली में साथ ही रहते थे | सविता (50) भूपी की पत्नी थी और इनके तीन बच्चे नीतू (25), मेनका (22) और ध्रुव (15) थे | ललित की पत्नी का नाम टीना (43) था और इनका एक बेटा शिवम् (15) था | प्रतिभा की एक बेटी प्रियंका (33) थी | घटना से 12 दिन पहले ही प्रियंका की सगाई हुई थी |
साथ रहने वाली यह तीन पीढ़ी एक साथ खत्म भी हो गई | कोई नहीं बचा जो बता सके कि उनके साथ क्या हुआ था | इस हादसे में घर का एक प्राणी ही जीवित बचा था, घर का कुत्ता ‘टॉमी’ |
हत्या, आत्महत्या या कुछ और ?
हादसे की खबर सुनकर नारायणी देवी का बड़ा बेटा दिनेश और दो बेटियों का परिवार दिल्ली पहुँचा | वह इस पूरी घटना को आत्महत्या मानने को तैयार नहीं थे, उनका दावा था कि परिवार वालों की हत्या की गई है | पुलिस को भी घटना स्थल से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला | यह बात भी आत्महत्या के विरुद्ध जा रही थी कि हाथ-पैर तार से बंधे थे | तो क्या किसी ने इन ग्यारह लोगों की हत्या करके, आत्महत्या दिखाने के लिए फाँसी पर टांग दिया था ?
हत्या की आशंका
पुलिस ने हत्या के नजरिए से घटनास्थल और सबूतों का निरीक्षण किया | लाशों पर मारपीट या चोट के कोई निशान नहीं थे | आत्मरक्षा की कोशिश भी नज़र नहीं आती | अगर सामूहिक हत्या के हिसाब से सोचें तो ग्यारह लोगों को मारने के लिए 20-25 लोगों की ज़रूरत होगी क्योंकि एक व्यक्ति को नियंत्रित करने के लिए कम से कम 2 लोगों की ज़रूरत होती है | घर में इतने लोगों की मौजूदगी के भी कोई संकेत या सबूत नहीं मिले | सारा सामान व्यवस्थित ढंग से रखा हुआ था | महिलाओं के शरीर पर गहने वगैरह भी थे | चोरी-लूटपाट का मामला नहीं लग रहा था |
गली में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में घर के मुख्य दरवाजे से कोई बाहरी व्यक्ति अन्दर जाता हुआ भी नहीं दिखा | पोस्टमार्टम रिपोर्ट में किसी जहरीले पदार्थ की मौजूदगी नहीं मिली | इन सारी बातों के आधार पर पुलिस ने हत्या की थ्योरी ख़ारिज कर दी |
हत्या नहीं, आत्महत्या नहीं तो फिर आखिर उस दिन हुआ क्या था ?
30 जून की रात में भाटिया परिवार के साथ क्या हुआ था, इसे जानने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सबूत पुलिस के हाथ लगे |
सीसीटीवी फुटेज
28 जून 2018 की एक फुटेज में टीना और शिवम प्लास्टिक की चार स्टूल खरीद कर लाते दिख रहे थे | दूसरी फुटेज में घटना वाले दिन अर्थात 30 जून को टीना रात 9:40 मिनट पर स्टूल ले कर आती और 10:29 मिनट पर शिवम प्लाईवुड शॉप से तार का छोटा गट्ठर ले जाता दिखा | स्टूल का इस्तेमाल फाँसी लगाने और तार का इस्तेमाल हाथ-पैर बांधने में किया गया था |
हवन कुंड
जहाँ लाशें लटकी हुई थी, उसके बगल में ही एक हवन कुंड पड़ा हुआ था | कुछ घंटे पहले इसमें हवन किया गया था |
11 डायरी
बुराड़ी मामले को समझने के लिए पुलिस के हाथ जो सबसे अहम् दस्तावेज़ लगा, वह थी घर के मंदिर के पास रखी एक डायरी | छानबीन करने पर ऐसी 10 डायरियां और मिली | इन ग्यारह डायरियों में बहुत कुछ लिखा था जो यह बता सकता था कि उस परिवार में क्या चल रहा था और घटना वाले दिन आखिर हुआ क्या था ?
आखिरी डायरी के आखिरी पन्ने में जैसा लिखा हुआ था, घर के सभी सदस्य ठीक उसी अवस्था में पाए गए थे | आखिरी पेज में लिखी बातें कुछ इस तरह थी –
सात दिन बड़ (Banyan) पूजा लगातार करना है | घर पर कोई आए तो उसके अगले दिन करना है | कुछ दिखना नहीं चाहिए | मद्धम रौशनी का प्रयोग करना है | आँख पर पट्टी अच्छी बंधी होनी चाहिए | मुँह की पट्टी को रुमाल से बाँध देना है | मन को ‘0’ स्थिति में रखना है | शून्य के अलावा कुछ नहीं | सावधान की मुद्रा में रहते हुए यह सोचना कि बड़ (Banyan) की जटाएं तुम्हें लपेट रहीं हैं | ईश्वर इस बात से खुश है कि ग्यारह बन्दे एक भवना लिए एक लाइन में खड़े हैं | बड़ तपस्या में घबराना नहीं है, चाहे धरती हिले या आकाश हिले | बच्चों को समझाओ कि मानसिक जप करते रहेंगे | 5-15 मिनट का जाप हो सकता है | जब तक जाप ख़त्म नहीं होता ललित सबकी सुरक्षा का काम करेगा |
एक्सीडेंटल डेथ
डायरी के इस हिस्से से पता चलता है कि भाटिया परिवार ‘बड़ पूजा’ कर रहा था | बरगद की तरह लटक कर तपस्या करना या परीक्षा देना उसी पूजा का एक हिस्सा था | वह यह मान कर चल रहे थे कि मरेंगे नहीं | आत्महत्या का उनका कोई इरादा नहीं था | वह तो बस एक अनुष्ठान कर रहे थे, जिसमें यह दुर्घटना घट गई | इसीलिए इसे आत्महत्या कहना सही नहीं है | वास्तव में ‘Burari Case’ एक्सीडेंटल डेथ का मामला था |
किसके कहने पर बड़ पूजा हो रही थी ?
क्राइम ब्रांच ने सारी डायरियों को विस्तार से पढ़ डाला | पढ़ने के बाद एक बात स्पष्ट थी कि इन डायरियों में लिखी बातों के अनुसार ही परिवार में सभी कामकाज किया जाता था | यहाँ तक कि घर के किस सदस्य को क्या काम करना, कैसा व्यवहार करना है यह तक डायरी में लिखा होता था | कोई भी उसमें लिखी बातों की उपेक्षा नहीं कर सकता था | किसी बाबा, साधु या तांत्रिक के कहने पर नहीं बल्कि डायरी में लिखे होने के कारण ही सारा परिवार बड़ पूजा कर रहा था |
डायरी कौन लिखता था ?
भाटिया परिवार में डायरी लिखने का यह सिलसिला वर्ष 2007 से शुरू हुआ था | ग्यारह साल में ग्यारह डायरियां लिखी गई | फोरेंसिक जांच के बाद हैण्ड राइटिंग विशेषज्ञ ने बताया कि ललित बोलता था और प्रियंका और नीतू नोट्स लिखा करती थी |
ललित ऐसी बातें क्यूँ लिखाता था ?
यह जानने के लिए भाटिया परिवार के इतिहास में थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा | 11 साल पहले नारायणी देवी के पति भोपाल सिंह की मौत हुई थी | परिवार पर पिता का गहरा प्रभाव था | उनके बिना सबको लगने लगा कि अब हमारा मार्गदर्शन कौन करेगा, परिवार को कौन संभालेगा? पिता की मृत्यु के कुछ समय बाद ललित ने घर वालों को बताया कि पिता उसके सपने में आकर उससे बातें करते हैं | उन्हीं बातों को उसने डायरी में लिखना शुरू कर दिया | धीरे-धीरे घर वालों का यकीन होने लगा कि ललित में पिता जी की आत्मा आती है और उनकी कहीं सब बातें परिवार के हित में होती है | ललित के लिखे को पूरा परिवार पिता जी का आदेश मानता था |
ललित के साथ वास्तव में क्या हो रहा था ?
ललित जो कुछ भी कर रहा था उसके पीछे कोई न कोई तो वजह रही होगी | उसके जीवन में दो बड़े हादसे हुए थे, जिसने उसे गहरे प्रभावित किया | पहली घटना सन 1998 की है, जब वह एक मोटरसाईकिल दुर्घटना का शिकार हो गया था | बताया जाता है उस दुर्घटना में उसके सिर में काफी चोटें आई थी | दूसरी घटना 26 मार्च 2004 को हुई थी | वह जिस प्लाईवुड शॉप में काम करता था, वहाँ कुछ लोगों ने उस पर जानलेवा हमला किया था | उसे दुकान के अन्दर बंद कर आग लगा दी थी | मरते-मरते बचा था वह | लेकिन घटना के बाद साढ़े तीन साल तक वह बोल नहीं पाया |
विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक मस्तिष्क में पक्षघात या खून रिसाव न हो तब तक आवाज़ का प्रभावित होना संभव नहीं है | वास्तव में उसकी आवाज़ गई थी या नहीं यह तो कोई नहीं जानता | हो सकता है कि मनोवैज्ञानिक रूप से यह आघात इतना गहरा रहा हो कि वह बात कर पाने की स्थिति में ही न रहा हो | डॉक्टर ने ललित को मनोचिकितासक को दिखाने का सुझाव दिया था |
भाटिया परिवार सामूहिक साइकोसिस से पीड़ित था ?
जीवन में चल रही चीज़ों को तार्किक ढंग से देखने-समझने में मस्तिष्क की असमर्थता को ‘सायकोसिस’ कहते हैं |
मनोविज्ञान कहता है कि जब कोई व्यक्ति किसी बड़े आघात से गुजरता है और उससे उबर नहीं पता तो उसे सायकोसिस की समस्या हो सकती है | सायकोसिस होने पर आवाजें सुनाई देना, आम लक्षण है | ललित को भी अपने पिता जी की आवाजें सायकोसिस पीड़ित होने के कारण सुनाई देती होंगी |
ग्यारह मृत लोगों की मानसिक अवस्था को समझने के लिए क्राइम ब्रांच की तरफ से अनुभवी मनोचिकित्सकों द्वारा साइकोलॉजिकल ऑटोप्सी भी कराई गई | जिसके नतीजे ललित को साइकोसिस होने की संभावना जताते हैं | साथ ही यह आशंका भी ज़ाहिर करते हैं एक लम्बे अन्तराल तक ललित की हर बात को मानते रहने के कारण पूरा भाटिया परिवार सामूहिक साइकोसिस का शिकार हो गया हो |
‘House of Secrets: The Burari Deaths’ Ending Explained
लीना यादव और अनुभव चोपड़ा द्वारा निर्मित ‘House of Secrets: The Burari Deaths’ में भाटिया परिवार के करीबियों, पड़ोसियों, मामले की तहकीकात करने वाले पुलिस अधिकारियों, कवरेज करने वाले पत्रकारों आदि के घटना से जुड़े अनुभवों और बातें हैं | ‘Burari Case’ के विभिन्न आयाम सामने लाने के लिए मनोवैज्ञानिकों, मनोचिकित्सकों, समाजविज्ञानियों के विश्लेषण शामिल किए गए हैं | जिससे इस घटना को समझने में सहायता मिलती है | वास्तविक फ़ोटो, दस्तावेज़ और वीडियो की फुटेज आदि डॉक्युमेंटरी को विश्वसनीय बनाते हैं | पार्श्व संगीत ए.आर.रहमान ने दिया है, जो घटना की गंभीरता और भयावहता को सामने लाने में मदद करता है |
मीडिया की भूमिका
‘Burari Case’ केस को समझने के लिए मनोविज्ञान और सामाजिक विज्ञान के नजरिए से देखा जाना बहुत ज़रूरी था लेकिन मीडिया ने इसे महज एक सनसनीखेज़ घटना बना कर पेश किया | मज़ेदार क्राइम ड्रामा बनाने के लिए तांत्रिक, भूत-प्रेत वाला मसाला खूब डाला | ‘House of Secrets: The Burari Deaths‘ में मीडिया के अविवेकी व्यवहार और टीआरपी की होड़ में किसी भी हद तक गिर जाने को बखूबी दिखाया गया है |
मानसिक स्वास्थ्य
बुराड़ी में जो हुआ वह हमारे समाज के लिए चेतावनी है कि हमारी शिक्षा पद्धति समाज को तार्किक व वैज्ञानिक चिंतन से लैस नहीं कर रही है | भाटिया परिवार पढ़ा-लिखा था | नौजवान पीढ़ी ऊपरी तौर पर आधुनिक और नौकरीपेशा थी | लेकिन उनमें से शायद कोई भी घर में चल रही चीज़ों, अतार्किक बातों का सामना करने के लिए मानसिक और बौद्धिक रूप से तैयार नहीं था | अगर ललित के बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समय रहते सही कदम उठाया जाता तो इतना बड़ा हादसा न होता | एक समाज के तौर पर हम आज भी मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बात करने के लिए तैयार नहीं है |
लीना यादव और अनुभव चोपड़ा द्वारा निर्मित ‘House of Secrets: The Burari Deaths’ नेटफ्लिक्स पर उपलब्ध है |
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