इरोस इंटरनेशनल के बैनर तले बनी फ़िल्म ‘Haathi Mere Saathi’ एक साथ तीन भाषाओँ (तमिल,तेलगु और हिन्दी) में फिल्माई गई थी | फ़िल्म का तमिल, तेलगु संस्करण मार्च 2021 में रिलीज़ हुआ था, जबकि हिन्दी संस्करण Covid महामारी की दूसरी लहर के कारण छः महीने बाद सितम्बर 2021 में रिलीज़ किया गया |
लेखक व निर्देशक प्रभु सुलैमान की फ़िल्म ‘Haathi Mere Saathi’ इंसान और वन्य जीवन के बीच चलने वाले संघर्ष को दिखाती है | रोचक तथ्य यह है कि इस विषय पर जून महीने में ‘न्यूटन’ के निर्देशक अमित वी. मसूरकर की फ़िल्म ‘शेरनी (Sherni)’ भी आ चुकी है | ‘हाथी मेरे साथी’ देखते हुए ‘शेरनी’ लगातार याद आती है | खैर, फ़िलहाल तो हम ‘हाथी मेरे साथी’ की बात ज़ारी रखते हैं |
‘फ़ॉरेस्ट मैन ऑफ़ इन्डिया’ की प्रतिबद्धता और पर्यावरण मंत्री की स्वार्थ भावना
यह फ़िल्म वनदेव (Rana Duggabati) के जंगल बचाने के प्रयासों की कहानी है | सुमित्रानंदन नाम का व्यक्ति जिसे सब प्यार और सम्मान से वनदेव कहते हैं, पिछले 50 सालों से छत्तीसगढ़ के एक जंगल की देखभाल कर रहा | सैकड़ों किलोमीटर के दायरे में फैला जंगल, दस्तावेजों में वनदेव के दादा की संपत्ति के तौर पर दर्ज है | हालाँकि दादा जी ने सन 1956 में यह पूरा इलाका सरकार को वन्य संरक्षण के उद्देश्य से दिया था | साथ ही यह तस्दीक भी कर दी थी, अगर इस भूसंपत्ति का सरकार द्वारा दुरुपयोग हुआ तो वह वापस उनके वारिसों के स्वामित्व में चली जाएगी |
भाई-बहनों के विदेश चले जाने के बावजूद वनदेव जंगल और हाथियों से अपने लगाव के कारण यहीं रह गए और अपना पूरा जीवन इनकी भलाई के लिए समर्पित कर दिया | अकेले एक लाख पेड़ लगाने के कारण तत्कालीन राष्ट्रपति अबुल कलम आज़ाद द्वारा वनदेव को सम्मानित भी किया जा चुका है | उसके बाद से यह ‘फ़ॉरेस्ट मैन ऑफ़ इंडिया’ के रूप में प्रसिद्ध हो गए |
दूसरी तरफ पर्यावरण मंत्री जगन्नाथ सेवक (अनंत महादेवन) हैं | जिन्होंने मंत्री बनते समय प्राकृतिक संपदा और जंगलों की असीम निष्ठा के साथ हिफाज़त करने की शपथ ज़रूर खाई थी, लेकिन व्यवहार में जंगलों को तबाह करने और हाथीदांत के लालच में हाथियों का सफाया करने का काम कराते हैं | जंगल के बीचोंबीच 50 हेक्टेयर ज़मीन पर आलीशान DRL टाउनशिप बनाना, जगन्नाथ सेवक का सपना है | मंत्री पद सँभालते ही वह अपना सपना पूरा करने में जुट जाते हैं |
वनदेव के रहते हुए, किसी भी हालत में जंगल काट कर टाउनशिप बनाना संभव नहीं था | इसलिए सत्ता की ताकत और प्रशासनिक अधिकारियों का इस्तेमाल करके मंत्री साहब वनदेव को सरकारी अधिकारी के साथ मार-पीट के झूठे मामले में फँसा देते हैं | नतीजन उसे तीन महीने की जेल हो जाती है |
जंगल बचाने की लड़ाई में इश्क का तड़का
टाउनशिप निर्माण के काम में हाथियों का झुण्ड कोई बाधा न पहुँचा सके, इसके लिए 7 किमी लम्बी दीवार बनाने का निर्णय लिया जाता है | जंगली हाथियों को भागने के लिए कुमकी हाथी की बुलाहट होती है | महावत शंकर (पुलकित सम्राट) और उसके मामा अपने हाथी छोटू के साथ छत्तीसगढ़ पहुँचते हैं | वहाँ पहुँचते ही शंकर का सामना आदिवासियों के हक़ के लिए लड़ने वाली नक्सली अरवी (ज़ोया हुसैन) से होती है | अरवी, नक्सल टुकड़ी के अगुवाई करने वाले आरव की बहन है | शंकर, अरवी पर फ़िदा हो जाता है |
फ़िल्म में एक तरफ शंकर के इश्क की कहानी चलती रहती है तो दूसरी तरफ वनदेव का जंगल और जानवरों, खासतौर से हाथियों, के जीवन को संकट में डालने वाले DRL टाउनशिप प्रोजेक्ट को बंद कराने की लड़ाई |
प्रकृति बनाम स्वार्थ की लड़ाई
फ़िल्म के एक दृश्य में पर्यावरण मंत्री वनदेव से कहते हैं, “मुझे इस देश को डेवलप नहीं करने देगे क्या तुम?” सचमुच जंगल, जानवर और प्रकृति को बचाने की लड़ाई क्या हमेशा प्रगति को रोकती है ? विकास की राह का रोड़ा बनती है ? नहीं | प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करके भी प्रगति की जा सकती है | लेकिन ऐसा हो नहीं पाता क्योंकि विकास की आड़ में स्वार्थ साधे जाते हैं | दरअसल यह संघर्ष प्रकृति बनाम प्रगति नहीं, बल्कि प्रकृति बनाम स्वार्थ है |
आधा दर्ज़न किरदार, कहानी को आगे बढ़ाने में कोई ज़रूरी भूमिका नहीं निभाते
फिल्म में कुछ अच्छे संवाद और गीत हैं, लेकिन इतने भर से कोई फ़िल्म प्रभावी नहीं बनती | फ़िल्म के सारे चरित्र आधे-अधूरे ढ़ंग से लिखे गए लगते हैं | शंकर, उसका मामा, आरव-अरवी, पत्रकार अरुन्धंती जैसे पात्र अगर फ़िल्म में न होते तो भी मुख्य कहानी की सेहत पर कोई फर्क न पड़ता |
अभिनय के मामले में भी सारे अभिनेताओं का काम औसत ही रहा | ‘बाहुबली’ की आपार सफ़लता ने फ़िल्म के मुख्य खलनायक भल्लालदेव का किरदार निभाने वाले अभिनेता राणा दुग्गाबाती को खूब लोकप्रियता दी | ज्यादातर लोग ‘Haathi Mere Saathi’ को राणा दुग्गाबाती की वजह से देखने का मन बनाते हैं, लेकिन इस फ़िल्म में उन्हें निराशा ही हाथ लगती है | पूरी फ़िल्म में राणा चिल्ला-चिल्ला कर संवाद क्यों बोल रहे थे, यह बात समझ के बाहर है |
खलनायक, इंस्पेक्टर अर्जुन पाण्डेय जब भी क्रूर होता है तो पुरानी हिंदी फ़िल्मों का कोई प्रसिद्ध गाना गुनगुने लगता है | उसे ऐसा करते देख दहशत कम, चिढ़ ज्यादा मचती है | ‘मुक्केबाज़’ के बाद इस फ़िल्म में ज़ोया को देखकर उनके लिए अच्छा नहीं लगता | ‘मुक्केबाज़’ में बिना संवाद के भी वह कमाल करती हैं, जबकि यहाँ बोलने के बावजूद प्रभाव नहीं छोड़ पाती | अनंत महादेवन आजकल वेब सीरीज़ में ज्यादा अच्छी भूमिकाएँ करते नज़र आ रहे हैं | पुलकित सम्राट औसत रहे |
‘Haathi Mere Saathi’ पर ‘Sherni’ भारी पड़ती है
जंगल बचेंगे तभी जीवन बचेगा | अगर जंगल कटना, वन्यजीवों के अस्तित्व पर मंडराने वाला संकट आपके लिए एक ज़रूरी मुद्दा है और आप इसकी गंभीर व संवेदनशील सिनेमाई अभिव्यक्ति देखना चाहते हैं तो ‘हाथी मेरे साथी’ देखने से बेहतर होगा ‘शेरनी’ देख लीजिए | ‘शेरनी’ पर्यावरण से लेकर पितृसत्तात्मक जैसे अनेक विषयों को बेहद संवेदनशीलता के साथ कहानी में पिरोकर एक फ़िल्म के रूप में सामने लाती है | ‘हाथी मेरे साथी’ इसी जगह पर फेल हो जाती है | विषय जितना ज़रूरी और गंभीर है, फ़िल्म उसे उतनी संवेदनशीलता के साथ दिखा नहीं पाती |
‘Haathi Mere Saathi’ फ़िल्म ओटीटी प्लेटफॉर्म Eros Now पर उपलब्ध है |
फिल्मची के और आर्टिकल्स यहाँ पढ़ें।