Thursday, March 28, 2024

‘Guilty Minds’ Hindi Review: सबूत वाली सार्थक सिरीज़।

सिरीज़ “Guilty Minds” के सूत्रधार वकील हैं। अब ज़ाहिर सी बात है कि वकील होगें तो केस भी होगा, जज भी होंगे, गवाह, पुलिस और मीडिया इत्यादि भी होंगें ही होंगें; तो सब हैं लेकिन अच्छी बात यह है यहां तथ्य और सबूत के आधार पर सिरीज़ आगे बढ़ती है डायलॉगबाज़ी और फर्जी संवेदनाओं के आधार पर नहीं; और कह सकते हैं कि यह हिंदी मनोरंजन उद्योग के लिए अच्छा बदलाव है वर्ना तो ओटीटी को भी कूड़ेदान बनाने में कोई कसर छोड़ी नहीं है सिनेमावालों ने। अब बढ़िया लेखन की थोड़ी तारीफ़ न की जाए तो शायद कंजूसी ही कहलाएगी। तो कहानी और पटकथा के लिए शेफाली भूषण, जयंत दिगम्बर सोमलकर, मानव भूषण और दीपक गुजराल की टीम को बधाई, वैसे शेफाली “Guilty Minds” की निर्देशक और श्रजक भी है और उनके साथ निर्देशन विभाग में जयंत हैं। सागर देसाई का टाइटल ट्रैक अच्छा है और इस ट्रैक के साथ इस्तेमाल किया गया ग्राफिक्स भी अर्थवान है। “Guilty Minds” के बीच-बीच में लोकसंगीतों का प्रयोग विषय को स्थानीयता प्रदान करने में सहायक होता है। चंद अपवादों को छोड़कर लेखन सार्थक है और इस सार्थक लेखन को लगभग सारे अभिनेता ठीक ही अभिनीत करते हैं। वैसे छोटी छोटी भूमिका में आने वाले अभिनेता प्रभाव छोड़ते में ज्यादा सफ़ल होते हैं। इसके लिए निश्चित ही कास्टिंग डायरेक्टर गौतम कृष्चन्दनानी बधाई के पात्र हैं। वैसे भी मुख्य भूमिकाओं में चयन होने के अपने अलग ही फंडे हैं, फिर भी हर भाग में थोड़ा- थोड़ा नज़र आनेवाले किट्टू के रूप में दीपक कालरा स्मृतियों में बस जाते हैं और कला वही अच्छी जो स्मृतियों में बस जाए वर्ना तो आई गई बात होकर रह जाती है।

“Guilty Minds” में लगभग पचास मिनट के कुल दस भाग हैं और हर भाग में एक नया केस है, साथ ही वकीलों की अपनी दुनिया और भल्ला का केस तो हर एपिसोड में स्वादानुसार है ही।

1. मेरी तुम्हारी : सिरीज़ की शुरुआत इस कहानी से होती है, जो सिनेमा उद्योग में स्त्री उत्पीड़न की कथा कहती है। इस विषय पर पहले भी फिल्में और सिरीज़ आई हैं लेकिन यह इसलिए भी अलग है क्योंकि इसमें कोई भाषणबाज़ी नहीं है और ही किसी प्रकार की किसी के लिए पक्षधरता। यहां कुछ भी श्वेत और श्याम नहीं बल्कि सबकुछ वास्तविक जीवन की तरह धूसड़ है और धूसड़ में से सत्य और सच्चाई का पक्ष तलाश कर लेती है तभी “Guilty Minds” इस कटाक्ष के साथ ख़त्म होती है कि ‘मर्द सोचते हैं कि सेक्स करने के लिए आवश्यक है लड़की और कॉन्डम लेकिन कंसर्न वो भूल जाते हैं। कंसर्न नहीं लेना है तो फिर पेड़ पर पटक जाओ किसी जानवर की तरह और केले खाओ।’ अच्छी बात यह है कि इसमें कैमरे की नजर से भी बात कहने की कोशिश की जाती है जैसे एक दृश्य में जब इस बात को लेकर #metoo आंदोलन शुरू हो जाता है और लोग पक्ष-विपक्ष में बंट जाते हैं तो कैमरा कुछ पल के लिए एक नदी में केंद्रित हो जाती है, जहां बहुत सारी कश्तियां डगमगा रहीं हैं।

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2. फिनिशर : यह आधुनिक समय में खेल और इंसान की व्यथा कहती है। इंसान की उत्पत्ति के साथ ही खेल की उत्पत्ति का भी इतिहास जुड़ा है। खेल के साथ सबसे अच्छी बात यह है कि इंसान जब सच में खेलता है तब उसका शरीर और मन-मस्तिष्क सब एकाग्र होता है और वो उस खेल से ऊर्जा ग्रहण करता है। लेकिन बदले समय में अब खेल विशुद्ध खेल न होकर एक व्यवसाय हो चुका है और इंटरनेट पर व्याप्त कई खेल तो ऐसे हैं जो इंसानी शरीर और दिमाग़ को विकृत करने का काम कर रहे हैं। ऐसे ही एक खेल के चक्कर में पड़कर एक किशोर बहुत बड़ा अपराध करता है और कोर्ट रूम में आगे जो सत्य उजागर होता है वो भयवाह है।

3. पानी : पानी प्रकृति और इंसान की प्राथमिक आवश्यकताओं में से एक है और जरूरी अधिकारों में भी लेकिन सत्य यह भी है कि राजनीति और बाज़ार ने इसे भी अपने कब्ज़े में ले लिया है। शीतल पेय (वास्तविकता में बहुत से कारण और भी हैं।) उद्योग की वजह से महाराष्ट्र का एक इलाका सूखाग्रस्त हो जाता है और कोर्ट के बहस और पड़ताल में जो सच्चाई सामने आती है, वो भी भयावह है।

4. स्पर्मा : यह भाग निजी संस्थानों में मातृत्व अवकाश जैसे विषय को संबोधित करती है लेकिन यह एक बहुत साधारण और उलझा हुआ भाग बनकर उभर पाता है। इसका लेखन भी कोई ख़ास नहीं है। यह हर दृष्टि से “Guilty Minds” का सबसे कमज़ोर भाग है सिवाए लता झा के रूप में निया कुमार का अभिनय छोड़कर।

5. अलाप :  यह भाग एक अल्गोरिद्म के माध्यम से संगीत की बनाई, चोरी और कॉपीराइट जैसे पेचीदा मसले से संबंधित है हालांकि यह भी सत्य है कि भारत जैसे देश में कला और बौध्दिक चोरी सीनाजोरी के साथ करने की परम्परा है और यह इंसान द्वारा बड़ी की कुशलता और सरलता से अंजाम दिया जाता है और इसके लिए उसे किसी मशीन की आवश्यकता ही नहीं है। इस खेल में एक से एक तथाकथित बड़े नाम और बड़ी कंपनियां शामिल हैं बल्कि कुछ बड़ी कंपनियों की नीव ही नकली संगीत रही है।

6. इहनो : यह भाग बिना ड्राइवर की कार अर्थात मशीन द्वारा इंसान को बेरोज़गार किए जाने की बाज़ारु तिकड़म की कथा कहती है। अब यह कहने का साहस कौन करे कि वो समय बहुत नज़दीक है जब एक तरफ़ बेरोज़गारों की फ़ौज बढ़ रही होगी वहीं दूसरी तरफ़ मशीन उसके ऊपर राज कर रहा क्या बल्कि करने की शुरुआत कर चुका है और विडम्बना देखिए कि यह बात मैं एक मशीन से लिख रहा हूं और आप दूसरी मशीन पर पढ़ रहे हैं।

7. डीप वाटर : यह शायद इस पूरी “Guilty Minds” का सबसे विचित्र एपिसोड है और टीवी के सबसे वाहियात और लंबे सीरियल सीआईडी नुमा भी। रामचंद्र यादव, विजय शुक्ल, श्यामलाल बेगाना, भय्यू मुंशी, शैय्याद मोहम्मद यह नाम पढ़के पता नहीं कौन से शास्त्र से पता चल जाता है कि अरे नाम से तो यह बिहारी लग रहा है और कमाल की बात यह कि जो चरित्र यह महान रहस्य उद्घाटित करता है उसे जीके के नाम से जाना जाता है। इस भाग में डकैत को डेकोएट्स बोला जाता है बाक़ी पता नहीं बिहार का मतलब कब तक लोग बीड़ी, खैनी, गुटखा, झोपड़ी और भैंस – गाय का चारा और गोबर ही दिखाते रहेंगे। इस प्रचलित बकवास से बिहार को कब मुक्ति देगा भारत का सिनेमा उद्योग?

8. प्लान योर बेबी : इस भाग के केंद्र में कृत्रिण गर्वधारण व्यवसाय और भारतीय परिवार की सोच लड़का/लड़की हैं। इसका कोई नतीज़ा तो नहीं निकलता लेकिन बहुत सारे प्रश्नों से सबका अवश्य होता है। इसको लेकर कानून है तो कानून को तोड़ने-मरोड़कर अपने फ़ायदे के लिए प्रयोग करनेवाले ज्ञानी भी एक से एक हैं। 

9. अलोला : इसके केंद्र में एक डेटिंग साइट है जो अपने सदस्यों से शुल्क वसूलता है लेकिन उसके बदले में सेवा देने के नाम पर दरअसल साइबर फ्रॉड करता है। अब दिक्कत तब आती है जब इसको लेकर कोई साफ-साफ और तगड़ा कानून नहीं है इसलिए फीस वापसी के अलावा कोई अन्य सजा दी ही नहीं जा सकती।

10. गिल्टी : यह इस भाग का आख़िरी कड़ी है और यहां आकर भल्ला के केस से पर्दा उठाया जाता है और इस प्रकार “Guilty Minds” के पहले भाग की इतिश्री की घोषणा संपन्न होती है। साथ ही कुछ और कथारसिस संपन्न किए जाते हैं जैसा कि पूर्वानुमानित था।

“Guilty Minds” में कुछ खटकनेवाली बातें भी हैं, जैसे बिला वजह के लेस्बियन रिश्ता। हालांकि उससे कोई रस भंग नहीं होता लेकिन वह सिरीज़ में कुछ अलग से भी नहीं जोड़ता बल्कि वो सेक्स को टैबू की तरह माननेवाले समाज में दर्शकों की संख्या को और सीमित ही करेगा। कुछ भाग में अभिनेताओं के प्रादेशिक भाषा/बोली में संवाद बोलने की हास्यास्पद चेष्टा अर्थात डायलेक्ट्स। यह एक बेहद ही सूक्ष्म सी चीज़ है और अच्छी बात यह है कि अब इस ओर भी ध्यान दिया जा रहा है, उसके लिए प्रशिक्षक तक रखे जा रहे हैं किंतु अभिनेताओं को इसे सीखने के प्रति थोड़ा और संवेदनशील होने की आवश्यकता है। सिरीज़ में टीवी चैनल आता है लेकिन टीवी पर क्रिकेट और ईमानदार ख़बरों के अलावा शायद ही कुछ दिखाई पड़ता है जबकि सब जान रहें हैं कि आज टीवी अपने आप में एक भयंकर बिमारी की तरह व्याप्त है जो केवल सनसनी पैदा करना जानता है और वो भी फालतू के विषयों पर। पूरी सिरीज़ में कैफे के हर भाग में एक ही सफ़ेद रंग का बड़ा सा कप का दिखना कला विभाग के ज़ाहिली का संकेत है। दो तीन एपिसोड में स्टैंडअप कॉमेडी भरत वाक्य की तरह आता है पर वो अन्य भाग अकारण ही पता नहीं क्यों गायब हो जाता है।

बहरहाल, “Guilty Minds” हिंदी मनोरंजन उद्योग में गालियों और वाहियात सेक्स से भरपूर तपते रेगिस्तान में शबनम की बूंद की तरह है।


सिरीज़ “Guilty Minds” Prime Video पर देखी जा सकती है|

पुंज प्रकाश
पुंज प्रकाश
Punj Prakash is active in the field of Theater since 1994, as Actor, Director, Writer, and Acting Trainer. He is the founder member of Patna based theatre group Dastak. He did a specialization in the subject of Acting from NSD, NewDelhi, and worked in the Repertory of NSD as an Actor from 2007 to 2012.

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