‘मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है’ यह हम बचपन से ही सुनते आ रहे हैं| इस बात में सच्चाई है| समाज, परिवार और अनेक तरह के संबंधों का ताना-बाना ही तो है| हमारा जीवन माँ-बाप, पति-पत्नी, भाई-बहन, दोस्त, प्रेमी-प्रेमिका जैसे कई तरह के रिश्तों को जीता हुआ आकार लेता है| कई बार ऊपरी सतह पर सरल-सहज, खुशनुमा से दिखने वाले यह सम्बन्ध गहराई में उतरने पर जटिल और उलझे हुए नज़र आते हैं| शकुन बत्रा मानवीय सम्बन्धों पर संवेदनशील फ़िल्म बनाने के लिए जाने जाते हैं| ‘Kapoor & Sons’ में उन्होंने खुशहाल लगते हुए एक उच्च मध्यवर्गीय परिवार के अंदरूनी जीवन और सदस्यों के आपसी संबंधों की गहरी पड़ताल की थी| अपनी नई फ़िल्म ‘Gehraiyaan’ में उन्होंने एक बार फिर प्रेम और स्त्री-पुरुष के जटिल संबंधों को विषय बनाया है| आइए जानते हैं कि इस बार निर्देशक मानवीय संबंधों को जाँचने-परखने में कितनी गहराई तक उतर पाते हैं?
‘Gehraiyaan’ Story In Hindi
फ़िल्म ‘Gehraiyaan’ की कहानी मुख्य रूप से अलीशा (दीपिका पदुकोण) के माध्यम से इंसानी संबंधों की गहराइयों में गोते लगाती है| डूबने-उभरने के क्रम में जीवन के कुछ गहरे सूत्रों की छानबीन करने की कोशिश करती है|
मुंबई में रहने वाली अलीशा योग प्रशिक्षक है| वह छह साल से करण (धैर्य करवा) के साथ प्रेम संबंध और सहजीवन में है| हालांकि अब तक दोनों के बीच प्रेम का रंग काफी फीका पड़ चुका है| करण एड एजेंसी की नौकरी छोड़ कर उपन्यास लेखन में हाथ आज़मा रहा है| स्वाभाविक है कि घर के खर्चे और रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी अलीशा के जिम्मे है| जिसके लिए वह एक्स्ट्रा क्लासेज़ ले रही है|
अलीशा अपने पेशे और रिश्ते दोनों में ही खुद को एक जगह फँसा हुआ पाती है| ऐसे पड़ाव पर अलीशा की मुलाकात ज़ेन (सिद्धांत चतुर्वेदी) से हुई| ज़ेन अलीशा की चचेरी बहन टिया (अनन्या पाण्डेय) का मंगेतर है| टिया और अलीशा दोनों का बचपन एक जैसा था लेकिन अब उनकी जिंदगियां बिल्कुल अलग रास्तों पर चल पड़ी हैं| अलीशा के उलट टिया को विरासत में रईसी और आलीशान जीवन मिला हुआ है|
अलीशा-करण, टिया और ज़ेन के साथ उसके यॉट पर छुट्टियाँ मनाने अलीबाग जाते हैं| वहाँ अलीशा और ज़ेन एक दूसरे के क़रीब आ जाते हैं|
अलीशा को ज़ेन के रूप में अपनी घुटन भरी परिस्थितयों से बाहर आने का रास्ता और एक विल्कप नज़र आता है| ज़ेन भी अलीशा को पसंद करता है| दोनों के भीतर उठी प्रेम की भावना वास्तविक स्थिति से टकरा कर एक अजीब सा उलझाव पैदा करती है| क्योंकि टिया जेन के साथ टस्कनी में शादी करने के सपने संजोये बैठी है| करण और अलीशा की तो सगाई भी हो चुकी है| इस उलझन को सुलझाने के लिए अलीशा ज़ेन से दूर जाने की कोशिश करती है| उधर अलीशा और करण के संबंधों में लगातार कड़वाहट बढ़ती ही जा रही थी| अंततः अलीशा करण के साथ अपनी सगाई तोड़ देती है| ज़ेन को जब अलीशा की सगाई टूटने की बात पता चली तो वह अपने संबंधों को पुनर्जीवित करने की कोशिश में लग जाता है| ज़ेन अलीशा से वादा करता है कि वह छह महीने में टिया के साथ अपने सारे रिश्ते खत्म कर उसके पास आ जायेगा| पिछली ज़िन्दगी और रिश्तों से मुक्त हो कर अलीशा और ज़ेन अपने प्यार की दुनिया बसने का इंतजार कर रहे हैं| लेकिन क्या यह संभव हो पायेगा? प्यार की तलाश में कई जिन्दगियों को बर्बाद करते, धोखा देते हुए अंततः प्यार बचा भी रह पायेगा या नहीं? शकुन बत्रा की फिल्म ‘गहराइयाँ’ इन्हीं प्रश्नों से टकराती है|
अलीशा के मन पर अपने त्रासद बचपन के गहरे जख्म मौजूद हैं| अलीशा की तरह ही उसकी माँ सोनाली भी अपनी ज़िन्दगी में एक ऐसे मुकाम में फंस गई थी जहाँ से निकलने की उसे कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी| अंततः सोनाली ने अपनी ज़िन्दगी खत्म करने का चुनाव किया| इतिहास खुद को दोहराते हुए अलीशा को भी ठीक उसी जगह पर ला खड़ा करता है, जहाँ कभी उसकी माँ थी|
अलीशा को पिता (नसीरुद्दीन शाह) के रूप में ज़िन्दगी में मज़बूत आस्था का संबल मिला| लेखक-निर्देशक फ़िल्म के माध्यम से जो बात कहना चाहते थे, अलीशा के पिता उस विचार का मूर्त रूप है| वह अलीशा से कहते हैं, “उसकी (सोनाली) ज़िन्दगी उसकी एक गलती से बड़ी थी और तुम्हारी भी है|”, “… भागने की ज़रूरत नहीं है जो है उसे स्वीकार करो और हमेशा आगे बढ़ने का चुनाव करो|” अलीशा अपनी गलती पर उलझने की बजाय उससे आगे बढ़ने का चुनाव करती है|
Review in Hindi
ऐसा लगता है जैसे निर्देशक-लेखक ने अलीशा का किरदार गढ़ने में अपना सारा ध्यान लगा दिया| इसी वजह से अन्य तीन चरित्र कमज़ोर पड़ जाते हैं| करण और टिया के किरदार सतही रह गए| अलीशा की टूटन, घुटन, असुरक्षा, अस्थिर मनोभाव तो समझ में आता है लेकिन ज़ेन के साथ उसके प्रेम में जीवंतता की कमी लगती है| ज़ेन के व्यक्तित्व में आने वाले बदलाव यांत्रिक जान पड़ते हैं| हालाँकि कहानी में उसके लिए तर्क मौजूद हैं| फिर भी इतनी तेज़ गति से किसी चरित्र का बदलते जाना स्वाभाविक नहीं लगता|
अभिनय के मामले में दीपिका पादुकोण, नसीरुद्दीन शाह और रजत कपूर ने अपने काम से फ़िल्म का स्तर ऊपर उठाया है| नसीर और दीपिका के बीच फ़िल्म के आख़िरी हिस्से में फ़िल्माए गए कुछ सीन देखने लायक हैं| ‘Gully Boy’ का झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाला एमजी शेर ‘Gehraiyaan’ में रईस रियल इस्टेट कारोबारी है| सिद्धांत चतुर्वेदी यहाँ बेहद संभ्रांत (elite) लगते हैं| शारीरिक हाव-भाव और चाल-ढाल के स्तर वह काफी विश्वसनीय लगते हैं| लेकिन जहाँ तक बात किरदार की मनोवैज्ञानिक व भावनात्मक विश्वसनीयता की है, तो वह ज़ेन में नहीं दिखती है| अनन्या पाण्डेय और धैर्य करवा के लिए पठकथा में जितनी संभवना थी, उन्होंने उसके अनुरूप काम किया है|
इंसान के मन और भावनाओं की टकराहट को दृश्यों में बाँधने के लिए शकुन बत्रा ने समुद्र की लहरों का सहारा लिया है| दृश्यों में समंदर की मौजूदगी, मन की गहराई और रहस्यात्मकता का बोध कराती है| फ़िल्म का नीले रंग का कलर टोन इस बोध को और मज़बूत बनाता है|
‘Gehraiyaan’ की पटकथा शकुन बत्रा ने सुमित राव, आयशा देवित्रे, यश सहाय के साथ मिलकर लिखी है| लिखते समय इनके सामने यह बात बिलकुल साफ़ रही होगी कि वह महानगर के दर्शकों के लिए लिख रहे हैं| फ़िल्म के किरदारों की भाषा, हँसी-मज़ाक करने के तरीके, हर दूसरे संवाद में ‘F..k’ के इस्तेमाल से छोटे शहर के लोग खुद को जोड़ नहीं पाते हैं|
चरित्रों को लेकर यह कहा जा सकता है कि सारे चरित्र अपनी ज़िन्दगी की ज़रूरतों के तहत संचालित होते हैं, जो स्वाभाविक लगता है| लेकिन इन किरदारों और कहानी का भावनात्मक पक्ष कमज़ोर होने के कारण दर्शक न तो किरदारों से और न ही कहानी से जुड़ पाता है| निर्देशक की सारे प्रयासों के बाद भी वह खुद को सतह पर तैरता हुआ महसूस करता है|
दीपिका पादुकोण के शानदार अभिनय से सजी फ़िल्म ‘Gehraiyaan’ अमेज़न प्राइम वीडियो पर देखी जा सकती है|