Wednesday, December 4, 2024

‘Forrest Gump’ Hindi Review: शुरुआत ही अंत है और अंत ही शुरुआत!

दोस्तोयेव्सकी के अपने प्रसिद्द उपन्यास बौड़म के बारे में लिखते हुए कोंस्तान्तिन फ़ेदीन लिखते हैं “- मानव की आत्मा विद्रोह करती है, वह मुक्ति-मार्गों की खोज में छटपटाती है। कि क्रय-विक्रय का माल बनने को राज़ी होने के बजाय वह नष्ट हो जाना बेहतर समझेगी। दोस्तोयेव्सकी का कृतित्व एक उत्कट कलाकार की शाश्वत बेचैनी, अस्वीकार दुनिया के विरुद्ध उसकी आवाज़, उसकी चुनौती क ही नहीं, बल्कि उसकी घबराहट, मार्ग खोजने की भूल-भटकन की यातनाओं, उन असंगतियों को भी व्यक्त करता है जिनका किसी एक व्यक्ति के लिए हल ढूंढना संभव नहीं।”

टॉम हैंक्स अभिनीत, विंस्टन ग्रूम के उपन्यास पर आधारित और रॉबर्ट ज़ेमेकिस निर्देशक सन 1994 में बनी फ़िल्म “Forrest Gump” की शुरुआत हवा में इधर से उधर उड़ते एक पंख से होता है और फ़िल्म की समाप्ति से ठीक पहले भी वही पंख ठीक उसी प्रकार हवा में उड़ता है। उससे पहले जेनी की क़ब्र पर खड़ा फ़ॉरेस्ट कहता है कि “जैनी, मैं नहीं जानता कि मॉम सही थी या ल्यूटीनेंन डैन सही थे, मुझे नहीं पता। नहीं पता कि हमारी कोई तक़दीर होती है या हम यूं हीं बिना किसी वजह के हवा के साथ उड़ते रहते हैं! मेरे ख़याल से मॉम और डैन दोनों सही हैं। शायद दोनों ही बातें साथ-साथ हो रही हैं।”

कहते हैं जीवन बड़ा सरल और सहज है, हम इंसान इसे कठिन और असहज बनाते हैं। “Forrest Gump” सहज है, सरल है लेकिन वो हमें सामान्य नहीं लगता क्योंकि हम सहज और सरल नहीं हैं। हमने हर चीज़ को देखने का एक दृष्टिकोण बना लिया है और हर बात का कुछ मतलब निकलने लगे हैं! हमने हर चीज़ को कोई नाम दे दिया है। हर बात परिभाषाओं से समझते हैं और यह करते हुए हम कितना समझते हैं, यह अलग से समझाने की आवश्यकता शायद नहीं है। जहां तक सवाल सहजता और सरलता के चित्रण का है तो अगर वो इतना ही आसाम होता तो दुनिया के महानतम लेखक दोस्तोयेव्सकी को अपने प्रसिद्द उपन्यास बौड़म की भूमिका में यह नहीं लिखना पड़ता –  “इस उपन्यास के विचार को मैं कब से अपने मन में संजोये रहा हूं, पर वह इतना कठिन था कि बहुत समय तक उसे हाथ लगाने का सहस ही नहीं हुआ। – – – उपन्यास का मुख्य विचार सकारात्मक रूप से एक बहुत ही अच्छे इंसान का चित्रण करना है। दुनिया में इससे कठिन कोई दूसरा काम नहीं है, विशेष रूप से इस समय।”

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फ़िल्म के अंत में फ़ॉरेस्ट एक सुबह उठता है और जेनी को अपने साथ घर में न पाकर चुपचाप सोचता रहता और एकाएक दौड़ना शुरू कर देता हैं – बस ऐसे ही। लोग उसके दौड़ने का भी कारण ढूंढना चाहते है कि वो क्यों दौड़ रहा है, अवश्य ही उसके पीछे कोई कारण होगा। हालांकि कारण हर बात का होता ही है लेकिन यह भी आवश्यक नहीं कि उसे शब्दों में ही बयान किया जाए। भावनाओं को पूरे का पूरा व्यक्त करने की ताक़त शब्दों के पास है क्या? फिर हम क्यों हर बात शब्दों में समझने और समझाने पर आमादा रहते हैं? शायद इसीलिए हमने मौन को समझने की क्षमताओं का विनाश कर लिया है और मात्र शब्दों के पीछे भागकर शैतान को भी भगवान मान लिया है। “Forrest Gump” एक ऐसे हवा में उड़ते पंख की कहानी नहीं है जो एक ख़ास कालखंड में अमेरिका में उड़ता है और प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उस कालखंड के कुछ प्रमुख घटनाक्रम को अपने में बिना किसी शाब्दिक व्याख्या के समाहित करता है।

जादुई यथार्थ से परिपूर्ण यह फ़िल्म “Forrest Gump” के मूल में फ़ॉरेस्ट गम्प (टॉम हैंक्स), उसकी मां (सैली फिल्ड), जेनी (रोबिन व्राईट), बब्बा (माइकेल्टी विलियम्सन) और ल्यूटीनेन डैन (गैरी साईनिस) आदि चरित्र हैं लेकिन यह फ़िल्म केवल इंसानी चरित्र ही नहीं बल्कि 1956 से लेकर 1981 तक अमेरिका में घटित होनेवाले महत्वपूर्ण घटनाओं को भी अपने में पूरी तटस्था के साथ समाहित भी करती है। फ़िल्म फ़ॉरेस्ट गम्प नामक चरित्र के नज़रिए से हमें दिखाई जाती है और ज़्यादातर घटनाओं पर उसका कोई नज़रिया ही नहीं है क्योंकि वो सहज और सरल है और दुनिया के दाव-पेंच उसकी समझ में नहीं आते। वो जिन्हें मानता है, वो जो कहते हैं उसे मान लेता है।

जेनी अपने अतीत से भाग रही है, उसे बीएस भागना है और जब वो भागते-भागते थक जाती है तो उसके पास वक्त ही नहीं होता कि रुके और जीवन की जीवंतत को महसूस कर सके। बब्बा करना कुछ चाहता है होता कुछ है। डैन अपने अतीत की गिरफ़्त में है और अपने पूर्वजों की तरह लड़ते हुए शहीद होना चाहता है और जब फ़ॉरेस्ट उसे बचा लेता है तो वो आगबबूला हो जाता है। वो जीवन जिस रूप में भी है उसे स्वीकार करने से इनकार करता है। वो अपनी नियति ख़ुद निर्धारित करना चाहता है इसलिए नीतिनिर्धारक को चुनौती भी देता है और कुछ हद तक उसमें सफ़ल भी होता है। फ़ॉरेस्ट गम्प की मां बस उसकी मां है। अब रजा सवाल फ़ॉरेस्ट गम्प का तो वो इन सब और बहुत सारी दुनियावी बातों के बीच से गुज़रता है लेकिन किसी सुंगधित पुष्प की तरह वो कभी भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता। उसे ना किसी से शिकायत है और ना ही शिकवा। वो बस है। यह बस होना, काश इतना आसान होता! अगर होता तो चार्ली चैपलिन जैसे कलाकार को यह कभी ना कहना पड़ता – जीवन अद्भुत हो सकता है अगर लोग आपको अकेला छोड़ दें।

यह अलग से बताने की आवश्यकता नहीं है कि दुनिया भर के कई प्रसिद्द सम्मानों से सम्मानित यह फ़िल्म विश्व सिनेमा की एक घरोहर है और इसका हर पक्ष अपने आप में बेमिसाल है। दुनियाभर के फ़िल्म प्रेमी इसे आज भी बड़े शौक से ना केवल देखते हैं बल्कि बार-बार देखते हैं। जहां तक सवाल इस फ़िल्म में अभिनय का है तो टॉम हैंक्स को पता है कि चरित्र बनना होता है, दिखना नहीं। अब यह दिखने और बनने के बीच का महीन फ़र्क जिन्हें पता है, उन्हें पता है। कोई चीज़ उत्फ़िकृष्ल्मट ऐसे ही नहीं बनती और “Forrest Gump” एक उत्कृष्ट रचना है और उत्कृष्ट रचनाएं बार-बार नहीं बनती और दुहराई तो बिलकुल भी नहीं जा सकतीं क्योंकि सिनेमा कल्पनाओं की दुनिया में विचरण है और वह सबका अपना अपना और निजी ही होता है। इसलिए आप किसी सिनेमा से प्रभावित हो सकते हैं, उसका पुनर्निर्माण संभव ही नहीं। इसलिए जो कुछ भी होगा वो पहलेवाली से अलग ही होगा, चाहे कोई कितना भी फ्रेम दर फ्रेम जैसे का तैसा प्रस्तुत करे। हां, यह संभव है कि किसी फ़िल्म के प्रभाव में बनी कोई दूसरी फ़िल्म अलग हो और शायद बेहतर और नया भी। वैसे भी अगर आपके पास कहने को कुछ नया और बेहतर नहीं है तो आप कलाकारी के नाम पर कूड़े का भंडार ही बढ़ाएगें। 


फ़िल्म “Forrest Gump” को नेटफिल्क्स पर देखा जा सकता है|

पुंज प्रकाश
पुंज प्रकाश
Punj Prakash is active in the field of Theater since 1994, as Actor, Director, Writer, and Acting Trainer. He is the founder member of Patna based theatre group Dastak. He did a specialization in the subject of Acting from NSD, NewDelhi, and worked in the Repertory of NSD as an Actor from 2007 to 2012.

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