Friday, March 29, 2024

‘Don’t Look Up’ Hindi Review : गहरी बात कहती फ़िल्म

सन 1998 में एक फ़िल्म आई थी Deep Impact, फ़िल्म Don’t Look Up की मूल पटकथा उसी फ़िल्म से प्रेरित है लेकिन प्रेरित भर नहीं है बल्कि यह फ़िल्म उस फ़िल्म की पटकथा को बदले समय के अनुरूप उन्नत भी करती है। यह कह सकते हैं कि Don’t Look Up, Deep Impact का उन्नत स्वरूप है जो कथा के मूल कथ्य को आज के आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक परिवेश में परीक्षण करती है। अगर बहुत ही हल्के लहजे में कहा जाए तो 1998 और 2021 की दुनिया में जो बदलाव साफ़-साफ़ देखे जा सकते हैं वो यह है कि मूढ़ता शिखर पर है और अब सबकुछ उनकी चाहत का ग़ुलाम है जिनके पास अकूत धन है। सरकारें वो बनाते हैं, जनसरोकार के नाम पर सरकारी नीतियां उनके फ़ायदे को ध्यान में रखकर बनती है। अधिकतर मीडिया का भीषण पतन हुआ है और पढ़े-लिखे लोग मूढ़ता गढ़ने के औज़ार के रूप में परिवर्तित हुए हैं। जबतक अपना घर आग की लपटों में नहीं घिर जाता तबतक हम यह मानने को तैयार ही नहीं होते कि कहीं कोई आग भी लगी है। इस दौरान सबसे ज़्यादा जिस चीज़ की हालत खास्ता हुई है हम उसे विज्ञान और लॉजिक के नाम से जानते हैं। विज्ञान और वैज्ञानिकता तो जैसे मज़ाक ही बनकर रह गया है; शायद इसलिए फ़िल्म Don’t Look Up का मुख्य चरित्र कहता है – “वो भी एक साइंटिफिक मेथड ही था जिससे कम्प्यूटर बना और आज जिसपे तुम अपने दिमाग के भूसे को जोक बनाकर बक़वास टाइप करते रहते हो।”

Don’t Look Up एक बड़े से उल्कापिंड (9 से 11 किलोमीटर लंबा) को पृथ्वी की तरफ बड़ी तेज़ी से बढ़ते आने से शुरू होती है और फिर नेतागिरी, ब्यूरोक्रेसी, मीडियागिरी, व्यापारी (जिसका सीधे पैठ है लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर (!) में), सोशलमीडियागिरी आदि के चक्कर में घनचक्कर बन जाने की त्रासदी और हास्यास्पद (tragic comedy) की सदिगीपुर्ण कथा को प्रदर्शित करने की चेष्टा की ओर अग्रसर होती है लेकिन नायकत्व (फ़र्ज़ी ही सही) के लिए बेचैन दुनिया को यह कथा शायद उतनी भाती नहीं है, इसलिए यह फ़िल्म Leonardo DiCaprio, Jennifer Lawrence, Cate Blanchett और Meryl Streep जैसे अभिनेता के होते हुए भी बॉक्सऑफिस पर एक फ़्लॉप फ़िल्म और सोशलमीडिया पर बेहद आलोचना झेलनेवाली और निराश करनेवाली फ़िल्म के रूप में प्रसारित होकर उभरती है। लगता है दुनियाभर में फार्स इतना वास्तविक और भ्रम इतना असली हो गया है कि लोगों को त्रासदी और व्यंग्य समझने की शक्ति ही समाप्त हो चुकी है और जहां तक सवाल नायकत्व का है तो ब्रेख़्त के एक मशहूर नाटक गैलेलियो का संवाद याद आता है – “अभागा होता है वो समाज जिसका कोई नायक नहीं होता। उससे भी अभागा होता है वह समाज जिसे नायक की ज़रूरत होती है।” Don’t Look Up में भी नायकत्व जैसा कुछ नहीं और ना ही चमत्कार जैसा ही कुछ और ना ही जादुई ही कुछ घटित होता है, ग्लिसरीन युक्त फ़र्ज़ी संवेदनाएं भी नहीं है इसलिए शायद यह लोगों की उम्मीद पर खरा नहीं उतरता! अब ब्रेख़्त का यह महत्वपूर्ण संवाद जिनकी समझ में आता है तो आता है और जिनकी समझ में नहीं आता है, तो नहीं ही आता है – कुछ ख़ास नहीं किया जा सकता है।

इस फ़िल्म की कथा काल्पनिक है लेकिन यह एक ऐसी कल्पना है जो कभी भी हक़ीक़त के रूप में हमारे सामने खड़ी हो सकती है। वैसे भी Don’t Look Up को सही रूप में समझने के लिए इसे एक बिम्ब की तरह देखना होगा कि चलते-चलते यह दुनिया कहां पहुंच गई है कि एक ऐसी घटना जिससे इंसान का वजूद ही ख़त्म हो जाएगा, पर भी लोग अपनी-अपनी आदतें, स्वार्थ और मूर्खता उड़ेलने में तनिक भी शर्मिंदा महसूस नहीं करते। नेता को अपनी गद्दी की चिंता है, मीडिया बेहद ज़रूरी मुद्दों का रायता बनाने के लिए कुख्यात हो चुकी है, जनता का दिमाग गिरवी और ग़ुलाम हो चुका है, सोशलमीडिया बिना जाने बुझे किसी को भी ट्रोल करने का अंधगहवार अड्डा बन गया है, कुछ मुठ्ठीभर पैसे वालों ने लोकतांत्रिक प्रणालियों को अपनी रखैल बना रखा है, झूठे सत्य और फ़र्ज़ी सपनों का बाज़ार गर्म है और जब ख़तरा एकदम सामने आता है तो सारे तारणहार सबसे पहले भाग खड़े होते हैं और जनता थाली पीटती रह जाती है। भरोसा नहीं तो अभी हाल में कोविड में दुनिया ने जो झेला उसे निष्पक्ष होकर याद किया जा सकता है। माना कि यह कोई महानतम फ़िल्म नहीं है लेकिन यह वर्तमान समय में एक बेहद ही सार्थक और महत्वपूर्ण सिनेमा तो है ही बशर्ते हम दिमागी गुलामी से मुक्ति पाकर इससे अंतर्निहित तथ्य को पकड़-समझ सकें, वरना तो सब हवा है!


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पुंज प्रकाश
पुंज प्रकाश
Punj Prakash is active in the field of Theater since 1994, as Actor, Director, Writer, and Acting Trainer. He is the founder member of Patna based theatre group Dastak. He did a specialization in the subject of Acting from NSD, NewDelhi, and worked in the Repertory of NSD as an Actor from 2007 to 2012.

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