निर्देशक रूमी ज़ाफरी और निर्माता आनंद पंडित की फ़िल्म ‘Chehre’ हाल ही में अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज़ हुई है | ‘अपराध और दंड’ के बीच तार्किक संतुलन स्थापित करना हर समाज, हर युग के लिए एक बड़ी चुनौती रहा है | फ़िल्म ‘Chehre’, चार रिटायर्ड दोस्तों की इस चुनौती से अपने ढंग से निपटने की कहानी है | वह चारों नकली अदालती कार्यवाही के ज़रिए अतिमहत्वकांक्षी व्यक्ति समीर मेहरा के चेहरे के पीछे छुपी सच्चाई को सामने लाने की कोशिश करते हैं |
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‘Chehre’ की कहानी
समीर मेहरा, एक एड एजेंसी में काम करता है | भारी बर्फ़बारी के बावजूद उसे किसी ज़रूरी काम के लिए 285 किलोमीटर दूर दिल्ली पहुँचना है | जल्दी पहुँचने के लिए वह एक शॉर्टकट रास्ता पकड़ता है | लेकिन आगे पेड़ गिरने से रास्ता बंद था और मौसम बिगड़ रहा था | उस सुनसान, निर्जन इलाके में क़िस्मत से उसे परमजीत सिंह भुल्लर मिल जाते हैं | वह समीर को अपने मित्र जगदीश आचार्य के बंगले पर ले जाते हैं | उस दिन जगदीश आचार्य के घर पर उनके चार दोस्तों की मुलाकात तय थी | भुल्लर साहब भी उसी सिलसिले में पहुँचे थे | इनके बाकि दो दोस्त थे, हरिया जाधव और लतीफ़ जैदी | यह चारों लोग सेवानिवृत्ति से पहले कानून और न्यायपालिका के क्षेत्र में काम करते थे | जगदीश आचार्य जज, लतीफ़ जैदी चीफ़ प्राज़िक्यूटर, भुल्लर साहब चीफ डिफेन्स कौंसिल और हरिया जाधव जल्लाद हुआ करते थे | इन चारों के अतिरिक्त वहाँ ऐना और उसका गूंगा भाई जो किवी भी मौजूद था |
शॉर्टकट अपनाने की आदत क्या समीर के लिए खतरनाक साबित हुई ?
वह बंगला और वहाँ मौजूद सभी लोग बड़े रहस्यमयी लग रहे थे | बंगले का लैंडलाइन फ़ोन डेड पड़ा था, कोई भी मोइबल का इस्तेमाल नहीं करता था | घर भर में ऐना की बनाई पेंटिंग्स लगी हुई थी जिनमें दंड देने वाले दृश्य अंकित थे | चारों बुजुर्गों की बात से लगता है जैसे वह किसी अजनबी के आने का इंतज़ार ही कर रहे थे और अब कुछ बहुत रोमांचक घटने वाला है |
यह चारों दोस्त समय बिताने के लिए एक अजीबोगरीब खेल खेला करते थे | जिसमें एक नकली अदालत लगाई जाती थी और गंभीरतापूर्वक कानूनी कार्यवाहियाँ होती थीं | इस खेल में समीर को भी अभियुक्त बना कर शामिल किया जाता है | बाकी लोग उसी भूमिका में थे, जो वह रिटायर होने से पहले वास्तविक अदालत में निभाते थे |
एक बेहद सामान्य पृष्ठभूमि वाला समीर बहुत कम समय में सफ़लता की लम्बी छलांग लगा कर, मौजूदा समय में एक बड़ी कम्पनी का सी.ई.ओ. बन चुका था | यह बात लतीफ़ जैदी को खटक रही थी | समीर की पदोन्नति से कुछ समय पहले ही कम्पनी के मालिक जी.एस. ओसवाल की मौत, जिस BMW कार से वह आया था उसके कागज़ात किसी नताशा ओसवाल के नाम पर होना, उसके महँगे सिगरेट केस पर “विथ लव फ्रॉम एन.ओ. (नताशा ओसवाल)” लिखा होना, ऐसे कई बिखरे हुए सूत्रों को जोड़कर लतीफ़ जैदी इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि नताशा और समीर के बीच अवैध सम्बन्ध थे तथा ओसवाल की मौत के पीछे समीर का हाथ था | हालाँकि समीर लगातार दावा करता रहा कि ओसवाल की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी | फिर भी इस नकली अदालत में समीर मेहरा पर अपने बॉस जी.एस.ओसवाल की हत्या का आरोप लगाया गया और कार्यवाही शुरू हुई |
क्या समीर मेहरा ने अपने बॉस मिस्टर जी.एस.ओसवाल की हत्या की थी ?
ओसवाल एक बहुत बड़ा व्यवसायी था और समीर मेहर उसकी कम्पनी में काम करता था | एक दिन पब में समीर की मुलाकात नताशा ओसवाल से हुई और धीरे-धीरे दोनों की जान-पहचान बढ़ने लगी | नताशा अपनी ज़िन्दगी में अकेलेपन, पति की प्रताड़ना की बात समीर को बताती है | समीर को उसके साथ सहानुभूति होती है | नताशा, अपने पति से छुटकारा पाने के लिए समीर की मदद माँगती है | साथ ही उसकी महत्वाकांक्षा को हवा देते हुए उसे सी.ई.ओ. पद का प्रस्ताव भी देती है | समीर तैयार हो जाता है |
ओसवाल दिल का मरीज़ था | डॉक्टरों की चेतावनी थी कि कोई भी सदमा उसके जीवन के लिए घातक हो सकता है | नताशा और समीर इस स्थिति का फायदा उठाने की सोचते हैं | वह दोनों ओसवाल को अपने आपत्तिजनक वीडियो भेजने का षड्यंत्र रचते हैं, जिससे कि उसे सदमा पहुँचे और दिल का दौरा पड़ जाए | उसी दौरान नताशा चुपके से ओसवाल को पोटैशियम का इंजेक्शन लगा देगी जिससे मौत होना तय है | इस योजना को अमल में ला कर समीर और नताशा हत्या को प्राकृतिक मौत का रूप देने में सफल हो जाते हैं |
क्या नताशा ने समीर को मोहरे जैसे इस्तेमाल किया ?
समीर को ओसवाल की मौत के बाद पता चलता है कि नताशा ने उसे जितनी भी कहानियाँ सुनाई थीं, वह सब मनगढ़ंत थीं | ओसवाल ने नताशा के साथ कुछ भी गलत नहीं किया था | नताशा केवल समीर का विश्वास हासिल करने के लिए प्रताड़ित होने का अभिनय कर रही थी और काम निकल जाने के बाद उसे अपनी ज़िंदगी से निकाल फेंका | जब समीर के सामने नताशा की असलियत खुली तो उसने भी नताशा को ब्लैकमेल करते हुए 3.5 करोड़ रकम की माँग कर दी | उस बर्फीले तूफ़ान में समीर, नताशा से पैसे लेने के लिए ही दिल्ली जा रहा था |
‘Chehre’ Ending explained : क्या समीर को उसके अपराध की सज़ा मिल पाई ?
नकली अदालत ने समीर को मौत की सजा सुनाई | इस पूरी कार्यवाही के दौरान समीर का वास्तविक स्वरूप सबके सामने आ जाता है | जब उसे पता चलता है कि सारा घर सर्विलांस में है, पूरा मुकदमा रिकॉर्ड हो चुका है और रिकॉर्डिंग हाईकोर्ट भेजी जाएगी तो वह हिंसक हो जाता है | पिस्तौल दिखाकर वहाँ से भाग जाता है और फिर गुज़रे ज़माने की फिल्मों की तरह ‘रन और चेज़’ का सीन चलता है | असली और नकली दोनों अदालतें न्याय करने में असफल हो जाती हैं, तो निर्देशक प्राकृतिक न्याय की अवधारण सामने ले आते हैं | समीर अपने कर्मों के परिणाम से बच नहीं सकता था, इसलिए भागते-भागते अंततः हिमस्खलन का शिकार हो जाता है |
फ़िल्म ‘Chehre’ के अंतिम दृश्य में हम देखते हैं कि नताशा ओसवाल समीर का सामान लेने के लिए जगदीश आचार्य के बंगले पर पहुँचती है | फिर एक बार किसी अजनबी के साथ नकली अदालत का खेल खेलने का रोमांच चारों दोस्तों के चेहरे पर नज़र आता है | फ़िल्म की शुरुआत ‘ज़िस्म चले जाएंगे, पर जिंदा रहेंगे चेहरे….’ कविता के साथ होती है | सच ही है कि लालच, हवस,वैमनस्य में रंगे चेहरे जिंदा रह जाते हैं | समीर से पहले किसी मंत्री जी का चेहरा था और समीर के बाद नताशा का चेहरा है |
निष्कर्ष
निर्देशक रूमी ज़ाफरी फ़िल्म ‘Chehre’ के माध्यम से न्याय व्यवस्था की कमियों पर टिपण्णी करना चाहते हैं | न्याय क्या है, कानून को कैसे काम करना चाहिए जैसे प्रश्न उठाते हैं लेकिन सामाजिक-न्यायिक समस्याओं को थ्रिलर के रंग में पेश करने के चक्कर में रायता फ़ैला देते हैं | जगदीश आचार्य के बँगले में न्याय के नाम पर रचा जाने वाला खेल, शिकारियों द्वारा शिकार करने सरीखा लगने लगता है | वैसे भी अपराधी को सजा दिलवाने का हवाला देकर, एक खूनी खेल का सिलसिला चलाना भी किसी अपराध से कम नहीं |
निर्देशक रूमी ज़ाफरी की थ्रिलर फ़िल्म ‘Chehre’ को आप Amazon Prime Video पर देख सकते हैं |
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