हॉरर-कॉमेडी फ़िल्में, भय और हास्य के मेल से बनती हैं | हिन्दी फिल्मों में हॉरर-कॉमेडी पहले भी बनती रहीं हैं | बेहतरीन हास्य अभिनेता महमूद ने सन 1965 में ‘भूत बंगला’ फ़िल्म बनाई थी | हालंकि यह भी सच है कि हॉरर-कॉमेडी फ़िल्में कम ही बनी हैं और उनमें भी अच्छी हॉरर-कॉमेडी तो उँगलियों पर गिनी जा सकती हैं | लेकिन 2018 में आई ‘स्त्री’ की सफलता ने फ़िल्मों के इस जोनर को निर्माता-निर्देशकों का हॉट फेवरेट बना दिया है | सबसे हालिया हॉरर-कॉमेडी फ़िल्म ‘भूत पुलिस’ (Bhoot Police), डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई है |
आइये जानते हैं कि निर्देशक पवन कृपलानी की यह फ़िल्म क्या दर्शकों को हँसाने के साथ-साथ डराने में भी सफल हो पाई है ?
‘Bhoot Police’ Story in Hindi
भूत पुलिस, मतलब की भूतों से रक्षा करने वाले अर्थात् तांत्रिक | तांत्रिक शब्द सोच कर जिस तरह की छवि जहन में आती है (दर्ज़नों अँगूठी, माला पहने, भस्म-भभूत लगाए) ‘भूत पुलिस’ के तांत्रिक वैसे बिलकुल भी नहीं लगते हैं | यहाँ विभूति (सैफ अली खान) और चिरौंजी (अर्जुन कपूर) नाम के दो तांत्रिक भाई हैं | यह दोनों जींस, शर्ट, जैकेट पहनने वाले हैण्डसम बाबा हैं | भूत-प्रेत भगाना इनका खानदानी पेशा है | इनके पिता उलट बाबा, पहुंचे हुए तांत्रिक थे | विरासत के नाम पर उलट बाबा दोनों भाइयों के लिए तन्त्र विद्या की एक किताब छोड़ गए हैं | पिता की इस किताब को छोटा भाई चिरौंजी दिल से लगा कर रखता है | चिरौंजी का विश्वास है कि परालौकिक शक्तियां होती हैं और बिना जाने उनको नकारना उतना ही बड़ा अन्धविश्वास है जितना बिना जाने हुए स्वीकार करना | चिरौंजी, जिसे उसका भाई प्यार से चीकू बुलाता है, ईमानदार व्यक्ति है | वह तंत्र विद्या की सच्ची साधना करना चाहता है | जबकि चिरौंजी के ठीक विपरीत उसका भाई विभूति भूत-प्रेत पर विश्वास नहीं करता | वह लोगों के बीच फैले अज्ञान और अन्धविश्वास का फायदा उठाते हुए पैसा बनाने की फिराक में रहता है | विभूति और चिरौंजी के बीच मतभेद अक्सर नोक-झोंक के रूप में नज़र आता है |
एक दिन माया (यामी गौतम) नाम की लड़की उलट बाबा को खोजती हुई इन दोनों भाइयों तक पहुँचती है | माया की एक बहन भी है, जिसका नाम कनिका उर्फ़ कनु (जैकलीन फर्नांडीज) है | इन दोनों बहनों का हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला शहर में चाय का व्यापार है | जो फिलहाल आर्थिक संकट से गुज़र रहा है | ऐसे मुश्किल हालात में किचकंडी नाम की एक आत्मा का खौफ़ इलाके में फैलना माया को परेशान कर रहा था क्योंकि चाय फैक्ट्री के सारे मजदूर डर के मारे काम पर नहीं आ रहे थे | सालों पहले उलट बाबा ने किचकंडी को काबू कर एक हांडी में बंद कर दिया था और उस इलाके में रहने वालों को राहत दिलाई थी | अब एक बार फिर किचकंडी के प्रकोप को ख़त्म करने के लिए माया उलट बाबा के बेटों से मदद मांगने आती है |
विभूति के लिए माया का प्रस्ताव एक बड़े फायदे वाला सौदा है जबकि चिरौंजी के लिए तांत्रिक विद्या को सीखने और आजमाने का एक मौका है | विभूति और चिरौंजी, अपने पिता की तरह क्या किचकंडी को वश में कर पाने में सफल होते हैं या नहीं, यह जानने के लिए आपको ‘भूत पुलिस’ (Bhoot Police) फिल्म देखना होगा |
जिन बातों का विरोध करती है, उन्हें ही स्थापित भी करती करती है
भूत पुलिस (Bhoot Police) फ़िल्म, अपने विचार में विरोधाभासी है | भूत-प्रेतों के होने या न होने की एक बहस विभूति और चिरौंजी में लगतार चलती रहती है | शुरुआत में फ़िल्म भूत-प्रेत को लेकर समाज में फैले अन्धविश्वास और अज्ञान पर चोट करती नज़र आती है | भूत या आत्मा भगाने के जिन मामलों में विभूति और चिरौंजी को बुलाया जाता है उनमें अक्सर किसी न किसी की बदमाशी होती थी | आधी से ज्यादा फिल्म में सैफ अली खान के चरित्र के माध्यम से तंत्र-मंत, भूत-प्रेत को लोगों का वहम बताने की कोशिश की गई है | सब कुछ जानते-बूझते हुए भी यह दोनों तांत्रिक, भोले-भाले लोगों को ज्यादा से ज्यादा बेवकूफ बना कर अपना धंधा फैलाने में लगे हुए हैं | फिल्म देखते हुए जब दर्शक इस राय पर पहुँच जाता है कि भूत-प्रेत विशुद्ध रूप से अन्धविश्वास और कुछ शातिर लोगों के ढोंग,पाखंड से ज्यादा कुछ नहीं है | तभी एक के बाद एक होने वाली घटनाएँ कहानी को उस दिशा में बढ़ा देती हैं जहाँ आत्माएं, बुरा साया जैसी चीज़ें हक़ीकत बना जाती हैं |
कोशिशें रंग नही लाई
लेखक पूजा लढा सुरती, अनुवाब पाल, पवन कृपलानी और संवाद लेखक सुमित बथेजा ने कहानी में संवादों के माध्यम से मौजूदा राजनीतिक-सामाजिक स्थितियों पर चुटकी लेने की कोशिश की है | “बेटी बचाओ, बेटी पढाओ”, “गो कोरोना गो” की तर्ज़ पर “गो किचकंडी गो” जैसे संवाद हैं, नेपोटिज्म का ज़िक्र भी छेड़ा गया लेकिन यह सब कोशिशें प्रभावी नहीं लगती |
अभिनय के मामले में सैफ अली खान थोड़ा ठीक लगे हैं | अर्जुन कपूर, यामी गौतम और जैकलीन फर्नांडीज अपने अभिनय का असर नहीं छोड़ पाते हैं | अन्य सहायक अभिनेताओं में जावेद जाफ़री और राजपाल यादव की कॉमेडी में बनावटीपन है | जॉनी लीवर की बेटी जेमी लीवर एक-दो सीन में ही दिखती हैं, बावजूद इसके उनका कॉमेडी करने का तरीका और टाइमिंग ध्यान खींचता है |
संक्षेप में
अंत में, ‘भूत पुलिस’ (Bhoot Police) के लिए इतना कहना ही काफी होगा कि यह फ़िल्म न ही हँसा पाती है और न ही डरा पाती है | ‘स्त्री’ जैसी फ़िल्म देखने की उम्मीद के साथ अगर आप इसे देखेंगे तो निराश ही होगें |
‘भूत पुलिस’ (Bhoot Police), डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर उपलब्ध है |
फिल्मची के और आर्टिकल्स यहाँ पढ़ें।