देश में लोकतंत्र है| लोक के कल्याण के नाम पर एक विशाल तंत्र खड़ा किया गया है| विडंबना देखिए कि साल दर साल, घटना दर घटना लोक खुद को संवेदनहीन तंत्र के शोषण का शिकार हुआ पाते हैं| 70 के दशक में खुद को ठगा हुआ महसूस करने वाली जनता का सिनेमाई प्रतिनिधित्व ‘यंग एंग्री मैन’ के तौर पर हुआ था| समय, तकनीक और शोषण के रूप बदलने के साथ ‘यंग एंग्री मैन’ अब सिनेमा में ‘आम आदमी’ के रूप में दिखाई देने लगा है| “A Wednesday,” मदारी और धमाका, जैसी फ़िल्में मिसाल के तौर पर गिनाई जा सकती हैं| इन फिल्मों का आम आदमी व्यवस्था की मार से बुरी तरह टूटा हुआ होता है| संवेदन शून्य हो चुके तंत्र को वह अपने दुःख और आक्रोश से झकझोरना चाहता है| इसके लिए अक्सर धमाके, अपहरण, बंधक बनाने जैसे उपाय आजमाता है| निर्देशक बेज़ाद खंबाटा ने भी इसी आम आदमी को अपनी फ़िल्म “A Thursday” का विषय बनाया है|
“A Wednesday” की तर्ज़ पर बनी “A Thursday” एक सस्पेंस थ्रिलर फ़िल्म है| फ़र्क बस इतना है कि यहाँ आम आदमी के रूप में एक महिला पात्र है|
Summary of ‘A Thursday’ in Hindi
30 साल की नैना जयसवाल (यामी गौतम) अपना प्ले स्कूल चलाती हैं| नैना हंसमुख, मिलनसार है| प्ले स्कूल में आने वाले बच्चे और उनके अभिभावक, टीचर के रूप में नैना को काफी पसंद करते हैं|
एक बृहस्पतिवार को अपने बारे में सबकी धारणा के विपरीत नैना एक दुस्साहसिक काम को अंजाम देती है| उस दिन नैना तीन हफ्ते की छुट्टी के बाद स्कूल लौटी थी| संयोग से उसी दिन प्रधानमंत्री माया राजगुरु (डिंपल कपाड़िया) मुम्बई आने वाली थी| जाने-माने वकील और नैना के मंगेतर रोहित मीरचंदानी (करणवीर शर्मा) के संवाद के जरिए पता चलता है कि प्रधानमंत्री माया राजगुरु से देश को बहुत उम्मीदे हैं| शायद नैना को भी थी|
प्रधानमंत्री की यात्रा के दिन मुंबई पुलिस को नैना फ़ोन करती है| फ़ोन पर वह अपने स्कूल के सभी 16 बच्चों को बंधक बना लेने की सूचना देती है| साथ ही यह भी कहती है कि इसके बाद वह केवल पुलिस ऑफिसर जावेद खान (अतुल कुलकर्णी) से बात करेगी| ए.सी.पी.कैथरीन अल्वारेज़ (नेहा धूपिया) जावेद खान को बुलाती हैं| खुद जावेद को समझ नहीं आ रहा था कि नैना केवल उससे ही बात क्यूँ करना चाहती है?
इनकाउंटर विशेषज्ञ के रूप में विख्यात जावेद खान पुलिस की तरफ से नैना से बात करते हैं| नैना 5 करोड़ रुपए की माँग करती है और इसे पूरा करने के लिए पुलिस को एक घंटा देती है| यह माँग पूरी हो जाने पर वह आगे और भी माँगें रखती है| जैसे देश की प्रधानमंत्री से फ़ोन पर बात करना, फिर उनसे आमने-सामने बैठ कर अपनी बात कहने का मौका देना आदि-आदि| माँगें पूरी न होने की स्थिति में वह हर घंटे एक बच्चे को जान से मारने की धमकी देती है|
नैना जयसवाल यह सब क्यूँ कर रही है?
बंधी मुट्ठी लाख की खुल गई तो खाक की, यह कहावत फ़िल्म “A Thursday” पर सटीक ढंग से लागू होती है| फ़िल्म में सारा रोमांच तब तक अच्छा लगता है जब तक दर्शक के भीतर उत्सुकता बनी रहती है कि नैना जैसी प्यारी लड़की ऐसा जघन्य काम क्यूँ कर रही है? जैसे ही कहानी में नैना द्वारा उठाये गए कदम की वजह खुलना शुरू होती है, फ़िल्म अपनी पकड़ खोने लगती है| अतीत में हुआ क्रूर अपराध और पुलिस के नाकारेपन की वजह से अपराधियों का खुला घूमना, नैना की आत्मा में लगा वह ज़ख्म है जो अभी तक भरा नहीं था| अपने ज़ख्म, अपनी पीड़ा और अपनी आवाज़ व्यवस्था के कानों तक पहुँचाने के लिए उसने बच्चों को बंधक बनाया था|
‘A Thursday’ फ़िल्म कैसी है?
फ़िल्म देखने के बाद यह प्रश्न तुरंत उठ खड़ा होता है कि कब तक फिल्म बनाने वाले गंभीर समस्याओं के इस कदर अगंभीर समाधन दिखाते रहेंगे| व्यवस्था का शिकार फ़िल्मी आम आदमी अपनी बात सुनाने के लिए कान में चिल्लाने का हवाई रास्ता ही क्यूँ पकड़ता है? क्यूँ नहीं व्यवस्था परिवर्तन की किसी गंभीर कोशिश में जुटता दिखाया जाता है?
“A Thursday,” खूंखार अपराधियों के लिए फांसी की सज़ा को एक क्रांतिकारी कदम के तौर पर पेश करती है| फांसी की सजा, अपराध पर लगाम लगाने की एक लोकप्रिय अवधारणा का हिस्सा तो हो सकती है लेकिन इसे बिना किसी गंभीर विमर्श के अंतिम समाधान के तौर पेश करना सही नहीं है|
फ़िल्म, ए.सी.पी.कैथरीन अल्वारेज़ और जावेद खान के अतीत की हल्की सी झलक देकर आगे बढ़ जाती है| पुलिस व्यवस्था के प्रतिनिधि इन चरित्रों के गैरजिम्मेदाराना कृत्यों की गहरी पड़ताल नहीं करती है| नैना के तीन हफ्ते छुट्टी पर रहने की बात का कहानी से कोई सूत्र नहीं जुड़ता है| फ़िल्म का शीर्षक “A Thursday” रखने और घटना बृहस्पतिवार को घटित होने के पीछे भी कोई तर्क नहीं है|
“A Thursday” देखते हुए आपको कई फ़िल्में, दूसरी फिल्मों के किरदार याद आएँगें| गर्भवती ए.सी.पी.कैथरीन में “Money Heist” की एलिसिया की झलक मिलती है| कैथरीन और ज़ावेद की टकराहट, राकेल और कर्नल लुईस प्रीटो की भिड़ंत याद दिलाती है| नेहा धूपिया अपनी ही फ़िल्म ‘सनक’ के किरदार को दोहराती लगती हैं| रिपोर्टर/एंकर शालिनी गुहा (माया सराव) और उनके बॉस के साथ के दृश्य हाल ही में आई कार्तिक आर्यन की फ़िल्म ‘धमाका’ जैसे लगते हैं|
“A Thursday” के शुरूआती हिस्से में प्ले स्कूल के भीतर 16 मासूम बच्चों के साथ नैना की प्यारी बॉन्डिंग और बाहर पुलिस, सैन्य बलों, मीडिया, राजनेताओं के साथ चलते खतरनाक खेल के विरोधाभासी परिवेश को निर्देशक ने बखूबी दिखाया है| यामी गौतम भीतर से क्षत-विक्षत नैना के किरदार में कुछ दृश्यों में प्रभावित करती हैं| अतुल कुलकर्णी और नेहा धूपिया को दर्शक इससे पहले ज्यादा अच्छी भूमिकाओं में, ज्यादा अच्छा अभिनय करते देख चुके हैं| “A Thursday” में दोनों ही अपने स्तर और अपनी क्षमता से कमतर लगते हैं|
यामी गौतम अभिनीत क्राइम थ्रिलर “A Thursday“ डिज़्नी प्लस हॉटस्टार पर उपलब्ध है|