Friday, April 19, 2024

इतना भी Simple नहीं है A Simple Murder (TV Series)

भारतीय समाज का दायरा इतना विस्तृत है कि इसके बारे में कोई भी एक बात विश्वास से नहीं कहा जा सकता है और अगर कह भी दिया जाए तो उसे ही ब्रह्मसत्य कहना ज्ञानियों के वश की बात नहीं है। आप जैसे ही कोई एक बात को सच मानते या बताते हैं वहीं तपाक से दूसरी बात उग आती है, जो उस बात के ठीक विपरीत होती है और दोनों ही बातें सत्य होती हैं। हां, पलड़ा कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ नीचे-ऊपर होता रहता है। वैसे ही भारतीय समाज में प्रेम है, प्रेम की पूजा है लेकिन भारतीय समाज प्रेम विरोधी भी है और अब तो दो वयस्क प्रेम करने के लिए किसका चयन करें और किसका नहीं धीरे-धीरे यह भी एक राजनीतिक मसला होता जा रहा है; वो भी तब जब भारतीय संविधान के अनुसार यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के दायरे में आता है और कहीं कुछ ग़लत होता है तो उसके लिए अलग से क़ानून है फिर भी। सोनी लिव पर प्रसारित A Simple Murder (TV Series) की जड़ में प्रेम का मसला है लेकिन यह सिरीज़ उस बारे में कम लालच, लोभ, स्वार्थ, धोखा और अपराध के मार्फ़त ब्लैक ह्यूमर पैदा करने की चेष्टा में ज़्यादा व्यस्त है।

कुछ बेहद ज़रूरी बातें बस एक शॉट भर में है जिसे पकड़ लिया जाए तो बात की गहराई बढ़ जाती है लेकिन समस्या यह है कि उसकी मात्र इतनी कम है कि जिसकी नज़र पैनी न हो वो उसे पकड़ ही नहीं पाएगा और अगर यह नहीं पकड़ा गया तो यह सिरीज़ इतना ज़्यादा सिंपल हो जाएगा कि बस यह अपराध और हास्य का कारोबार होकर रह जाएगा, जो कि यह बिलकुल ही नहीं है। इसको पकड़ने के लिए कई बार अभिनेता और कहानी से इतर आंख को दृश्य का पूरा फ्रेम देखना होगा कि उस वक्त जब फलां बात घटित हो रही थी या घटित हो गई थी तब फ्रेम में और क्या था। जैसे मंत्री के पार्टी का नाम दो बार (जहां तक मुझे याद है) फ्रेम में आता है, इसे समझ लेने के बाद परत अपने आप खुलके बाहर आ जाती है कि दरअसल मात्र दो फ्रेम से कितनी बड़ी बात की जा रही है और जो आज की कड़वी सच्चाई है और जिसके चक्कर में इंसान जमूरा बना हुआ है। अब चुकी ऐसा प्रतीत होता है कि निर्देशक का उद्देश्य इसे ज़्यादा राजनीतिकरण का है नहीं इसलिए इस मुद्दे को ज़्यादा तहज़ीब दी ही नहीं गई और ना ही उस प्रेम प्रकरण को ही जिसके चक्कर में यह सारा खेल संचालित होता है इसलिए अन्तः वह केवल एक तड़का मात्र ही साबित होती है। अगर उसे प्रमुखता दी जाती तो यह आज के एक ज्वलंत सवाल को सामने रखती जिसे आजकल राजनीतिज्ञ काफी उछाल रहे हैं! 

A Simple Murder tv series

A Simple Murder (TV Series) में मुख्यतः कुल दो बातें हैं जिस तरफ ध्यान जाना चाहिए। पहली, बढ़िया पटकथा और दूसरा मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब, सुशांत सिंह, गोपाल, यशपाल शर्मा, अमित सियल, विक्रम कोचर और दुर्गेश कुमार का बढ़िया अभिनय। एक ऐसे समय में जब हमने जो कर दिया वही अभिनय है का सिद्धांत मान्य हो, वैसे वक्त में स्क्रीन पर अभिनय या अभिनय जैसा कुछ सच घटित होते देखना एक शुभ संकेत है। 

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कला के पारखी निर्माता और निर्देशक के अलावा भारतीय मनोरंजन जगत मूलतः बढ़िया लेखन की कमी से जूझ रहा है। ऐसा नहीं है कि इस देश में बढ़िया लेखकों की कोई कमी है, बस मौक़े और सामंजस्य स्थापित करने की बात है। यह बड़ी ही सुखद बात है कि ओटीटी के माध्यम से कुछ बढ़िया पटकथा लेखक सामने आ रहे हैं। इस सिरीज़ के लेखक प्रतीक पयोधि भविष्य के लिए बढ़िया उम्मीद जगाते हैं। इनके पास बढ़िया डार्क ह्यूमर लिखने की कला है हालांकि इस श्रृंखला में कई जगह पर यह ज़रूरत से ज़्यादा (overdone) प्रतीत होता है जो संभव हो कि अभिनेताओं ने निर्देशक की इच्छा या अनुमति से जोड़ा हो लेकिन उसकी ज़रूरत नहीं थी। 

A Simple Murder (TV Series) लेखक और अभिनेता के दम पर टिकी है, जहां अभिनेता कमज़ोर पड़ते हैं वहां ख़ाली स्थान भी दिखने लगता है। सिरीज़ जहां समाप्त होती है वहां से आगे के भाग की संभावना और बढ़ जाती है। उम्मीद किया जाना चाहिए कि आगे इससे ज़्यादा बेहतरीन देखने को मिलेगा और साथ ही क्या चलता है के चलताऊ फार्मूले का मोह का त्याग भी हो तो अच्छा और थोड़ी राजनीति भी होगी क्योंकि आज के समय में राजनीति से कुछ भी अछूता नहीं है – प्रेम भी नहीं और अपराध भी नहीं!


A Simple Murder (TV Series) Sony LIV पर उपलब्ध है।

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पुंज प्रकाश
पुंज प्रकाश
Punj Prakash is active in the field of Theater since 1994, as Actor, Director, Writer, and Acting Trainer. He is the founder member of Patna based theatre group Dastak. He did a specialization in the subject of Acting from NSD, NewDelhi, and worked in the Repertory of NSD as an Actor from 2007 to 2012.

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