Thursday, March 28, 2024

दुर्गामती (फिल्म) : यह है असली कल्पना से परे का सिनेमा!

एक लीटर ख़ूब तेज़ देसी दारु में ख़ूब सारे ड्राईफ्रूट्स के साथ चार सौ ग्राम भांग और दो ढक्कन क्लोरोफार्म मिलाकर बाबा की प्रसाद की तरह पूरी टीम ग्रहण करे और उसके बाद चरस और गांजे का सुट्टा लगाए और कैमरा लेकर चांदनी रात में किसी वीरान जगह पर तेज़ी से भागता हुआ निकल पड़े और जहां-तहां कैमरा चालू और बंद होता रहे, फिर उसे किसी चरसी नवसिखुए सौफ्वेयर इंजिनियर के पास ले जाकर संपादन कराया जाए तब बनती ढ़ाई घंटे लम्बी यह दुर्गामती (फिल्म) जैसी महान रचना।

ऐसी फिल्मों का इस्तेमाल भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी विदेसी जासूसों या देश के गद्दारों से सच रुपी झूठ और झूठ रूपी सच को उगलवाने के लिए कर सकती है। ऐसी फिल्म की एक बैठकी में 70 एमएम पर डबली डिजिटल साउंड में दर्शन मात्र से धुरंधर से धुरंधर अपराधी या जासूस सत्य अपने आप बाहर लाने लगेगा और अगर फिर भी न माने तो अक्षय कुमार की महानतम फिल्म हाउसफुल चार दिखा देनी चाहिए, कम से कम उसका महानतम संगीत बाला बाला शैतान साला एक सौ एक बार सुना देना चाहिए फिर देखिए जादुई असर।

दुर्गामती जैसी फिल्मों को ऑस्कर समेत दुनियाभर के प्रतिष्ठित सिनेमा प्रतियोगिताओं में हर वर्ग के लिए बड़े शान से भेजा जाना चाहिए ताकि वो एक ही झटके में एक हज़ार साल पीछे चले जाएं और उनको समझ में आए कि टाइमट्रेवल एक काल्पनिक और सिनेमाई नहीं बल्कि सच्ची घटना है और क्रिस्टोफर नोलेन के गुरूजी हमारे यहां बच्चा पैदा कराने वाली दाई का काम करते हैं. हम यह सत्य एक झटके में ही साबित सकते हैं कि चरस की शानदार खेती करने के लिए हमें ज़मीन की कोई ज़रूरत नहीं बल्कि उसके लिए इंसान का दिमाग ही काफी है जहां बिना खाद-पानी के ही सांस्कृतिक और राजनैतिक रूप से चरस की खेती ख़ूब मस्त लहलहाती है। ऐसी ही फ़िल्में सही में कल्पना से परे सिनेमा होतीं हैं क्योंकि यह बनानेवाले को भी पता नहीं होता है कि वो क्या बना रहे हैं और क्यों बना रहे हैं और देखनेवालों का क्या है वो तो कहीं भी और कुछ भी देख लेते हैं जैसे हमने देख लिया और अब आप भी देखनेवाले हैं!   

दुर्गामती (फिल्म) : यह है असली कल्पना से परे का सिनेमा!
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दुर्गामती (फिल्म) कल्पना से परे सिनेमा कैसे हैं। साधारणतया तो इसका अर्थ होता है वैसा सिनेमा जो दर्शकों की कल्पना से परे हो और उसे देखकर दर्शकों को एक अद्भुत और सार्थक सिनेमाई अनुभूति मिले लेकिन यहां इसका अर्थ ज़रा इससे और ज़्यादा व्यापक है. एक ऐसा सिनेमा जो निर्माता, निर्देशक, लेखक, अभिनेता और सम्पादक को भी पता ना हो कि वो क्या और क्यों बना रहा है और अगर वो नहीं भी बनाता तो दुनिया का क्या नुकसान हो जाता!

यह है भारतीय सन्दर्भ में कल्पना से परे का सिनेमा और कमाल की बात यह है कि हम ऐसा सिनेमा बनाने और देखने में दुनिया के किसी भी मुल्क के छक्के छुड़ाने में माहिर ही नहीं बल्कि उस्ताद भी हैं। दुर्गामती (फिल्म) हमारी इसी उस्तादी का जीता जागता उदहारण है जिसमें टीसिरीज़ के साथ-साथ महान अभिनेता सह टीवी एंकर अक्षय कुमार जी का बहुमूल्य योगदान है और रही सही कसर दक्षिण भारत का धरती के ग्रुत्वाकर्षण और तर्क को चुनौती देता हुआ महानतम सिनेमा और उसके बनानेवाले पूरा कर देते हैं। बाक़ी इस तुच्छ्य जीव की इतनी औकात और समझ नहीं है कि ऐसे कल्पना से परे के सिनेमा की समीक्षा कर सके इसलिए आख़िर में बस इतना ही कहूंगा कि मैलोडी खाओ ख़ुद जान जाओ और आंख, नाक, कान और दिमाग के साथ ही साथ अपने पुरे वजूद को कूड़ेदान बनाओ।

वैसे भी दुर्गामती (फिल्म) देश से कोरोना को भगाने के लिए बनाई गई है क्योंकि कठोर है लेकिन परम सत्य यह है ज़हर ही ज़हर को काटता है. इसलिए जिस प्रकार हमने थाली पीटकर, घंटी बजाकर, दिया जलाकर, ताली बजाकर और गो कोरोना गो गाकर कोरोना को नानी याद दिला दिया था ठीक उसी प्रकार यह महानतम तर्कों से सुसज्जित इस वैज्ञानिक सिनेमा के ज़्यादा से ज़्यादा दर्शन करके कोरोना की लड़ाई में जीत हासिल करेगें – जय दुर्गामती!  


दुर्गामती (फिल्म) Amazon Prime Video पर उपलब्ध है।

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पुंज प्रकाश
पुंज प्रकाश
Punj Prakash is active in the field of Theater since 1994, as Actor, Director, Writer, and Acting Trainer. He is the founder member of Patna based theatre group Dastak. He did a specialization in the subject of Acting from NSD, NewDelhi, and worked in the Repertory of NSD as an Actor from 2007 to 2012.

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