Saturday, April 20, 2024

जल्लीकट्टू (2019) : ऑस्कर के लिए भारतीय फिल्म

इस बार ऑस्कर के विदेशी फिल्म के वर्ग में भारत की तरफ मलयाली भाषा की फिल्म जल्लीकट्टू का चयन किया गया है। जल्लीकट्टू तमिलनाडु के प्रसिद्द त्यौहार पोंगल पर आयोजित होनेवाला एक पारंपरिक पौराणिक ग्रामीण खेल है जिसमें बैलों से इंसान की लड़ाई कराई जाती है। जानवरों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सन 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इस खेल पर पाबंदी लगा दी। एस हरीश की कहानी माओईस्ट पर आधारित इस जल्लीकट्टू का उस परम्परा से केवल इतना सम्बंध है कि यहां भी एक भैंस है और बहुत सारे इंसान है और पूरी फिल्म भैंस के भाग जाने और उसे दो गुटों के खोजने और आपसी टकराहट की कहानी कहती है। लेकिन फिल्म की कथा उतनी ही नहीं है बालक यह कहा जाए तो उचित होगा कि फिल्म संवाद से ज़्यादा दृश्य में है और क्या ख़ूब है। जो लोग भी इसके निर्देशक लीजो जोसे पेल्लिस्सेरी के काम से परिचित हैं वो जानते हैं कि पेल्लिस्सेरी अरेखाकीय कथा पद्धति (nonlinear storyline) और सिनेमा में हिंसा को एक सौन्दर्यात्मक अनुभूति के साथ एक ख़ास अंदाज़ में प्रस्तुत करनेवाले निर्देशक है। अब तक आई उनकी फिल्में नायकन (2010), सिटी ऑफ गोल्ड (2011), आमीन (2013), डबल बैरल (2015), अन्गेमली डायरी (2017), इ मा याऊ (2018) और जल्लीकट्टू (2019) इसके साक्षात् प्रमाण हैं।

जल्लीकट्टू फिल्म

जल्लीकट्टू फिल्म के मजबूत पहलुओं की बात अगर की जाए सबसे पहली बात तो प्रस्तुतिकरण ही है। एक गावं जहां वीफ खाने की परम्परा है, वहां एक दिन वो भैस भाग जाती है जिसे काटा जाना है और फिर दो गुट उसे पकड़ने में भीड़ जाते हैं। कम से कम संवादों के माध्यम से इस अतिसाधारण सी लगनेवाली कहानी को फिल्माने का अंदाज़ इतना अनूठा है कि देखनेवाला वर्तमान, भूत, भविष्य के शिकार युग से लेकर आधुनिक युग से होते हुए भविष्य तक की यात्रा करने लगते हैं और एक समय भैंस और उसके पीछे भागते लोग इंसान और जानवर नहीं बल्कि एक विम्ब और प्रतिक में बदल जाते हैं और ऐसा प्रतीत होता है जैसे इंसान अनंतकाल से चीज़ों के पीछे भाग ही तो रहा है और न जाने कब तक भागता रहेगा और लक्ष्य की प्राप्ति के उपक्रम में इंसान दल बनाकर एक दुसरे का जानी दुश्मन बन गया है और जब लक्ष्य सामने आता है तब तक बहुत सारा नाश हो चूका होता है और इंसान की सांसें उखड़ चुकी होती हैं। जंगल में पारंपरिक हथियार के साथ शिकार के पीछे भागता हुआ इंसान एकाएक एक आधुनिक पूल पर भागता हुई दिखता है और आप चौंक से जाते हैं और फिल्म के रहस्य को पकड़कर उसके गूढ़ अर्थ का आनंदानुभूति लेने लगते हैं। अन्धकार-प्रकाश, स्पष्ट और छाया के माध्यम से निर्देशक आनंदित करनेवाले ऐसे कई गूढ़ अर्थ खोलता रहता है!  

जल्लीकट्टू का संगीत अद्भुत और अनूठा है, जहां गीत और वाध्ययंत्रो का नहीं बल्कि प्राकृतिक ध्वनियों और प्रकृति में विद्दमान सुर, ताल और लय का जीवंत प्रयोग किया गया है। इसके लिए संगीत/ध्वनि परिकल्पक प्रशांत पिल्लई का काम बहुत सार्थक और अनुकूल है. ऐसा ही अद्भुत प्रयोग दृश्य परिकल्पना में भी देखने को मिलता है। फिल्म में जिस प्रकार अंधेरे और जुगनू जैसे प्रकाश का कई स्थान पर परिकल्पना है वह जानदार और जीवंत इसलिए है क्योंकि यह तकनीकीकरण के द्वारा नहीं बल्कि अभिनेताओं की कोरिओग्राफी से पैदा किया गया है जिसे सिनेमेटोग्राफी के रूप में गिरीश गंगाधरण ने बड़े ह कुशलता से फिल्माया है और सम्पादक दीपू जोशेफ़ ने उसे कुशल सार्थकता दी है. यह सब जितना जीवंत है उतना ही स्फूर्तिदायक भी और पुरे फिल्म को दर्शनीय और कलात्मक बनाए रखता है। फिल्म अद्भुत उर्जा से भरपूर है और इसका कीचड़युक्त आख़िरी दृश्य तो सिनेमा के शानदार दृश्य परिकल्पना के रूप में दर्ज़ किया जाना चाहिए। जल्लीकट्टू को ऑस्कर मिलता है या नहीं यह तो एक सिनेमाई कृति के अलावा पता नहीं और किन-किन बातों पर निर्भर करता है लेकिन इतना तो विश्वासपूर्वक कहा ही जा सकता है कि भारतीय प्रतिनिधि के रूप में डेढ़ घंटे की इस फिल्म का चयन निराशाजनक तो नहीं ही है।

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जल्लीकट्टू फिल्म Amazon Prime Video पर उपलब्ध है।

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पुंज प्रकाश
पुंज प्रकाश
Punj Prakash is active in the field of Theater since 1994, as Actor, Director, Writer, and Acting Trainer. He is the founder member of Patna based theatre group Dastak. He did a specialization in the subject of Acting from NSD, NewDelhi, and worked in the Repertory of NSD as an Actor from 2007 to 2012.

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