सन 1979 में बनी सुरक्षा (फिल्म) एक सुपरहिट जासूसी थ्रिलर है और जो फिल्म सुपरहिट हो उसके बारे में कुछ भी कहने का अर्थ यही है कि आप जो जीता वही सिकंदर की महानतम परिकल्पना के विरुद्ध खड़े हैं और यह सोच निश्चित ही लोकतंत्र विरोधी है इसलिए इस सवाल का यहां कोई महत्व ही नहीं है इस फिल्म में जासूसी क्या है और थ्रिल कब और कहां पैदा होता है! बहरहाल, आज़ादी के लगभग तीन दशक बाद देश तानशाही का स्वाद चखना शुरू ही किया था कि कुछ लोग जय प्रकाश नारायण-नारायण करते हुए आज़ादी की दूसरी लड़ाई में कूद खिचड़ी विपल्व करने लगे। ठीक उसी दौरान दूसरी तरफ नक्सलबाड़ी में लाल खून भी खौल रहा था और कुछ लोग मजुमदार-मजुमदार करते हुए देसी कट्टों की मदद से क्रांति रुपी डिलेमा से पीड़ित हो गए।
सत्ता और जनता के बीच कई स्तर पर युद्ध शुरू था ठीक उसी दौरान माइकल जक्शन का डांस, डाक्टर एल्वन का संगीत, एल्विस प्रिस्ले का अदा और लौरेंस ओलिवियर का अभिनय, ब्रूसली के कराटे, जेम्सबांड की तीन पाइरेटेड सीडी के साथ थोड़ा भारतीय चवनप्राश और सरस सलील में छपने वाली कोई अलौकिक सी कहानी को एक मिक्सी में डालकर कुछ देर हिलाते हुए तमाम तर्कों और कला की परिभाषाओं की अर्थी निकालकर अवतारी और चमत्कारी सिनेमा को इसलिए पैदा करने लगे क्योंकि जनता को थोड़ा चिल करना था और लोगों को भी मज़ा आने लगा क्योंकि चार्ली चैपलिन ने कभी कहा था कि आख़िरकार हर चीज़ एक झूठ ही है। (In the end, everything is a gag) यह बात भारतीय सिनेमा के महानतम व्यक्तियों के समझ में आ गई कि अब जब सबकुछ जब झूठ ही है तो फिर कला की तार्किकता और सत्यता के भ्रम के चक्कर में पड़ना ही क्यों है और फिर उन्होंने एक से एक अलौकिक और दिव्य सिनेमा बनाया और आज भी बड़े ही शान से बना रहे हैं और हम शान से उसका दीदार भी कर रहे हैं।
हम दरअसल घर की मुर्गी को दाल (हालांकि विकास की इस आंधी में अब तो दाल भी सस्ती नहीं रही।) बराबर समझनेवाले जंतु है। अब देखिए सुरक्षा (फिल्म) में सन 1979 में मिथुन गन मास्टर जी नाइन बनके जिंदा ताबूत में दफना दिए जाते हैं और फिर वहां से एक स्क्रू ड्राइवर की मदद से बाहर आ जाते हैं, हमने इस परिकल्पना को ज़रा सा भी भाव नहीं दिया लेकिन जब ऐसा ही एक दृश्य को 2003 में टेरेंटीनो किल बिल (फिल्म) में दिखाते हैं तो हम उसकी परिकल्पना पर वाह वाह करने लगते हैं और ऑस्कर तक दे मारते हैं। कहा जा सकता है कि यह दृश्य सुरक्षा (फिल्म) नामक इस महानतम फिल्म की कॉपी है।
वैसे अनेकों दृश्य है सुरक्षा (फिल्म) में जिसने सिनेमा इतिहास को एक अद्भुत उंचाई प्रदान की है और विश्व सिनेमा की कई सारी फिल्मों ने इन दृश्यों की नक़ल करके नाम, दाम कमाया। कार में पैराशूट का लगाकर नीचे उतरना, प्लास्टिक सर्जरी में प्लास्टिक का इस्तेमाल होना, टाइमबम में लम्बी तार का लगा होना, उडनेवाला पानी का ज़हरीला सांप का होना, सुई लगाकर नार्को टेस्ट करना और सच उगलवाना, स्क्रू ड्राइवर के सहारे रस्सी फेंकना और ढीली रस्सी के सहारे एक बिल्डिंग से दूसरी बिल्डिंग पर जाना, पैर में बिजली के झटके देकर टॉर्चर करना और टॉर्चर होनेवाले का पैरों से अपाहिज़ हो जाना, इंसान के ऊपर शुद्ध स्वदेशी घी डालकर उसके ऊपर टाइमबम लगाना, इंसान रुपी रोबोट का महानतम अविष्कार करना, सूरज की रौषणों को एक पारे में डालकर उससे दस सूरज की शक्ति पैदा करना और उससे तबाही मचाना और फिर उसे किसी छोटे देश को बेचने का जुगाड़ करना, पिआनो पर कव्वाली गाना, पूरी फिल्म में गन मास्टर जी नाइन का सैकड़ों बार जयघोष होना (इसके आगे माई नेम इज़ बौंड – जेम्स बौंड भी पानी भरता है।) ऐसे कई वैज्ञानिक परिकल्पना हैं जो दुनिया ने पहली बार देखा होगा और जिसे देखकर दुनिया के वैज्ञानिक नई खोजों को करने के लिए प्रेरित हुए होंगें। इसके लिए विश्व मनोरंजन जगत और विज्ञान के तमाम विभागों को इसके लेखक, निर्देशक, अभिनेताओं, सम्पादक और छायाकारों आदि का एहसानमंद होना चाहिए।
मिथुन दा की अधिकतर फिल्मों की परिकल्पना साधारण दिमाग की कल्पना से परे की परिकल्पना है। उदाहरण के लिए केवल एक दृश्य का वर्णन करना काफी होगा। होटल में गन मास्टर जी नाइन खाने के लिए जैसे ही बर्तन खोलता है उसमें से एक सांप निकलकर उड़ने लगता है जो बेड रूम तक उनका पीछा करता है और आख़िरकार महान जासूस गन मास्टर जी नाइन उस पतले से मरियल सांप को तकिए से पकड़कर कमोड में डालता है और फिर साइलेंट फ्लश चलाकर उसे बहा देता है और फिर वो उस वेटर को पकड़ता है जिसने उसे खाना लाकर दिया है। अब वेटर कहानी सुनाता है कि वो लिफ्ट से खाना लेकर आ रहा था कि बिजली चली गई और उसमें साथ खड़े एक आदमी ने खाना बदल दिया और बर्तन में खाने की जगह पर जिंदा सांप रख दिया। अपना सिर खुजाने की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि जब सीबीआई का सबसे क़ाबिल अफसर गन मास्टर जी नाइन इस कहानी पर यकीन कर लेता है तो आपको यकीन करने में कौन सा जागीर बिक रहा है आपका। अब जब देश के सबसे तेज़ दिमाग को यकीन हो जाता है तो हमारी और आपकी क्या औकात की कोई सवाल करें।
हिंदी सिनेमा के नायक (भले ही उसमें नायकत्व का कोई गुण न हो लेकिन वो नायक है तो है) को कहीं भी किसी भी वक्त लड़कियां छेड़ने का प्रमाणपत्र मिला होता है और यह भी तय होता है कि नायक चाहे जैसा भी हो नायिका को प्यार तो उसी से करना है क्योंकि प्यार सारे तर्कों से परे की चीज़ है। सुरक्षा (फिल्म) में गन मास्टर जी नाइन भी इस मामले में जेम्स बांड के पापा हैं इसलिए पहले ही दृश्य में पता नहीं किस कारण गोली चलने के फ़ौरन बाद ही पता नहीं किस प्रजाति की लड़कियां पता नहीं क्यों गन मास्टर जी नाइन को घर लेती हैं और पांच मिनट और बीस सेकेंड का गाना शुरू हो जाता है – ‘मौसम है गाने का, गाने का बजाने का’ और इसी गाने में कास्टिंग भी निपटा दिया जाता है और इस प्राकर एक पंथ और दो काज संपन्न हो जाता है। यह बात और हैं कि मौसम का इस गाने से कहीं कोई लेना देना ही नहीं है। अब हिंदी सिनेमा में गाने की वजह कोई खोजे तो उसे चार महीने की फंसी दे दी जानी चाहिए। बहरहाल, इसी गाने में लड़कियां बार-बार गन मास्टर जी नाइन, आई लव यू, यू आर माइन बोलती रहतीं है अब वो ऐसा इसलिए बोलती है क्योंकि लेखक ने लिखा है और निर्देशक ने कहा है कि ऐसा ही करना है, अब करना है तो करना है, यही उनका काम है और इसीलिए उन्हें इस गाने में ठुंसा ही गया है।
जब गाने बजाने की चल रही है तो सुरक्षा (फिल्म) में हिंदी सिनेमा के महानतम डिस्को संगीतकार बप्पी लहरी न संगीत दिया है और लिखनेवाले में क्या अद्भुत गीत लिखें हैं। कुछ गीतों के बोलों पर नज़र डालिए –
तुम जो भी हो दिल आज दो
कल ये समा फिर हो न हो
लगता है आगे चलकर कल हो न हो सुरक्षा (फिल्म) का टाइटल ट्रैक इसी महानतम गाने के प्रभाव में लिखा गया है –
हर पल यहां जी भर जिओ
जो है समा कल हो न हो
एक दूसरा गाना भी है वो भी अद्भुत दर्शन प्रस्तुत करता है। उसके भी बोल पढ़िए –
मैंने प्यार किया तो ठीक किया
इज़हार किया तो ठीक किया
एक बार किया तो ठीक किया
सौ बार किया तो ठीक किया
सुरक्षा (फिल्म) फिल्म के बाक़ी गीतों को आप ख़ुद सुनें। ऐसे महानतम गीतों के रचनाकार को अभी तक साहित्य अकादमी सम्मान क्यों नहीं दिया गया यह बात कल्पना से परे है! वैसे लगे हाथ यह भी बता देना ज़रूर है कि इस फिल्म के गानों को किशोर कुमार, लता, मन्ना डे, उषा मंगेशकर के अलावा बप्पी लहरी ने आवाज़ दी है। अब बप्पी द का संगीत हो और बप्पी द ख़ुद न गाएं, ऐसा हुआ है क्या! लगे हाथ यह भी बता ही देता हूं कि इस फिल्म के निर्देशक रविकांत नागैच हैं जो कम बजट में जेम्सबांड का मज़ा देने के लिए जाने जाने थे। अब जब बजट कम हो तो इंसान को लावा का ही मोबाइल मिलेगा ना, अब उस पर आईफोन का कवर चढ़ा लीजिए वह आपकी मर्ज़ी है।
अब बात ज़रा खलनायक की न हो तो मज़ा नहीं आएगा। जिस प्रकार भारतीय समाज एक उत्सवधर्मिता को स्नेह करनेवाला समाज है ठीक उसी प्रकार भारतीय सिनेमा का खलनायक अमूमन बड़ा ही संस्कारी और कला-संस्कृति को संरक्षण देनेवाला इंसान होता है इसलिए वो अपनी फौज में ऐसे तगड़े-तगड़े लड़के-लड़कियों की बहाली करता है जो मौक़ा मिलते ही किसी भी शैली में लड़ने और नचा-गाना करने में माहिर होते हैं और मौक़ा व दस्तूर कोई भी हो बिना नाच-गाना का आयोजन कराए खलनायक को मज़ा ही नहीं आता और उसकी बन्दुक से गोली या गोली से बन्दुक निकलने से इंकार कर देती है। इस फिल्म का खलनायक सनकी है और परम्परा के अनुसार एक आंख पर चपड़े की चिप्पी लगी है लेकिन है बड़ा सांस्कृतिक प्रेमी जो कैबरे से लेकर कव्वाली तक कराते हुए कला-संस्कृति के योगदान में अपना बहुमूल्य योगदान देता रहता है। कला-संस्कृति के क्षेत्र में भारतीय फिल्मी खलनायकों के महत्वपूर्ण योगदान पर पुस्तकों का लेखन होना चाहिए ताकि दुनिया को यह ज्ञात हो कि अगर ये खलनायक नाच गाने और विभिन्न प्रकार के लड़ाई की कला को अपने अड्डे पर संरक्षण नहीं देते तो यह सबकुछ पता नहीं कब का समाप्त हो गया होता!
जहां तक सवाल अभिनय का है तो जिस अभिनेता को अभिनय के लिए तीन-तीन राष्ट्रीय पुरस्कार मिला हो उनके बारे में कुछ भी कहना सूरज को रौशनी दिखाने के जैसा है लेकिन इतना अवश्य कहूंगा कि जिस किसी ने अभी तक इस फिल्म को नहीं देखी है और इसकी महानता से परिचय नहीं प्राप्त किया हो उसका नाम फिलिम्ची की लिस्ट से फ़ौरन से पेश्तर काट दिया जाना चाहिए क्योंकि मिथुन दा का सिनेमा अपनेआप में एक अलग ब्रह्माण्ड ही है!
सुरक्षा (फिल्म) YouTube पर उपलब्द है।
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