Thursday, March 28, 2024

लेडीज़ फस्ट (2017) : सिर्फ कहने से क्या होता है!

लेडीज़ फस्ट; यह शब्द मर्द बड़े अदब से बोलते हैं और ऐसा बोलने वाला मर्द बड़ा समाज में सभ्य माना जाता है। हम सबने यह कथन अपने जीवन में अनंत बार सुना और बोला होगा और यह आज भी निरंतर जारी है लेकिन ज़रा सोचने बैठिए कि हमने किन-किन बातों, कार्य के लिए लेडीज़ को फस्ट किया है? क्या हमने उनकी आज़ादी के लिए कभी यह बोला, उनकी इच्छाओं के लिए कभी बोला, उनकी चाहतों और ज़रूरतों के लिए बोला? हमने केवल उन्हीं बातों के लिए इस शब्द का प्रयोग किया जिसमें पुरुषसतात्मक समाज का आडम्बर बरकारा रहे। हमने अमूमन यही चाह है कि स्त्री पुरुषसतात्मक समाज में बनी मर्यादों का पालन करे। भारत की महिला तीरंदाज़ दीपिका कुमारी कहती है – “हमें घर से बाहर नहीं निकलने देते क्योंकि उन्हें भय है कि हम उनसे आगे निकल जाएगें। फिर उनके बनाए भ्रम का क्या होगा!” 

तीरंदाज़ दीपिका कुमारी के जीवन और संघर्षों पर केन्द्रित लेडीज़ फस्ट आधे घंटे से भी कम की एक डाक्यूमेंट्री फिल्म जो न केवल पुरुषसतात्मक समाज पर एक ज़ोर का तमाचा जड़ती है बल्कि खेल के प्रति भारतीय व्यवस्था की भी पोल खोलती है। दीपिका ने कभी यह सपना नहीं देखा था कि वो एक तीरंदाज़ बनेगी बल्कि वो तो अपने घर की गरीबी और घुटन भरे माहौल से दूर जाना चाहती थी। इसके लिए उसने तीरंदाजी शुरू किया क्योंकि वहां फ्री में रहना और खाना मिलता था। फिर उसने क्या इतिहास रचा वो सबके सामने है।

एक लड़की होने के नाते उसे हर मोर्चे पर लड़ना था, घर से लेकर बाहर उसके लिए केवल संघर्ष ही संघर्ष है और सुविधा के नाम पर समाज, कला, संस्कृति और खेल में क्या कुछ है वो किसी से छुपा हुआ नहीं है। तमाम चुनौतियां झेलते हुए आप कुछ कर जाते हो तो करो वरना मरो, किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता बल्कि घर, परिवार और समाज तो हर स्थान पर आपका मज़ाक बनाने के लिए जुटेंगे। दीपिका ने जब अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर लिया और पूरी दुनिया में उसका नाम हो गया और उसने थोड़ा अपना घर आदि बनाना शुरू किया तो उसके आसपास बात यह होने लगी कि लड़की बाहर रहती है और पता नहीं क्या उल्टे-सीधे काम करती है कि उसके पास इतना पैसा आता है। समाज इतना सड चूका है कि वो हर स्थान पर आपका बैंड बजाएगी और व्यवस्था ऐसी कि खिलाड़ियों से ज़्यादा अधिकारीयों को सुविधा मिलेगी, हर जगह पर। यही व्यवस्था है और हम इसी सडांध भरी व्यवस्था में खुश होने का दिखावा करते हैं! खिलाडी किसी कारण हार जाए तब उसकी शामत ही आ गई समझ लीजिए।

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जब वो सफल होती है तो उसकी सफलता में सब अपना-अपना हिस्सा लेने पहुंच जाते हैं लेकिन जब असफल होती है तो सब उसके ऊपर गिद्ध की तरह टूट पड़ते हैं। अभी हल की बात लीजिए किसी ने धोनी की मासूम सी बेटी का बलात्कार करने की धमकी दी क्योंकि धोनी छक्के पर छक्का नहीं मार पा रहे हैं इस आईपीएल में। अब यह किसे कौन समझाए कि हार और जीत खेल का हिस्सा है, हर बार जब कोई खिलाड़ी या टीम जीतता है तो ठीक उसी वक्त कोई हार भी रहा होता है। कोई खिलाड़ी कभी भी जानबूझकर ख़राब नहीं खेलता।

लेडीज़ फस्ट एक बेहद ज़रूरी डाक्यूमेंट्री है जिसे हर किसी को देखना और समझना चाहिए, कम से कम इसे लोगों को अपनी-अपनी बेटियों को तो बार-बार दिखाना चाहिए और यह समझाना चाहिए कि अपनी आज़ादी तुम्हारे हाथ में है और आज़ादी के लिए किसी से भी लड़ जाओ, चाहे सामने सत्ता हो, व्यवस्था हो, समाज हो या तुम्हारा अपना ही घर-परिवार क्यों न हो। एक बहुत बड़ी साजिश के तहत कमज़ोर और मर्दों का गुलाम बनाया गया है। तुम्हें हक़ है अपनी आज़ादी का और यह सत्ता, व्यवस्था, समाज और तुम्हारा अपना ही घर-परिवार ही तुम्हारी आज़ादी का सबसे बड़ा विरोधी है। पढ़ो, समझो और एकजुट होकर संघर्ष करो तब मायाजाल खत्म होगा और तब समझ में आएगा कि स्त्री कमज़ोर और गुलाम पैदा नहीं होती, बनाई जाती है लेकिन सवाल यह है कि जब हज़ारों साल की व्यवस्था में इंसान किसी एक तरह से जीने को आदि हो चुका है और उसे ही सही मानता हो तो बदलाव रूपी आग को अपनी हथेली पर कोई रखे भी तो क्यों!

दीपिका रिओ ओलम्पिक हार जाती है और उसके बाद वो अपनी बात कहते हुए रोने लगती है और भागकर फ्रेम से बाहर चली जाती है, कुछ समय फ्रेम ख़ाली रहता है लेकिन दीपिका के सिसकने की आवाजें आती रहतीं हैं, कैमरा रोल होता रहता है. थोड़ी देर बाद वो फिर से फ्रेम में वापस आती है, उसकी आखों में टप टप आसूं बह रहे हैं लेकिन वो निश्चय करती है कि वो हर सवाल का सामान करेगी और कहती है – पूछिए क्या पूछना है। फिर वो बेवाक होकर सवालों के जवाब भी देती है। ऐसी हिम्मत हर लड़की में पैदा करने की ज़रूरत है वरना तो जो है वो रहेगा और सबका बैंड भी बजेगा।


लेडीज़ फस्ट फिल्म Netflix पर उपलब्ध है।

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पुंज प्रकाश
पुंज प्रकाश
Punj Prakash is active in the field of Theater since 1994, as Actor, Director, Writer, and Acting Trainer. He is the founder member of Patna based theatre group Dastak. He did a specialization in the subject of Acting from NSD, NewDelhi, and worked in the Repertory of NSD as an Actor from 2007 to 2012.

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