दुनिया हमेशा से ही रंग-बिरंगी रही है और उसे एक ही रंग में रंग देने की साज़िशें भी अनगिनत काल से होती रहीं हैं। इंसान की भिन्न-भिन्न प्रजातियों में एक प्रजाति ऐसी भी है तो दुनिया के बने-बनाए दस्तूरों से ज़रा अलहदा विचार रखती है और जो कुछ है उससे अलग कुछ करने, सोचने और रचने की हिम्मत रखती है। उनके लिए सफलता और असफलता का मतलब एकदम अलग होता है। उन्हें सपने देखने का शौक होता है। वो न केवल सपने देखते हैं बल्कि उसे पूरा करने का जज़्बा भी रखते हैं। उन्हें यह भलीभांति मालूम होता है कि ‘अगर आप दुनिया बदलाव चाहते हैं तो आपको थोड़ा ख़तरा भी उठाना पड़ेगा।’ वो ख़तरा उठाते हैं और स्थापित मान्यताओं को चुनौती देते हैं। यह ऐसे ही एक इंसान या इंसानों के छोटे से समूह की सच्ची कहानी है जो ख़तरा उठाने का माद्दा रखता है, सपने देखता है और उसे पूरा भी करता है लेकिन यह भी सत्य है कि ज़्यादातर लोग इसी साजिश में लगे रहते हैं कि कहीं कुछ बदल न जाए और कहीं कुछ नया न रचा जाए।
रिमी इटली के एड्रिएटिक समुद्र में लगभग ग्यारह किलोमीटर दूर इटली के एक इंजिनियर जॉजियो रोज़ा ने सन 1969 में कुछ पायों को लगाकर लगभग 4300 स्कवायर फिट का प्लेटफार्म पर एक अप्राकृतिक टापू बना दिया और उसे एक स्वतंत्र स्थान घोषित कर दिया। उस स्थान पर उन्होंने पीने के पानी का इंतज़ाम किया, रेटोरेंट बनाए, बार बनाया, नाईट क्लब बनाया, सोबेनियर शॉप खोला, एक पोस्टऑफिस भी बनाया और रोज़ आइलैंड के नाम से न केवल चलाने लगे बल्कि इससे भी ज़्यादा अतरंगी काम करते हुए इसका एक अलग झंडा, करेंसी और कार्यक्रम और संविधान भी बनाने लगे। इसके लिए उन्होंने पासपोर्ट और वहां की नागरिकता भी देना शुरू कर दिया। दुनियाभर से बने बनाए नियम कानून और संस्कृति से ऊबे लोग वहां जाने लगे और कुछ ने किसी अन्य देश की नागरिकता रद्द कर वहां की नागरिकता पाने के लिए आवेदन भी किया।
इसी सच्ची घटना को ध्यान में रखते हुए एक बड़ी ही प्यारी सी इटालियन फिल्म आई है रोज़ आइलैंड (फिल्म)। सिडनी सिबिलिया निर्देशित इस यथार्थवादी फिल्म को सिडनी सिबिलिया और फ्रांसिस्का मनिएरी ने लिखा है और एलियो गर्मानो, माटिल्डा दे अन्गेलिस, लिओनार्दो लिदी, फब्रिजियो बेन्तिवोग्लियो, लूका ज़िन्गारेती और फ़्रन्कोइस क्लुजेट आदि अभिनेता ने काम किया है। निर्देशक सिडनी सिबिलिया मूलतः तीन फिल्मों की सिरीज़ आई कैन क्विट व्हेनेवर आई वांट के लिए जाने जाते हैं और यह उनकी चौथी फिल्म है। बहुत ही सरल और सौम्य हास्य और व्यंग इनकी फिल्मों का न केवल स्वाद बढाते हैं बल्कि ताज़ा भी रखते हैं और इस फिल्म में भी आप इसे महसूस कर सकते हैं।
रोज़ आइलैंड (फिल्म) बहुत ही सामान्य तरीक़े से बनाई गई है। यहां न कोई हिरोगिरी है और ना ही चमत्कार। इसी वजह से यह सच्च ज़्यादा क़रीब भी प्रतीत होती है लेकिन यहां वो सारे तत्व मजूद हैं जो एक बढ़िया सिनेमा में होना चाहिए, मसलन – बढ़िया पटकथा, बढ़िया अभिनय, बढ़िया सम्पादन और बढ़िया फिल्मांकन अर्थात सबकुछ स्वादानुसार। फिल्म में गाने भी है लेकिन यहां गाने ठुसें हुए नहीं बल्कि सिनेमा के कथ्य को और मजबूती प्रदान करते हैं। प्रदर्शनकारी कला में सामान्य बात पैदा करना और उसे रोचक बनाए रखना एक कठिन चुनौती की तरह है और रोज़ आइलैंड (फिल्म) को इस मामले में एक और सार्थक क़दम कहा जा सकता है।
रोज़ आइलैंड (फिल्म) Netflix पर उपलब्ध है।
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