सन 1938 में लेखक डाफने डे मौरिएर रिबेका नाम से अंग्रेज़ी उपन्यास लिखते हैं, जो बहुत ज़्यादा प्रसिद्द होता है और अपने प्रकाशन से लेकर आजतक यह पढ़ी जा रही है। इस उपन्यास पर नाटक खेला जाता है और सन 1940 में विश्वप्रसिद्ध फ़िल्मकार अल्फ्रेड हिचकॉक इसी नाम (रिबेका) से एक अद्भुत फिल्म बनाते हैं जो विश्व सिनेमा की एक धरोहर के रूप में ख्यातिप्राप्त होती है और आज भी यह फिलिम्ची लोगों के बीच पड़े ही आदर और स्नेह के साथ देखी जाती है।
रिबेका उपन्यास की कथा को केंद्र में रखकर निर्देशक बेन व्हेटली इसी नाम से एक फिल्म लेकर आते हैं जो कोविड की वजह से कुछ चुनिन्दा सिनेमाघरों में प्रदर्शित होती है और उसके बाद नेटफ्लिक्स के माध्यम से दुनिया के सामने उपस्थित होती है। उपन्यास मैंने पढ़ी नहीं है और हिचकॉक निश्चित ही विश्वसिनेमा में अतुलनीय है, इसलिए इन दोनों विषय को यहीं विराम देना ही उचित रहेगा और हम यहां बात केवल और केवल अभी आई फिल्म पर केन्द्रित रखेगें।
यह एक पीरियड ड्रामा है और पीरियड रचने का यह काम यहां बाख़ूबी किया गया है, लेकिन यही शायद इस फिल्म की सबसे बड़ी कमज़ोरी भी है। रिबेका (2020) देखते हुए आपको ऐसा एहसास होता है जैसे आप कोई पुरानी फिल्म देख रहे हैं, यहां आधुनिक सोच ग़ायब है। आप एतिहासिक कथाभूमि रचिए, इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन एतिहासिक के साथ ही साथ यह भी ख़याल रखना होता है कि इसे देखनेवाला आज का इंसान होगा, तो आपको आज के इंसान के हिसाब से भी कहीं न कहीं कुछ करना होता है वरना वह एक शो पीस बनकर रह जाता है। इस फिल्म के साथ भी यही होता हुआ पाया जा सकता है। आपको इसकी कथा नहीं भी मालूम हो फिर भी अभिनेताओं के अच्छा काम, बेहतर दृश्य संरचना, सुंदर वस्त्र विन्यास और ठीक-ठाक साउंड इफेक्ट के बावजूद बहुत ज़्यादा जुड़ाव महसूस नहीं कर पाते और एक समय ऐसा भी लगने लगता है कि बस भाई बहुत हुआ, अब ख़त्म भी कर दो और ऐसा थ्रिल और संस्पेंस के साथ हो तो समझ लीजिए गई भैंस पानी में। ब्रिटिश सिनेमाई आर्ट के साथ यह समस्या लगता है जैसे आम हो कि वो ज़रूरत से ज़्यादा ही चीज़ों को सहज बना देते हैं और इसकी वजह से नाटकीयता ज़रूरत से ज़्यादा ही ग़ायब हो जाती है। वैसे मैं कोई ब्रिटिश सिनेमा का ज्ञाता नहीं हूं, इसलिए यह बात दाबे के साथ नहीं कह सकता। रिबेका में स्पेशल इफ़ेक्ट भी आश्चर्यजनक रूप से बचकाना प्रतीत होता है ख़ासकर जब आप बड़े से बंगलानुमा घर को जलते देखते हैं तब यह साफ़ पता चलता है कि यह नकली और बचकाना है।
जब आप एक ऐसे कथानक को हाथ में लेते हैं जिस पर पहले ही किसी ने विश्वक्लासिक की रचना कर रखी हो तब आपकी जवाबदेही और ज़्यादा बढ़ जाती है। तब यह उम्मीद होती है कि आपका अंदाज़े बयां कुछ और होगा, उसके साथ ही साथ आप उस कथ्य के कुछ नए विमर्श भी प्रस्तुत करेगें और जब ऐसा नहीं होता तब यही लगता है कि पहलेवाला ही एक बार और देख लिया जाता, इसको देखने में समय और उर्जा बेकार हो गई।
रिबेका फिल्म Netflix पर उपलब्ध है।
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