शुरू में ऐसा प्रतीत हुआ था कि मंक फिल्म एक बायोग्राफी है लेकिन नहीं यह तो उससे कुछ अलग है, जिसके केंद्र में अपनेआप में एक अलहदा चरित्र हर्मन जे मैन्केविच है जिसे केंद्र में रखते हुए डेविड फिन्चर दरअसल एक बागीचा बनाने की चेष्टा कर रहे हैं। अब एक बढ़िया बागीचा में कोई एक पौधा या पेड़ तो होता नहीं है इसलिए यहां भी बहुत कुछ है. कह सकते हैं कि मंक फिल्म बहुआयामी है, जिसके कई सारे परत हैं.
सेवन, द गेम, फाईट क्लब, द क्यूरियस केस ऑफ बेंजमिन बेटन, द सोशल नेटवर्क और गौन गर्ल आदि जैसे फिल्मों को निर्देशित करके निर्देशक डेविड फिन्चर आज विश्व सिनेमा में निर्विवाद रूप से एक प्रतिष्ठित नाम हैं। इनके पिताजी थे जैक फिन्चर, जो एक पटकथाकार और पत्रकार थे। उन्होंने विश्वप्रसिद्ध फिल्म सिटिजन केन (1941) के पटकथा लेखक हर्मन जे मैन्केविच के जीवन, समय और रचनाकर्म को केंद्र में रखकर एक पटकथा लिखी थी; उसी का यह सिनेमाई रूपन्तरण है मंक। इसलिए कुल मिलाकर एक बात कहीं ही जा सकती है कि मंक एक सिनेमाई कृति होने के साथ ही साथ एक श्रद्धांजलि और सम्मान भी है अपने पिता, हर्मन जे मैन्केविच और उस वक्त के हॉलीवुड सिनेमा और समय को। वक्त और समय की बात चली है तो ज़रा एक नज़र उस वक्त को याद कर ही लिया जाए। दुनिया प्रथम विश्वयुद्ध झेलने के पश्चात साम्राज्यवाद, पूंजीवाद, अतिउदार लोकतंत्र, साम्यवाद, तानशाही और बहुत सारी अराजकता आदि के फरेब के चक्कर में फंसकर दूसरे विश्वयुद्द झेल रही थी। हर तरफ तबाही का मंज़र था। ऐसे वक्त के प्रभाव से कोई बच भी नहीं सकता था क्योंकि यह अब सीधे-सीधे लोगों के जीवन पर प्रभाव डाल रही थी, वो लोग चाहे कोई भी हो। इसलिए फिल्म मंक के भीतर केवल हर्मन जे मैन्केविच की व्यक्तिगत जीवन कम दुनिया जहान ज़्यादा है।

खाने के टेबल ही नहीं बल्कि मनुष्य का एकांत भी बहस के केंद्र में तब्दील हो चुके हैं। इसलिए इस फिल्म से जुड़े रहने के लिए दर्शकों को थोड़ा इतिहास, राजनीति, विचारधारा की समझ एक ज़रूरी शर्त बन जाती है क्योंकि फिल्म में कई ऐसे दृश्य है जहां बहसें चल रही हैं; अब हम आज उस बहस में किसका पक्ष लेते हैं और किसका नहीं यह एक अलग विषय है क्योंकि आज सारे आदर्श ध्वस्त हो चुके हैं और साम्यवाद का सूरज भी पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के गोद में बैठकर मौज काट रहा है। एक ख़ास प्रकार का पागलपन पूरी दुनिया को अपनी गिरफ़्त में ले रहा है जिसमें न कोई शर्म है, न हया है और दया है। वैसे भी इतिहास से सीख ली जाती है, वहां पक्ष-विपक्ष से कोई ख़ास फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि हमारा नियंत्रण वर्तमान और भविष्य पर होता है या हो सकता है; इतिहास तो कब का निकला चुका है. वैसे आज के ज़माने में कुछ वैसे भी लोग उग आए हैं जिन्हें यह भ्रम है कि इतिहास की धारा को मोड़कर खलनायक को नायक और नायक को खलनायक बना देगें लेकिन शायद उन्हें एहसास नहीं है कि सत्य बड़ी अद्भुत चीज़ होती है और वो हर बार पत्थर का सीना चीरकर उग ही जाता है.
यह पूरी फिल्म समय का एक कोलाज के रूप में है जिसमें हर्मन जे मैन्केविच हैं, हॉलीवुड का चरित्र और राजनीति के साथ ही साथ हक़ और अस्तित्व का संघर्ष है, दुनिया में चल रहे युद्ध हैं और उसके प्रभाव है, व्यक्तिगत और राजनीतिक बहसें हैं और इन सबके बीच में रचा जा रहा सिटिजन केन जैसा सिनेमाई सहाकार है, जो बाद में विश्वसिनेमा की एक अनमोल और महानतम कृति बन जाने वाली है।
अब यह भी अपनेआप में त्रासदी ही है कि सिटीजन केन जब प्रदर्शित होती है तो उसे कोई ज़्यादा भाव नहीं मिलता लेकिन बाद में यह विश्व के महानतम सिनेमा में से एक मानी जाती है। कहा जाता है कि ऐसा होने में फांस के सिनेमा समीक्षक आंद्रे बजीन के सन 1956 में लिखे आलेख का बहुत बड़ा योगदान था। बहरहाल, कई बार ऐसा घटित होता है कि कोई दूसरा जब हमें बताता है कि भाई तुम्हारी यह चीज़ महान है तब ही शायद हमें उसकी महानता का पता चलता है वरना तो हम ‘टाके से भाजी और टाके सेर खाजा’ ही बेचते और समझते रहते हैं।

वैसे सिटिजन केन के पटकथा को लेकर यह एक बहुत पुराना विवाद है कि इसके मूल में कौन व्यक्ति है, हर्मन जे मैन्केविच या निर्देशक आर्सन वेल्स! अलग-अलग पक्ष है लेकिन सत्य यह है लेखक के रूप में दोनों का नाम दर्ज़ ह वैसे वो ज़माना भी ऐसा था कि मूल लेखक को ज़्यादा भाव दिया भी नहीं जाता था बल्कि लेखक कि हैसियत स्टूडियो में काम करनेवाले किसी कर्मचारी से ज़्यादा नहीं था। इस विवाद पर बहुत कुछ लिखा गया है और आगे भी बहुत कुछ लिखा ही जाएगा। इस बात पर सर खपाने का अर्थ है कि पहले मुर्गी या पहले अंडा की पहेली को हल करना या हनुमान जी की तरह सीना फाड़के सत्तारूढ़ के सामने अपनी देशभक्ति का सबूत देता क्योंकि विचार एक बड़ा ही मूर्त सी चीज़ है, वो कब, कैसे और किसके दिमाग में आई इसका सबूत की दिया जा सकता है। फिर सिनेमा, नाटक या साहित्य जैसी विधा में विचार को कलमबद्ध करना होता है और कलमबद्ध करते हुए बहुत कुछ बदलता रहता है फिर उस पर बहसें होती हैं, सुधार होता है आदि आदि।
फिर जब किसी पटकथा का फिल्मांकन और उस पर अभिनय होता है तब भी बहुत सारे सबटेक्स्ट और बातें जुड़ते हैं, इसलिए यह सबकुछ एक सामूहिक प्रकिया ही है, जिसके अलग-अलग विभाग की जवाबदेही अलग-अलग व्यक्ति के पास होती है लेकिन रचना मूलतः सामूहिकता का ही नाम है। इसका कत्तई यह अर्थ नहीं कि व्यक्ति और व्ताक्तित्व का महत्व कम हो जाता है – नहीं, हरगिज नहीं। इसलिए न हर्मन जे मैन्केविच का महत्व कम होता है और ना ओर्सन वेल्स का और एक ख़िलाफ़ दूसरे को खड़ा करना एक शातिर हरकत माना जाना चाहिए, रचनात्मक नहीं। वैसे भी ये दोनों इस फिल्म को रचने के लिए रचनात्मक सहयात्री थे, एक दूसरे के पक्ष या विपक्ष नहीं। अगर पक्ष-विपक्ष होते तो सिटिजन केन न लिखी और बनाई जाती और अगर यह सब होता भी तो वह कुछ और होता, यह तो नहीं ही होता जो आज हमरे समक्ष है।
इसलिए किसी भी कला को उसकी सम्पूर्णता में विचार किया जाना चाहिए, एक-एक पुर्जा अलग करने से कला की हत्या होती है, कलाविमर्श तो हरगिज़ नहीं। वैसे भी कई बार इंसान कलाकृति गढ़ता है तो कई बार किसी कलाकृति के माध्यम से इंसानी ज़िन्दगी का विमर्श होता है, एतिहासिकता के एहसास को आत्मसात करती श्वेत और श्याम रंगों से बनी मंक एक ऐसी ही फिल्म है, जो उस समय काल दिनांक और कुछ व्यक्तियों के माध्यम से कुछ बातें और कुछ विमर्श प्रस्तुत करना चाहती है।

वैसे इंसान कभी श्वेत श्याम नहीं बल्कि उसका असली रंग धूसर (ग्रे) होता है, जैसे हर्मन जे मैन्केविच का असल में है। डेविड फिन्चर की फिल्मों में अभिनेताओं का अभिनय अपने चरम पर होता है लेकिन इस विभाग में मंक से थोड़ी निराशा ही हाथ लगती है और ऐसा लगता है जैसे अमूमन ज़्यादातर अभिनेता कोई अतिसाधारण डेलीशोप शूट कर रहे हैं जबकि अभिनेताओं में गैरी ओल्डमैन अमांडा सेफ्रीड, लिटी कोल्लिन, टॉम बुरके और चार्ल्स डांस जैसे बड़े और सम्मानित नाम उपस्थित हैं।
मंक फिल्म Netflix पर उपलब्ध है।
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