Wednesday, December 4, 2024

बोरात सबसेक्युमेंट : एक अतरंगी सिनेमाई मॉकुमेंट्री

डाक्यूमेंट्री का नाम अमूमन ज़्यादातर लोगों ने सुना ही होता है जिसमें वास्तविकता का फिल्मांकन होता है, कम से कम कहा या माना तो यही जाता है लेकिन अगर वास्तविकता में ज़रा कल्पना का तड़का लगाया जाए और घटनाओं की पैरोडी बनाकर संरक्षित किया जाए तो उसे मॉकुमेंट्री कहते हैं। मॉक का सीधा-सीधा अर्थ दिखावटी या किसी भी चीज़ का मज़ाक बनाना होता है। यह हास्य और व्यंग्य का सहोदर कला है लेकिन इसकी प्रवृत्ति थोड़ी अलग भी होती है। बाकि पैरोडी की कला से हम सब जाने-अनजाने परिचित होते ही है और जाने-अंजाने बनते और बनाते भी रहते हैं। लोक और पारंपरिक कला में जोकरई का ज़्यादातर काम हास्य, व्यंग्य, चीज़ों का मज़ाक और पैरोडी बनाने से ही संचालित होता था। जैसे की आप बड़े ही मनोयोग से गाते हैं – बड़ी दूर से आए हैं, प्यार का तोहफा लाए हैं और आपका गान ख़त्म होते ही माइक पर जोकर आता है और कहता है कि बहुत अच्छा गए, बड़ी दूर से आए हैं प्याज का चोखा लाए हैं, और वहीं खड़े-खड़े आपका झंड हो जाता है। यह ऐसे ही बड़े पैमाने पर बड़ी बड़ी बातों, लोगों और चीजों को झंड करने की कलाकारी है और कहा जा सकता है कि यह एक बहुत ही पुरानी कला है और इतिहास में एक से एक कलाकार हुए हैं जो लोगों की झंड करते रहते थे। अकबर और बीरबल की कथा तो ज्ञात होगा ही। वर्तमान में भी ऐसी फिल्मों और टीवी सीरियल्स की एक लम्बी फ़ेहरिस्त है जो अच्छे-अच्छे आवरण का पर्दाफास कर देती है। बोरात इन्हीं सबको आत्मसात करते हुए एक अतरंगी सिनेमा है। बोरात ही नहीं बल्कि अभिनेता नोआम बारोन की फिल्में पूरी दुनिया में इसी मॉकुमेंट्री के लिए जानी जाती हैं और वो बड़ी आसानी से अच्छे-अच्छों की झंड करते रहते हैं। इस बार उन्होंने बोरात सबसेक्युमेंट में बड़े-बड़े नेता, विचार, संस्कृति, मान्यता आदि के साथ ही साथ कोरोना तक की झंड करते हुए दिखाई पड़ते हैं। वैसे कोरोना की झंड करने में हम सब भी किसी जोकर से कम नहीं हैं! 

अब ऐसी फिल्मों के मूल तत्व को पकड़ने और उसका असली रस लेने के लिए आपको सांस्कृतिक, एतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और भौगौलिक रूप से शिक्षित होने की ज़रूरत है वरना यह एक फ़ालतू का बकवास के अलावा कुछ और प्रतीत नहीं होगा। यहां छोटी-छोटी घटनाओं और स्थिति-परिस्थिति का एक बहुत बड़ा एतिहासिक सन्दर्भ है जिसकी समझ और जानकारी है तब उसका अर्थ पकड़ में आएगा वरना लगेगा कि यह क्या बेकार सा कुछ चल रहा है। अब एक उदाहरण देखिए, बोरात दुखी हो जाता है और वो यहूदी का रूप धारण कर लेता है ताकि कोई उसे मार डाले। लेकिन जिस चर्च में वो अपनी हत्या के मंशा लिए जाता है वहां लोग उसे मारने के बजाए स्नेह करते हैं और वहां उसे पता चलता है कि यहूदियों का नरसंहार एक कल्पना नहीं बल्कि हक़ीकत है और वो इस बात से खुश हो जाता है और ख़ुशी से चिल्लाने लगता है। अब यह छोटा सा वृतांत समझने के लिए द्वितीय विश्वयुद्द, जर्मनी, हिटलर, यहूदी और उनका नरसंहार और बाद में उसे झुठलाने की कोशिश का पूरा इतिहास जानना आवश्यक है तभी कुछ पकड़ में आएगा वरना सब अतरंगी बातें ही प्रतीत होगीं। नहीं तो इतना ही समझ लेना चाहिए कि एक धर्म अपनी राजनीति चमकाने के लिए कैसे दूसरे धर्म को माननेवालों के ख़िलाफ़ साजिश रचता है और झूठी कहानियाँ प्रचारित करता है। अगर यह भी नहीं समझ में आता है तो फिर लॉलीपॉप चूसिए और मस्त रहिए। बोरात ऐसे ही सन्दर्भों से भरी पड़ी है। 

ऐसे सिनेमा का भी एक लंबा इतिहास है जिसमें एक ही चरित्र अलग-अलग भाग में अलग-अलग परिस्थियों से गुज़रता और टकराता है। कुछ नहीं तो चार्ली चैप्लिन, मिस्टर बीन आदि का ही उदहारण सामने रखा जा सकता है। बोरात भी एक ऐसा ही एक अलग और अतरंगी चरित्र है जो कज़ाकिस्तान का एक पत्रकार है पिछली बार (भाग एक में) अमेरिका सांस्कृतिक अध्ययन के लिए गया था और इस इस बार वो नवनियुक्त राष्ट्रपति से अपने देश के रिश्ते को बेहतर करने के लिए गिफ्ट के साथ भेजा गया है लेकिन अब उसकी जो प्रवृत्ति है उसमें वो बेहतर करने के चक्कर में बहुत कुछ अतरंगी सा कर जाता है। वो बांकेलाल कॉमिक्स का बांकेलाल याद है जो किसी का जब भी बुरा चाहता है उसका भला ही हो जाता है, वैसे ही यहां वो जो करता है होता उसके उल्टा है और कभी जब कुछ उल्टा करे तो और उल्टा हो जाता है। फिर दो देशों की सांस्कृतिक मान्यताओं, झूठ-सच से भी मुठभेड़ होती ही रहती है। यह टकराहट कुछ-कुछ ऐसी ही है जैसी कि आस्था और विज्ञान के बीच होती है और आस्था अन्तः विज्ञान के ऊपर हावी हो जाती है। इसी कोरोनाकाल का ही उदाहरण लीजिए जान डॉक्टर बचाता है और लोग आभार भगवान और नेता का प्रकट करते हुए पाए जाते हैं। 

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बोरात सबसेक्युमेंट देखते हुए ऐसा लगता है कि क्या बेवकूफी है, लेकिन कमाल की बात है कि दुनिया में ज़्यादतर लोग इसी बेवकूफी को जाने-अनजाने करते और उसे ही सच भी मानते हैं। वैसे भी दुनिया में एक से एक ज्ञान के दुश्मन हैं जो मूढ़ता को ही संविधान मान बैठे हैं और बकर फैलाने को लोकतंत्र और ऐसे लोग आपको बड़े-बड़े पदों पर आसानी से बरामद किए जा सकते हैं वरना बादल और रडार और गो कोरोना गो गाते हुए थाली पीटने और कोरोना भगाने के सिद्धांत को पागलपन नहीं तो और क्या कहा जा सकता है! बहरहाल, एक बार मॉकुमेंट्री का मज़ा लेना सीखना है फिर स्वाद बढ़ जाएगा क्योंकि दुनिया में सिनेमा का मतलब केवल बेसिरपैर का मनोरंजन नहीं होता है। हां, इस फिल्म में कोविड19 भी आता है और उसके ऊपर महान फिलॉसफी भी सुनाई पड़ेगी और फ्राइनपेन से कोरोना वाइरस मारने का महान दृश्य के साथ ही साथ कौन ज़्यादा ख़तरनाक है कोरोना कि फलाना पार्टी का बकवास भी देखने को मिलेगा। 

नोआम बारोन का सिनेमा अपनेआप में अतरंगी है और एक बहुत बड़ा साहसिकता से सराबोर भी। देखिए, दिखाइए और दिखावेपन के भीतर के असलियत को पकड़ने कि चेष्टा कीजिए वरना बाक़ी तो झूठ, भ्रम और आडम्बर जिंदाबाद है ही। हां, जब भी देखिए अपनी नैतिकता और मान्यता युक्त आस्था को ज़रा ताखे पर रख दीजिए, वरना शर्मिंदा होना पड़ सकता है।


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पुंज प्रकाश
पुंज प्रकाश
Punj Prakash is active in the field of Theater since 1994, as Actor, Director, Writer, and Acting Trainer. He is the founder member of Patna based theatre group Dastak. He did a specialization in the subject of Acting from NSD, NewDelhi, and worked in the Repertory of NSD as an Actor from 2007 to 2012.

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