जिस निर्देशक के खाते में दुनियाभर के सिनेमाप्रेमी और सिनेमा से जुड़े बड़े-बड़े नामों को प्रभावित करनेवाला फ़ॉलोविंग, मोमेंटो, द डार्क नाईट ट्रेलॉजी, द प्रैस्टिज़, इन्शेपशन, इंटरसेलर, ड्रंकिर्क जैसा सिनेमा हो उनके सिनेमा पर कुछ भी लिखने से पहले हाथपैर का फूलना एक आम सी बात है। उनकी इन फिल्मों ने न केवल सिनेमाप्रेमियों का भरपूर सम्मान और प्रतिष्ठित पुरस्कार पाया है बल्कि दुनियाभर में बेहतरीन सिनेमा बनानेवालों तक को बेहद प्रभावित किया है। वहीं उनकी फिल्मों को अपनी-अपनी भाषा में नक़ल करने की वाहियात कोशिश करनेवालों की भी कोई कमी किसी भी मुल्क में नहीं है। अगर गौर से देखा जाए तो कुछ बड़े बड़े लोग बड़ी चालाकी से उनकी फिल्मों के असर को बड़ी ही शालिनतापूर्वक कॉपी करने की चेष्टा करते हुए भी पाए जा सकते हैं। कुल मिलाकर बात यह कि नोलेन जैसे ही कोई नई फिल्म बनाने की घोषणा करते हैं विश्व सिनेमा में हलचल होनी शुरू हो जाती है; इसलिए आज उनको सिनेमा जगत के सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्वों और मौलिकता से परिपूर्ण में से एक कहा जाए तो शायद ग़लत तो बिलकुल ही नहीं होगा। हलांकि कला में मौलिक (Original) जैसा पता नहीं कुछ होता भी है या नहीं लेकिन नोलेन के सिनेमा को मौलिक सिनेमा इसलिए कह सकते हैं क्योंकि वो अपने प्रकार का एकदम अलहदा सिनेमा होता है। आप उनके सिनेमा को पसंद-नापसंद कर सकते हैं लेकिन इतना तो ज़्यादातर मानते ही हैं कि ऐसा कुछ पहले नहीं देखा था या देखा भी था तो इस प्रकार से नहीं देखा था। वर्तमान टेनेट फ़िल्म भी ऐसा ही एक सिनेमा है जो लेखक, निर्माता और निर्देशक क्रिस्टोफर नोलेन के सिनेमाई विद्वता में थोड़ी प्रतिष्ठा और जोड़ देती है और उनके प्रशंसकों में मूंह से आह और वाह एक साथ निकलवा देती है।
उनकी फ़िल्में इंसान की खोपड़ी घुमा देती है और संभव है कि समझने के लिए टेनेट को कई बार देखना पडे। वैसे इस मामले में टेनेट फ़िल्म में एक संवाद है जो उनकी फिल्मों के लिए भी बेहद ज़रूरी है वो यह कि “समझाने की कोशिश मत करो, महसूस करो।” अब यह समझना और महसूस करने के बीच का जो बुनियादी फ़र्क है इसे ही समझने या महसूस करने में ही कई बार इंसान के कम से कम एक जन्म के वारे न्यारे इसलिए हो जाता है क्योंकि उसके पास एक दिमाग नामक चीज़ है जो अपनेआप को बड़ा तीस मार खां समझता है; अब वो तीस मार खां है या नहीं यह बात पूरे विश्वास से नहीं कहा जा सकता है। वैसे अब सवाल यह भी बनता है कि क्या महसूस करने में भी दिमाग या समझ का इस्तेमाल नहीं होता? तो बात कुल मिलाकर वही कि पहले मुर्गी कि पहले अंडा! इसलिए इस विषय का यहीं त्याग कर देने में ही भलाई है वरना लिखने और पढ़नेवाले दोनों का चक्करघिन्नी बन जाने का भय है।
वैसे नोलेन का सिनेमा चक्करघिन्नी बनाने का ही काम करता है और अगर (एकाध अपवादों को छोड़कर) दिमाग का दही न हुआ तो वो नोलेन का सिनेमा है ही नहीं। अब आप चाहें तो मेरी ही तरह इसे बौद्धिक क्यूटियापा कह सकते हैं!
टेनेट फ़िल्म के कथा का सूत्र उसके पोस्टर में ही है जहां शुरुआत के दो शब्द TE सीधा लिखा है फिर N सामान्य है और उसके बाद का TE उल्टा लिखा हुआ है। N को आप वर्तमान मान लें तो एक TE भूतकाल है और दूसरा भविष्य और पूरी फिल्म में यही वर्तमान, भूत और भविष्य का धक्कमपेल चलता रहता है। दुनिया बचाने के लिए कभी कोई भूतकाल में समाहित हो जाता है कभी वर्तमान में तो कभी भविष्य आ धमकता है। जानता हूं आपको कुछ समझ में नहीं आ रहा है और सबकुछ एल्गोरिथम (यह जानने के लिए गणित की पढ़ाई आवश्यक है) की तरह प्रतीत हो रहा होगा तो बस इतना जान लीजिए कि यह किसी सपने की तरह है जिसमें आप कभी भी कहीं भी जा सकते हैं।
सपनों का कोई तर्क नहीं होता और ना ही कोई टेनेट यानि सिद्धांत ही होता है। वैसे टाइमट्रेवल, मेटाफिज़िक्स, गणित, फिज़िक्स, नैरेटिव स्ट्रक्चर आदि आदि और उसके साथ भी पता नहीं किन-किन चीज़ों का थोड़ा ज्ञानी होने से इनके सिनेमा पर वाह-वाह करने का सौभाग्य प्राप्त होता है, ऐसा ज्ञानी लोग मानते हैं।
वैसे मुझे व्यक्तिगत तौर पर इनका सिनेमा किसी शानदार गायक द्वारा गाया गया शानदार शास्त्रीय गायन की तरह लगता है जो एक बार अपना सुर, ताल और लय तय करता है और फिर उसके दायरे में रहकर उन्मुक्त उड़ान भरता रहता है। जिसका एक-एक सुर कान के रास्ते महसूस होना ज़रूरी है। वैसे ही टेनेट फ़िल्म का एक-एक दृश्य आंखों के सहारे मन के उन्मुक्त गगन में पहुंचना आवश्यक है और ऐसा करने के लिए संभव है कि उनकी इस फिल्म को कई बार देखना पड़े और किसी जानकार के द्वारा थोड़ा इसकी व्याख्या भी पढ़ना, देखना या सुनना पड़े। वैसे क्या ज़रूरी है कि एक ही बार में कोई कलाकृति पल्ले पड़ ही जाए।
अब भले वर्तमान राजनीतिक क्यूटीआपा के चक्कर में पड़कर आप “बुद्धिजीवी” नामक जीव को गाली समझने के रोग से पीड़ित हों लेकिन इस सिनेमा का आनंद लेने के लिए थोड़ा ज्ञानी तो होना ही पड़ेगा और अगर कला में नवाचारी के आप प्रेमी हैं तो यह टेनेट आपके लिए ही है वरना तो डेविड धवन और मनमोहन देसाई अंकल और उनके चेले-चपाटी जिंदाबाद थे, हैं और रहेगें ही। वैसे ज्ञान इंसान की सबसे बहुमूल्य पूंजी है जिसे कोई चाहकर भी नहीं चुरा सकता है। बाक़ी परम सत्य यह है कि ज्ञान कमाना पड़ता है और मूढ़ता विरासत में मिलती है।
टेनेट फ़िल्म इस समय सिनेमा हॉल में चल रही है। आप इसे अमेज़न पे रेंट करके भी देख सकते हैं।
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