Saturday, April 20, 2024

बेहद ज़रूरी है यह ‘छलांग’!

मार्टिन लूथर किंग का एक बहुत ही प्रसिद्द कथन है – “यदि तुम उड़ नहीं सकते हो तो दौड़ो। यदि दौड़ नहीं सकते हो तो चलो। यदि चल नहीं सकते हो तो रेंगो। लेकिन हमेशा आगे बढ़ते रहो।” हंसल मेहता की यह फिल्म छलांग लगाने को प्रेरित करती है हालांकि छलांग लगाने में शरीर का अंग टूटने का भय रहता है लेकिन कई बार छलांग ठीक वैसे ही ज़रूरी होता है जैसे कोई नाली जाम हो जाने पर उसे किसी डंडे से हूरा जाता है। यह हूरना एक अद्भुत क्रिया है और कई बार इंसान को मानसिक, शारीरिक और वैचारिक स्तर पर भी अपने आप को हूरना चाहिए और कई बार समाज को भी यह क्रिया अपनाना चाहिए ताकि मानसिक, शारीरिक, वैचारिक और आध्यात्मिक सेहत ठीक रहे वरना आलस घर कर जाता है, सडांध पैदा होने लगती है और हम उधार की ज़िन्दगी जीने को अभिशप्त हो जाते हैं। हमें इसी में मज़ा भी आने लगता है और हम इसी काहिली को ही जीवन और जीवन की सार्थकता मान बैठते हैं। 

छलांग की शुरुआत भी इसी काहिली से होती है जहां स्कूल का पीटी टीचर प्रचंड काहिली में ही अपने जीवन कि सार्थकता देखता है और अपने और अपने छात्रों का भविष्य अन्धकार में डालकर मस्त है। वो अपने काम को गंभीरता से लेने के बजाए रोमियो स्क्वाइड का सदस्य बनके प्रेमी जोड़े को सबक सिखाने में ज़्यादा सार्थकता देखता है। अब उसे पता ही नहीं है कि “अंधेरा कभी भी अंधेरे को दूर नहीं कर सकता, यह ताक़त केवल प्रकाश के पास होती है। इसी प्रकार नफ़रत से नफरत को दूर नहीं कर सकते बल्कि यह ताक़त प्रेम के पास होती है।” अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि जहां शिक्षक प्रेम के विरुद्ध खड़ा हो वहां शिक्षा की क्या हालत होगी! अब राधा और कृष्ण की रासलीला को पूजनेवाले देश में प्रेम के विरुद्ध वातावरण बनाना विशुद्ध राजनीति है। 

यह राजनीतिज्ञ बड़े अद्भुत प्राणी होते हैं। इन्हें अच्छे मालूम है कि देश के युवाओं में अपार शक्ति होती है। सही राजनीत इनकी शक्ति का सही और सकारात्मक उपयोग करती है और ग़लत राजनीति देश, धर्म, जाति, समुदाय, संस्कृति और पता नहीं क्या-क्या अतरंगी बातें करके इनकी अपार ऊर्जा का इस्तेमाल ऐसी बातों के लिए करतीं हैं जिसका कोई सृजनात्मक मतलब नहीं होता है। जीवन और समाज के मूलभूत सवालों से दूर रखना और किसी आकाशीय मृगतृष्णा के पीछे पूरी की पूरी ऊर्जा को लगा देना एक ख़तरनाक बात होती है, जिसका जितना जल्दी भान इन युवाओं को हो जाए उतना ही बेहतर है वरना तो “लम्हों ने ख़ता की थी, सदियों ने सज़ा पाई” वाली कहावत चरितार्थ होती ही है। छलांग के नायक को यह बात समय रहते समझ में आ जाती है और बहुत कुछ खोने और जीवन व्यर्थ होने से पहले ही वो न केवल सही रस्ते पर आ जाता बल्कि वो अपने छात्रों को भी सही राह दिखाता है और ऐसा करते हुए उसके भीतर किसी भी प्रकार का कोई अहम् नहीं बल्कि करुणा का वास होता है। वैसे भी अहम् मूर्खों का गहना है। 

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बेहद ज़रूरी है यह 'छलांग'!

निर्देशक हंसल मेहता बड़ी ही सहजता के साथ सौम्य तरीक़े से बिना कोई बड़ा-बड़ा भाषण दिए और चमत्कार दिखाए बात प्रेषित करते हैं, जिसे अभिनेता राज कुमार राव, मोहम्मद ज़ीशान अय्यूब, सौरव शुक्ला, सतीश कौशिक, इला अरुण, जतिन शर्मा और बलजिंदर कौर ने बड़ी ही कुशलतापूर्वक अभिनीत किया है। ज़ीशान वर्तमान में हिंदी सिनेमा में कार्यरत कुछ बेहद प्रतिभावान अभिनेताओं में से एक हैं और इनका बेहतरीन अभी आना बाक़ी है। हां, नुसरत बारुचा का चरित्र किसी मर्द के पीछे बैठनेवाली लड़की से थोड़ा और ज़्यादा आगे का हो सकता था। शुरूआती के दृश्य में यह संभावना बनती है लेकिन बाद में उनका चरित्र वही टिपिकल बौलीवुड स्टीरियोटाइप हीरो की सहायक कि भूमिका में उलझ जाती है; और हरियाणवी पृष्टभूमि में पंजाबी संगीत का क्या मतलब है यह समझ से परे है। वैसे यह फिल्म हार जीत से ज़्यादा अपनी सार्थकता को पहचानने की है।


छलांग फिल्म Amazon Prime Video पर उपलब्ध है।

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पुंज प्रकाश
पुंज प्रकाश
Punj Prakash is active in the field of Theater since 1994, as Actor, Director, Writer, and Acting Trainer. He is the founder member of Patna based theatre group Dastak. He did a specialization in the subject of Acting from NSD, NewDelhi, and worked in the Repertory of NSD as an Actor from 2007 to 2012.

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